इस वर्ष 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव, भाजपा के लिये अग्नि परीक्षा

देश के लिये और विशेषकर भारतीय जनता पार्टी के लिये यह वर्ष राजनैतिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है। देश कोरोना के भय और आतंक से लगभग मुक्ति की कगार पर है। देश में जहाँ पिछले वर्ष 24 घंटों में 95-96 हजार संक्रमित रोगी आ रहे थे वहीं अब यह संख्या घटकर 15-16 हजार तक आ गई है।

लगता है वैक्सीन आने की खबर से ही कोरोना ने अपना बोरिया-बिस्तर बाँधना शुरू कर दिया है। आज से देशभर में वैक्सीन डोज दिये जाने की शुरुआत के बाद स्थितियाँ और सुखद होगी। देश के पाँच राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, आसाम और पुदुचेरी में इसी वर्ष मई माह में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है अत: चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तैयारियाँ प्रारंभ कर दी गई है। संभावना है कि इन पाँच राज्यों में अप्रैल के मध्य या अंत तक विधानसभा चुनाव करवाये जा सकते हैं।

पश्चिम बंगाल की 295 सदस्यों वाली विधानसभा के लिये 292 सीटों पर मतदान होना है (दो सीटें मनोनीत की जाती हैं और 1 पर एंग्लो इंडियन समुदाय के व्यक्ति का मनोनयन होता है)। वर्षों तक पश्चिम बंगाल वामपंथियों का गढ़ रहा है माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कद्दावर नेता ज्योति बसु 21 जून 1977 से लेकर 6 नवंबर 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहकर भारत के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान स्थापित कर गये।

ज्योति बसु की मृत्यु के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य 2000 से 2011 तक मुख्यमंत्री रहे बंगाल के, परंतु 2011 के विधानसभा चुनाव में वामपंथियों का राजनैतिक सितारा बंगाल में अस्त हो गया और काँग्रेस से अलग होकर नया राजनैतिक दल तृणमूल काँग्रेस बनाने वाली ममता बनर्जी ने अप्रत्याशित तरीके से 2011 में चुनाव जीतकर और फिर 292 में से 211 सीटें जीतकर 2016 के विधानसभा चुनाव में राजनैतिक पंडितों के गुणा-भाग में उलटफेर कर दिया था।

कभी बंगाल में लंबे समय तक राज कर चुकी काँग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई थी। सत्ता से बेदखल माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी मात्र 25 सीटों पर ही सिमट गई थी। भारतीय जनता पार्टी को केवल 3 सीटें ही मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी जी के जादुई नेतृत्व के कारण भारतीय जनता पार्टी 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर विजय प्राप्त करने में कामयाब हो गई और तृणमूल काँग्रेस 34 सीटों से खिसक कर 22 पर आ गई।

लोकसभा के चुनाव परिणामों ने बंगाल में मृतप्राय: भारतीय जनता पार्टी के लिये संजीवनी का काम किया। ममता बेनर्जी के लिये इस विधानसभा चुनावों के लिये चुनौती बन चुकी भाजपा बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाने के लिये जी-तोड़ मेहनत कर रही है। विधानसभा में अपने लिये जमीन तलाश रही भाजपा हिन्दुत्व कार्ड खेलने से भी परहेज नहीं कर रही है।

जानकारों का कहना है कि ममता के गढ़ में सेंध लगाना भाजपा के लिये भी टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। उधर बिहार विधानसभा चुनाव से उत्साहित औवेसी की पार्टी भी काँग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लडऩा चाहती है भाजपा इसे अपने लिये फायदे का सौदा मान रही है कि इससे वोटों का धु्रवीकरण होकर हिंदु वोट उसे मिलेंगे परंतु कुछ जानकार इससे ऐतबार नहीं रखते।

