सत्यमेव जयते

भारत के उच्चतम न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट, भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है। उच्चतम न्यायालय का गठन भारतीय संविधान के भाग 5 के अध्याय 4 के तहत किया गया है। भारत की आजादी के पूर्व इसे भारत की संघीय अदालत के रूप में जाना जाता था इसकी इस रूप में स्थापना 1 अक्टूम्बर 1937 को हुई थी।

आजादी के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में इसने 28 जनवरी 1950 से कार्य करना प्रारंभ किया। हमारे देश का उच्चतम न्यायालय अभी तक लगभग 24000 से ज्यादा मामलों में निर्णय कर चुका है। वर्तमान में देश की सर्वोच्च अदालत में माननीय मुख्य न्यायाधीश सहित 34 न्यायाधीश हैं। माननीय मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2 लाख 80 हजार प्रतिमाह एवं न्यायाधीशों का वेतन 2 लाख 50 हजार है। इनके अतिरिक्त आवास, मनोरंजन, स्टॉफ, कार की सुविधा भी सरकार मुहैया कराती है।

संविधान और प्रजातंत्र के प्रहरी उच्चतम न्यायालय ने समय-समय पर देश और समाज को ऐतिहासिक फैसलों से लाभांवित किया है और वर्षों से चले आ रहे विवादों का निपटारा करने में अहम भूमिका निभाई है। हम भारतीयों को इस बात पर भी गौरवान्वित होना चाहिये कि हमारे देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था ने नवंबर 2019 में देश के सबसे संवेदनशील और चर्चित रामजन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर 1949 से चल रहे मुकदमे का सर्वमान्य हल निकालकर दोनों पक्षों को संतुष्ट किया। भूमि को मालिकाना हक वाला यह विवाद तो 500 वर्ष पुराना है। परंतु अदालतों में इसकी शुरुआत 1949 से हुई। हमारे सुप्रीम कोर्ट के तत्कालिक मुख्य न्यायाधीश माननीय रंजन गोगोई ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।

इसके अलावा भी समय-समय पर चाहे कावेरी जल विवाद हो, समलैंगिकता कानून, आधार की वैधता, दिल्ली सरकार का मामला हो या निर्भय हत्याकांड के मामले में अपराधियों को फाँसी के तख्ते पर पहुँचाने में उच्चतम न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका है। निर्भया हत्याकांड में तो 20 मार्च रात को 2.45 बजे न्यायालय के दरवाजे खोले गये और 3.45 पर अपराधियों की याचिका खारिज कर प्रात: 5.30 बजे गुनाहगारों को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया।

आज भी उच्चतम न्यायालय ने देश के 49 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के तारतम्य में याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए आंदोलन को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश माननीय श्री बोवड़े ने केन्द्र सरकार द्वारा साढ़े तीन माह पहले बनाये गये 3 कृषि कानूनों के अमल पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है, साथ ही इन कृषि बिलों पर अपनी राय देने के लिये 4 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है जिसमें डॉक्टर प्रमोद कुमार जोशी जो कृषि क्षेत्र में अंतरर्राष्ट्रीय नीति प्रमुख है।

साथ ही दक्षिण एशिया अंतरर्राष्ट्रीय खाद्य नीति रिसर्च इंस्टीट्यूट में संचालक भी है जिन्हें अनेक अवार्ड मिल चुके हैं। दूसरे हैं भूपिन्दर सिंह मान जो 81 वर्षीय होकर किसान समन्वय समिति के चेयरमेन हैं। तीसरे हैं कृषि आर्थिक विशेषज्ञ अशोक गुलाटी जो इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमी रिलेशन में प्रोफेसर हैं। चौथे शेतकारी संगठन महाराष्ट्र के नेता हैं। यह कमेटी इन कानूनों का अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को प्रस्तुत करेगी।

वास्तव में पिछले 49 दिनों से चल रहा आंदोलन देश की आजादी के बाद पहला ऐसा आंदोलन है जिसमें लगभग सरकार की नौ दौर के बाद भी गतिरोध जारी है। 47 किसानों की मौत हुई है और आत्महत्या भी कर चुके हैं किसान। दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन से यातायात बाधित है। नोटबंदी की तरह इन तीन कृषि कानूनों के लाभ देश के किसानों के हित में है यह समझाने में केन्द्र सरकार बुरी तरह विफल रही है।

कानून लाने के पहले ही देशभर के किसान संगठनों से अलग-अलग दौर की बातचीत कर ली जाकर विपक्षी दलों को भी विश्वास में ले लिया जाता तो शायद सरकार की इतनी दुर्गति नहीं होती। उच्चतम न्यायालय की कल न्यायालय में दी गई सख्त टिप्पणियों से ही सरकार को समझ आ जाना चाहिये कि वह दही के बदले कपास खा गयी है और इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाकर देश के किसानों के हित में वापस लें।
जय जवान- जय किसान

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