राजस्थान पंचायत चुनाव: कांग्रेस की नैया डोली बीजेपी को बढ़त

जयपुर। राजस्थान के 21 जिलों में पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्यों के चुनावों में भाजपा को कांग्रेस पर बढ़त हासिल हुई है। इसके साथ ही इन चुनावों को लेकर पिछले 10 सालों से चला रहा मिथक टूट गया। मंगलवार दोपहर सामने आए 4371 पंचायत समिति सदस्यों के चुनाव में भाजपा के 1836 उम्मीदवार जीत गए हैं जबकि कांग्रेस के 1718 उम्मीदवारों को जीत मिली है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, निर्दलीयों को 422 व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) को 56 जगहों पर विजय प्राप्त हुई है। सीपीआईएम 16 व बसपा ने 3 सीटें जीतीं।  

मंत्रियों के क्षेत्रों में हारी कांग्रेस
वहीं, कुल 636 जिला परिषद सदस्यों के लिए चुनाव भी हुए हैं। अभी तक 598 सीटों के नतीजे आ चुके हैं। इसमें भाजपा को 323, कांग्रेस को 246, निर्दलीय 17, आरएलपी 10 और सीपीआईएम दो सीटें हासिल हुई हैं। यह चुनाव कांग्रेस के लिए किसी झटके से कम नहीं है, क्योंकि कांग्रेस को मंत्रियों के क्षेत्रों में भी हार का सामना करना पड़ा है।  इस बार चुनाव में सचिन पायलट, गोविंद डोटासारा, रघु शर्मा, उदयलाल आंजना और अशोक चांदना जैसे नेताओं के गढ़ों में भी कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। वहीं, चुनावी नतीजों के बाद से कांग्रेस के खेमे में निराशा और भाजपा के खेमे में उत्साह लौट आया है। 

पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्य चुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस में बेचैनी पैदा हो गई है। नेताओं द्वारा पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार असल कारणों को तलाशा जा रहा है। 

इन तीन वजहों से परास्त हुई सत्तारूढ़ पार्टी
ऐसे में आइए जानते हैं उन तीन वजहों के बारे में जिनकी वजह से इस चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस की हार हुई है। 

संगठन बिखरा हुआ: चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस का संगठन ना ही प्रदेश स्तर पर सक्रिय दिखाई दिया और ना ही जिला स्तर पर। इसका खामियाजा पार्टी को हार के साथ चुकाना पड़ा। दूसरी तरफ, विपक्षी भाजपा ने हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी पूरी जी-जान लगा दी। 

जीताने की जिम्मेदारी विधायकों की: कांग्रेस ने इन चुनावों में जीताने की जिम्मेदारी अपने विधायकों के सिर मढ़ दी, लेकिन विधायक ठीक तरीके से जनता को लामबंद करने में विफल रहे। इससे पहले जयपुर, कोटा और जोधपुर के नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस का यही हाल हुआ था। 

टिकट वितरण में परिवारवाद का आरोप: इस चुनाव के लिए जितने भी कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में उतरे, उन्हें लेकर आरोप लगाया गया कि उन्हें विधायकों का रिश्तेदार होने के चलते टिकट मिला है। इससे लोगों के बीच नाराजगी बढ़ी। इसके अलावा कांग्रेस पर टिकट बेचने के भी आरोप लगे।    

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