हार में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी काँग्रेस मात्र 16 सीटें ही जीत पाई। 2016 के विधानसभा चुनाव में भी काँग्रेस मात्र 44 सीटें ही जीत पाई थी। दुर्दिन समय से गुजर रही काँग्रेस को वामपंथी साथ देने को तो तैयार हैं परंतु अपनी शर्तों पर। कुल मिलाकर इस बार के विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला तृणमूल काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही होगा। 2019 के पंचायत चुनावों में भी भाजपा की प्रचंड विजय से उसके हौंसले बुलंद हैं।

असम में 126 सदस्यों वाली विधानसभा में वर्तमान में असमगण परिषद और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन की सरकार है। 2016 के चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को जीत मिली। भाजपा सरकार के सर्वानंद सोनेवाल ने 15 वर्षों से असम में जारी तरुण गोगोई की काँग्रेस सरकार को हराकर भाजपा को जीत दिलाई। भाजपा को 126 में से 60 पर विजय मिली वहीं उसकी सहयोगी असमगण परिषद को 14 सीटें मिली, जयललिता वाली एआईडीएमके को 13, बोडोलैड पीपुल्स फ्रंट को 12 और काँग्रेस को 26 सीटें मिली। असम के चुनाव में इस बार भारत की नागरिकता और रजिस्टर का मुद्दा प्रमुख रहेगा। वह भाजपा सरकार का भविष्य तय करेगा।

तमिलनाडु 232 विधानसभा की सीटों के लिये मुख्य मुकाबला करुणानिधि की पार्टी द्रविड मुन्नत्र कनडम (डीएमके) और जयललिता की एआईडीएमके (आल इंडिया द्रविड मुन्नत्र कनडम) के बीच है। वर्तमान में 139 सीटों पर एआईडीएमके का कब्जा है और ई.के. पलनिस्वामी मुख्यमंत्री हैं। तमिलनाडु के डीएमके राजनैतिक सलाहकार प्रशांत किशोर इस बार के चुनावों में काँग्रेस का साथ नहीं चाहते हैं। कारण 2016 के चुनाव भी काँग्रेस ने डीएमके के साथ मिलकर लड़ा था और उसे 40 से से मात्र 8 सीटों पर ही विजय मिली थी।

वर्तमान में डीएमके के 89 विधायक हैं। इसलिये मुख्य मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वंदियों एआईडीएमके और डीएमके में ही है। यहाँ भाजपा का खाता नहीं खुला है और ना ही जनाधार है। चुनाव में रजनीकांत पर भी राजनैतिक दल डोरे डाल रहे हैं।
पुदुचेरी की 30 सदस्यीय विधानसभा में 15 सीटों पर काँग्रेस का कब्जा है और उसकी सहयोगी डीएमके पास 2 सीटें हैं। काँग्रेस के श्री नारायण सामी मुख्यमंत्री हैं। भाजपा के लिये यहाँ भी निराशा ही है।

केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिव फं्रट की सरकार है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के गठबंधन वाली सरकार है और माकपा के पिनाराई विजय यहाँ के मुख्यमंत्री हैं। 2016 के चुनाव में 140 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में माकपा को 58, भाकपा को 19, काँग्रेस को 22, मुस्लिम लीग को 18, केरल काँग्रेस को 6, निर्दलियों को 6 और भाजपा को मात्र 1 सीट पर विजय मिली थी। वर्तमान में भाजपा और बुरी हालत में है उसके बहुत से नेता भारतीय जनता पार्टी को छोड़ रहे हैं या दलबदल रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी का पूरा फोकस होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में से बंगाल पर है बाकि असम में वह सरकार बचाने का प्रयास करेगी जबकि केरल, पुदुचेरी, तमिलनाडु में उसे ज्यादा उम्मीदें नहीं है। काँग्रेस के पास कुछ है नहीं और ना ही उसे खोने का डर है। बिहार चुनाव से उत्साहित कम्युनिस्ट पार्टियों (वामदल) में इन चुनावों में उत्साह ज्यादा है और शायद बंगाल और केरल में वह बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

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