सावधान! आप भी कहीं दूध के बदले सफेद जहर तो नहीं पी रहे हैं?

मध्यप्रदेश के पूर्ववर्ती काँग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ जी द्वारा चलाये गये ‘शुद्ध के लिये युद्ध’अभियान जिसे वर्तमान के भाजपा सरकार ने भी जारी रखा है के सार्थक परिणाम आ रहे हैं। शुद्ध के लिये युद्ध अभियान में दूध मावा, पनीर, दूध उत्पाद, आटा, बेसन, खाद्य तेल एवं घी, सूखे मेवे, मसालों की जाँच जारी है।

इसमें मिलावटी खाद्य सामग्री बनाने और बेचने वालों के खिलाफ सही सूचना देने वालों के नाम गोपनीय रखते हुए 51 हजार का ईनाम दिये जाने का भी प्रावधान है। मिलावटखोरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई जा रही है। अनुविभागीय अधिकारी और उप पुलिस अधीक्षक कार्यवाही करते हैं।

आपके शरीर पर मिलावटी खाद्य सामग्री से होने वाले दुष्परिणामों की भयावहता की शायद आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि इन मिलावटी चीजों से आप कैंसर, अल्सर जैसी गंभीर बीमारियों का भी शिकार हो रहे हैं।

शरीरी में विटामिन्स और पौष्टिकता के लिये आप जिस दूध का सेवन कर रहे हैं उसमें से 68.7 प्रतिशत दूध मानक स्तर पर सही नहीं है। यह बात खाद्य पदार्थों में मिलावट की जाँच के लिये भारत सरकार द्वारा गठित भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण कह रहा है। दूध में मिलावट के संबंध में एक रिपोर्ट बताती है कि दूध में बड़े पैमाने पर 13 तरह की मिलावट की जाती है जिसमें डिटर्जेन्ट पाउडर, डालडा, रिफाईंड तेल, कास्टिक सोडा, हायड्रोजन पैराक्साईड, आर एम केमिकल, क्लोराफार्म, ग्लुकोज, मालटोज मिलाया जा रहा है।

हमारे प्रदेश के मुरैना जिले में पकड़ाये 3 कारखानों से जिनमें सिंथेटिक दूध का ही निर्माण होता था, वहाँ से दो करोड़ मूल्य के केमिकल और अन्य सामग्री पुलिस ने बरामद की थी। इन कारखानों में सिंथेटिक्स दूध का निर्माण होता था जिसके सेवन से किडनी खराब होती है। प्रशासन ने कुछ माह पूर्व ही वहाँ के 4 डेयरी संचालक को जेल भेजा है। मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव यह रहस्योदघाटन कर चुके हैं कि प्रदेश में मुरैना जिला सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक जिला है और साथ ही यह भी बताया कि वहाँ दूध देने वाले जितने पशु नहीं है उससे कई गुना ज्यादा दूध का उत्पादन हो रहा है।

अकेले भिंड-मुरैना में प्रतिदिन 6 से 7 लाख लीटर कृत्रिम दूध बनाया जाता है जिसमें मिठास के लिये ग्लुकोज, फेट बढ़ाने के लिये डालडा, आर एम केमिकल से गाढ़ापन, शैम्पू और हायड्रोजन पैराक्साईड से झाग बनाने में मदद मिलती है। 100 रुपये की मिलावटी सामग्री से 750 रुपये मूल्य का दूध बनाया जाता है। इस अवैध धंधे में 400 से 500 लोग लगे हुए हैं और यह कृत्रिम दूध प्रदेश के शहरों सहित अन्य प्रदेशों में भेजा जाता है।

देश की आजादी के बाद से मध्यप्रदेश में भी राजनैतिक दलों की सत्ताएँ बदलती रही परंतु इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया और मिलावटखोर नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते रहे। भला हो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का जिन्होंने शुद्ध के लिये युद्ध अभियान के शुरुआत में ही मात्र 38 दिनों में 45 मिलावटखोरों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराकर 15 मिलावटखोरों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कृष्ण मंदिर (जेल) पहुँचा दिया था।
मेरे शहर के नागरिकों आप भी सचेत हो जाओ मिलावटखोर आपके शहर में भी हैं। याद करो तात्कालीन कलेक्टर शशांक मिश्र के समय अपने ही शहर में श्रीकृष्ण डेरी उद्योग पर छापा मारकर भारी मात्रा में नकली घी पकड़ाया था जिसे विभिन्न नामों से पैक करकर बेचा जा रहा था। जिलाधीश ने नकली घी बनाने वाले कीर्तिवर्धन केलकर पर रासुका की भी कार्रवाई की थी। मिलावटखोर व्यापारियों पर जिलाधीश आशीष सिंह ने अभी जुर्माना भी लगाया है। सावधान हो जाइये! आपके घर में भी पहुँचने वाला दूध कहीं सफेद जहर तो नहीं है। भरोसा मत कीजिये, उसकी शुद्धता की जाँच करवाइये। मेरा दावा है इसमें से 70 प्रतिशत मिलावटी ही मिलेगा, हमारे उज्जैन के समीप ग्राम निनौरा में भी चमत्कार हो रहा है जितने पशु नहीं है उससे कहीं ज्यादा दूध का उत्पादन हो रहा है।
पेट रोग विशेषज्ञ एम.बी.बी.एस. डॉक्टर संजय के अनुसार मिलावटी खाद्य सामग्री से दो तरह के नुकसान होता है पहला तो यह कि आपके शरीर को जिस पौष्टिकता की जरूरत हे वह शरीर को नहीं मिलता, दूसरा मिलावट के रूप में आपके शरीर में जाने वाले हेवी मेटल, एसिड, एल्कोहेल आपके शरीर को काफी नुकसान पहुँचाते हैं। जैसे आहार नली का सिकुड़ जाना, फूड पाइप को नुकसान, पेट की पाचन क्रिया को नुकसान कर कोलास्टिक की बीमारी पैदा करते हैं और खून में मिलकर किडनी को खराब करते हैं। इसी तरह अप्राकृतिक रूप से पकाये गये फलों एवं दालों तथा सब्जियों की फसल पर अधिक मात्रा में कीटनाशक के प्रयोग से भी कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ रही है।
सौभाग्य से हमारे शहर में साँची का दुग्ध उत्पादन केन्द्र होने के कारण शुद्ध दूध के उत्पाद उपलब्ध हैं और नागरिकों को चाहिये कि वह शुद्धता के लिये साँची या अमूल की उत्पादक सामग्री का ही प्रयोग करे।

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