ऋषि कश्यप की भूमि और संतों के बाग में बारुद की जगह प्रेम और शांति की बयार

गर फिरदौस बर रूये
जमी अस्त/ हमी अस्तो
हमी अस्तो, हमी अस्त

मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा भारत के ताज मेरे कश्मीर के सम्मान में कही गई यह लाइनें सौ प्रतिशत सही है। ईश्वर/अल्लाह ने अपनी नेमत से कश्मीर का ऐसा श्रृंगार किया है कि धरती पर यदि कहीं स्वर्ग है तो कश्मीर में ही है। अपनी सुंदरता, खूरसूरती, खानपान की विशिष्ठ एवं समृद्ध संस्कृति के लिये पहचाने जाने वाले कश्मीर को संतों का बगीचा और पृथ्वी पर स्वर्ग के नामों से भी जाना जाता है।

135 किलोमीटर लंबी और 32 किलोमीटर चौड़ाई के साथ इसका कुल क्षेत्रफल 15 हजार 948 वर्ग किलोमीटर है। 69 लाख 7 हजार 622 (वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार) जनसंख्या वाली कश्मीर घाटी में 97.16 प्रतिशत मुस्लिम, 1.84 प्रतिशत हिंदू, 0.88 प्रतिशत सिख और 0.11 प्रतिशत बौद्ध हैं। इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि 6000 वर्षों पूर्व यहाँ के निवासी सब हिंदू ही थे जो कश्मीर पंडित थे। 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान के क्रूर मंगोल आतंकी ढुलुचा ने 60 हजार सैनिकों के साथ कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। ढुलुचा ने नगरों और गाँवों को नष्ट करके वहाँ रह रहे कश्मीरी पंडितों को धर्मांतरण के लिये मजबूर कर दिया। हजारों हिंदुओं का नरसंहार हुआ, अनेक कश्मीरी पंडितों ने आत्महत्या कर ली और आतंकी ढुलुचा ने कश्मीर घाटी में धर्मांतरण कराकर मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की।

यह तो हुई 14वीं शताब्दी की बात इसके पहले तीसरी शताब्दी में अशोक महान के कारण यहाँ बौद्ध धर्म पनपा, 6ठीं शताब्दी में महाराजा विक्रमादित्य के अधीन रहा कश्मीर। 697 से 738 ई तक ललितादित्य का शासन रहा। 12वीं शताब्दी में कल्हाण द्वारा लिखी गई राजतरंगिणी में हिंदू राज्य होने का उल्लेख है। इसके पूर्व, महाभारतकालीन खीर भवानी का मंदिर भी इसकी ऐतिहासिकता की कहानी बयाँ कर रहा है। 14वीं शताब्दी के बाद मुगलों के अधीन कश्मीर घाटी पर 1589 में अकबर का शासन भी रहा। पठानों ने 1756 में मुगल साम्राज्य पर हमला कर कश्मीर छीन लिया।

पठानों के कब्जे वाला यह काल कश्मीर का कालायुग कहलाता है। 1814 में पंजाब के शासक रणजीत सिंह जी ने पठानों को हराकर कश्मीर पर सिख साम्राज्य की स्थापना की। वर्ष 1846 में रंजीत सिंह जी ने जम्मू के महाराजा गुलाबसिंह को सौंप दिया जो ज्यादा दिन तक शासन नहीं कर पाये, अँग्रेजों ने उन्हें युद्ध में परास्त कर कब्जा कर लिया।

सन् 1925 में महाराजा गुलाब सिंह के पौत्र महाराजा हरिसिंह जी ने सन् 1947 तक कश्मीर पर राज किया। सन् 1954 में जम्मू-कश्मीर राज्य की स्थापना हुई। कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर हिमालय पर्वत श्रृंखला के सबसे ऊँचे हिस्से में स्थित है। घाटी में ऋषि परंपरा, त्रिस्ता शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है जो कि कश्मीरियत का सार है। धारा 370 और 35 ए हटने के बाद केन्द्र शासित में बदला हुए जम्मू और कश्मीर की फिजा अब तेजी से बदल रही है। कुछ वर्षों पूर्व ‘केसर’ की जिन क्यारियों से बारूदों की गंध आती है उन क्यारियों से अब शांति की बयार बह रही है।

आतंक के खूनी पंजों से मुक्त होने की ओर बढ़ रहे मेरे कश्मीर में हाल के कई महीनों से पत्थरबाजी की घटनाएँ प्राय: बंद सी है। पर्यटकों का कश्मीर घाटी पहुँचना शुरू हो गया है, वहाँ के स्थानीय निवासी बहुत खुश है रोजगार मुहैया होने से। मैं यहाँ पर कश्मीर की फिजा बदलने में वहाँ पदस्थ उपराज्यपाल पूर्व मंत्री मनोज सिन्हा जी के अवदान को नहीं भूल सकता हूँ। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मनोज सिन्हा के पास रेलवे और संचार विभाग के राज्यमंत्री का प्रभार रह चुका है। 1 जनवरी 1959 को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में जन्में सिन्हा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक., एम.टेक. हैं और बी.एच.यू. के विद्यार्थी संघ के अध्यक्ष भी थे। बहुत ही अल्प समय में अपने सौम्य व्यवहार और कार्यशैली से कश्मीरियों का दिल जीतने में सिंहा सफल रहे।

फिल्म नायक के हीरो अनिल कपूर की तरह सिंहा भी पूरा शासकीय लवाजमा साथ लेकर चलते हैं, सुरक्षा के ज्यादा तामझाम के बिना किसी भी गाँव में पहुँचकर दरबार लगा लेते हैं। घाटी के ग्रामीणों की समस्याओं का तत्काल निर्णय हो रहा है, किसी का गरीबी रेखा का कार्ड, किसी का आयुष्मान कार्ड, किसी का आधार कार्ड, किसी का मतदाता परिचय पत्र, किसी का पेन कार्ड, किसान पंजीयन पुस्तिका, खसरे की नकल, पावती सब कुछ हाथों हाथ।

मनोज सिन्हा जी द्वारा चलाये गये प्रेम के अबोध बाण से वहाँ के नागरिकों की बल्ले-बल्ले हो गई है। वर्षों से शासकीय योजनाओं का लाभ लेने के लिये उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलकर शासकीय कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते थे वह सब काम उनके घर पर ही हो रहे हैं और उन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। कश्मीर घाटी के लोग उन्हें देवता से कम सम्मान नहीं दे रहे हैं हाँ इतना जरूर है कि वह उनके काफिले में चल रही गाडिय़ों में से कहीं भी किसी भी गाड़ी में बैठना नहीं भूलते।

बदली हुई फिजा का आलम यह है कि भारतीय सैनिकों को कश्मीर घाटी के निवासी पहले नफरत की नजरों से देखते थे अब वह भारतीय सैनिकों का अभिवादन कर रहा है। यह भारतवासियों के लिये प्रसन्नता की बात होना चाहिये कि मेरा कश्मीर बदल रहा है।

वंदे मातरम

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