टाटा-मिस्त्री विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया टाटा के पक्ष में फ़ैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने टाटा ग्रुप बनाम साइरस मिस्त्री मामले में टाटा ग्रुप के पक्ष में फ़ैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबड़े ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि मामले से जुड़े सभी क़ानून टाटा समूह के पक्ष में हैं.

अदालत ने यह भी कहा कि वो शेयर का मामला सुझलाने के लिए क़ानूनी रास्ता अपनाने का फ़ैसला टाटा सन्स पर छोड़ रही है.

साइरस मिस्री टाटा सन्स के छठे चेयरमैन थे. उन्हें अक्टूबर 2016 में हटा दिया गया था.

साइरस मिस्त्री को 2012 में रतन टाटा के रिटायरमेंट के बाद टाटा ग्रुप की कमान मिली थी. मिस्त्री को जब हटाया गया था तो उन्होंने दावा किया था कि कंपनी एक्ट का उल्लंघन कर उनकी बर्खास्तगी हुई है.

इसके साथ ही उन्होंने टाटा सन्स के प्रबंधन में गड़बड़ी का भी आरोप लगाया था.

चार साल तक टाटा समूह की कमान संभालने के बाद साइरस मिस्त्री को अक्तूबर 2016 में चेयरमैन पद से हटा दिया गया था.

क्यों हटाया गया था सायरस मिस्त्री को?

मिस्त्री शुरू से रतन टाटा की देखरेख में काम कर रहे थे. लेकिन लगता है कि उन्होंने अब ख़ुद ही फ़ैसले लेने शुरू कर दिए थे.

सायरस मिस्त्री के मित्र और सहकर्मी उन्हें मृदुभाषी और सामंजस्य बिठाने वाला व्यक्ति बताते हैं.

वेणु बताते हैं कि भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था में जब 2002 से 2008 के दौरान उछाल आया तो रतन टाटा ने तेजी ने वैश्विक कंपनियां बनानी शुरू कीं थी.

इस दौरान उन्होंने बहुत सी कंपनियों का अधिग्रहण किया और नई कंपनियां बनाईं. कोरस का अधिग्रहण किया, टेटली और कई होटल खरीदे.

वो बताते हैं कि इनमें से बहुत से अधिग्रहण ठीक नहीं थे. मिस्त्री को विरासत में जो कंपनियां मिलीं, उनमें से मुनाफ़ा न कमाने वाली कंपनियों को उन्होंने बेचना शुरू कर दिया.

कुछ हद तक यह रतन टाटा के फैसलों को पलटने जैसा था. शायद रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच कुछ असहमति रही हो जिसकी वजह से यह फ़ैसला लेना पड़ा.

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