अपराधियों के विरूद्ध मुहिम में मानवीय पहलुओं का भी रखा जाना चाहिये ध्यान

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा ‘शुद्ध के लिये युद्ध’ तथा प्रदेश भर के माफियाओं के विरुद्ध छेड़े गये अभियान को सत्ता बदल जाने के बाद भी माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इन दोनों मुहिमों को निरंतर रखना काबिले तारीफ है और राजनैतिक दलों के लिये एक बहुत बड़ा संदेश है कि अच्छे कार्य को जारी रखा जाना चाहिये चाहे वह विरोधी दल द्वारा ही क्यों ना प्रारंभ किया गया हो। प्रदेश सरकार की इस मुहिम से माफियाओं में हडक़ंप है और अपराधिक गतिविधियों में कमी आई है। प्रदेशवासियों के मन में शासन-प्रशासन के प्रति विश्वास जागा है।

यह सत्य है कि अपराधी का कोई धर्म नहीं होता है उसका तो सिर्फ एक ही धर्म है गैर कानूनी कार्य। गुंडे-बदमाश, असामाजिक तत्व हर धर्म में पाये जाते हैं। प्रदेश सरकार की इस माफियाओं के विरुद्ध मुहिम से किसी को भी एतराज नहीं होना चाहिये और ना ही किसी को है। प्रदेशवासियों ने एकमत से सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। और यह बात भी सोलह आने सत्य है कि गलतियां उसी से होती है जो कुछ करता है।

यदि कुछ करोगे ही नहीं तो गलतियां होने का सवाल ही पैदा नहीं होगा। दुर्घटना उसी से होगी जो सडक़ पर चलेगा, घर में बिस्तर पर पड़े आदमी की दुर्घटना होने के अवसर न्यूनतम ही होंगे। अपराधियों के विरुद्ध चलाई जा रही मुहिम का सकारात्मक पहलू यह है कि इसमें किसी तरह का राजनैतिक, सामाजिक, धर्म के प्रति भेदभाव नहीं किया जा रहा है। यह बात अलग है कि शहर की जनसंख्या में अल्पसंख्यक वर्ग की आबादी के प्रतिशत से शहर के अपराधियों की सूची में अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधियों का प्रतिशत ज्यादा है जिसका सीधा-सा कारण अशिक्षा है।

वैसे तो यह मुहिम सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में चल रही है परंतु इसे नजदीक से देखने का अवसर उज्जैन में ही मिला है। जिलाधीश आशीष सिंह और पूर्व पुलिस कप्तान मनोज सिंह और वर्तमान कप्तान सत्येन्द्र शुक्ल जी ने इस मुहिम को दबंगता के साथ चलाकर बेहतरीन परिणाम दिये है और शायद मध्यप्रदेश में उज्जैन जिला इस मुहिम के क्रियान्वयन में शीर्ष पर होगा।

परंतु इस मुहिम दौरान कुछ मानवीय पहलुओं का ध्यान रखा जाना नितांत आवश्यक है। मानवीय पहलुओं की अनदेखी अच्छी मुहिम पर प्रश्न चिन्ह लगा सकती है। दो-तीन उदाहरणों के जरिये मैं अपनी बात स्पष्ट करना चाहूँगा। दैनिक अग्निपथ किसी अपराधी का हिमायती कभी नहीं हो सकता है परंतु पुलिस कार्यवाही के दौरान यदि कहीं नियमों के विपरीत जाकर ज्यादती हो रही है तो उसका विरोध करना और प्रशासन-पुलिस का ध्यान उस ओर आकर्षित करना अग्निपथ का पत्रकारिता धर्म है जिसका निर्वहन करना भी अति आवश्यक है।

पहला मामला थाना चिमनगंज अंतर्गत स्थित अतिरिक्त विश्व बैंक कॉलोनी निवासी अपराधी रितेश लोधी उर्फ लोडिंग से जुड़ा है। हत्या में फरार आरोपी रितेश के दो मकानों को तोडऩे पुलिस पहुँची तो रितेश के दोनों मकानों पर न्यायालय का स्थगन था इससे खिजलाकर पुलिस ने उसी कॉलोनी में रहने वाली रितेश की विधवा बहन का टापरा तोड़ दिया। विधवा बहन किसी फैक्ट्री में नौकरी करके अपना व अपनी बच्ची का पालन पोषण करती है यदि रितेश की अवैध कमाई में वह संलग्न होती तो उसे फैक्ट्री में काम करने की जरूरत शायद नहीं होती। पुलिस की इस कार्यवाही को किसी भी तरीके से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।

दूसरा मामला थाना महाकाल के शातिर अपराधी मंजूर उर्फ चकवा से जुड़ा है। चकवा का भाई जो किसी सायरा बी नामक वृद्ध महिला के यहाँ किरायेदार है और मेहनत-मजदूरी करके जीवनयापन करता है, पुलिस भाई के मकान मालकिन का मकान तोडऩे पहुँच गई जिसे लोगों के विरोध के चलते बैरंग लौटना पड़ा। तीसरा मामला पंवासा का है जहाँ पर अशोक बैस तथा उनके पुत्र पंकज और कुलदीप पर 26 प्रकरण दर्ज है पुलिस मकान तोडऩे पहुँची पर ना जाने किन नेताजी का फोन आ गया और पुलिस बिना मकान तोड़े ही लौट गई।

गुंडे बदमाशों से समाज को भी किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं है परंतु जरा-सी असावधानी से मुहिम पर कलंक भी लग सकता है। पुलिस को चाहिये कि अपराधियों के मकानों को नष्ट करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे कि काली कमाई से अपराधी द्वारा निर्मित संपत्ति ही नष्ट की जाए। ऐसा ना हो कि अपराधी के माता-पिता के खून-पसीने से निर्मित मकानों पर जेसीबी का पंजा चलाकर उनके सिर से छत छीनकर उन्हें खुले आसमान के नीचे सोने पर मजबूर कर दिया जाए। असामाजिक तत्वों पर दर्ज प्रकरणों की भी विवेचना की जाना चाहिये कि वह अपराध किस प्रकार के हैं। मात्र 4-5 प्रकरणों पर ही इस तरह कार्रवाई न्यायोचित नहीं ठहराई जा सकती है। वैसे तो शहर में ऐसे कई सफेदपोश और राजनेता है जिन पर दर्जनों प्रकरण दर्ज हैं।

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