हैदराबादी पाठ्यक्रम, परीक्षाओं की जल्दबाजी, पालक परेशान

कोरोना काल में शिक्षा व्यवस्था चरमरा रही बच्चों का बौद्धीक स्तर प्रभावित प्रभावित होने लगा है। आन लाईन पढ़ाई ग्रामीण बच्चो को समझने में दिक्कत आ रही है। फिर संपूर्ण वैक्सिनेशन भी बच्चों का नही हो पाया ऐसे में शासन ने बच्चों की जान जोख़िम में डाल एक से आठ तक कि स्कूल निजी स्कूलों संचालकों के दबाव में शुरू कर दी।

पालकों की मुसीबत यह कि स्कूल प्रबंधन बच्चों को फीस के अभाव में खड़े रखते, बच्चों के बस्ते रखवा लेते। थांदला झाबुआ में यह शिक़ायत मिलीं थीं किन्तु शिक्षाधिकारी न कभी गंभीरता से जांच करते ओर न ही निरीक्षण। जिले में एक समाज विशेष की स्कूल में अंग्रेजी में हैदराबादी पाठ्यक्रम चल रहा जो कि गंभीर जांघ का विषय है। व पुस्तकें भी ईसकी मेघनगर झाबुआ संस्था से खरीदने को मजबूरी है। जबकि शासन के स्पष्ट निर्देश है कि पुस्तकें युनिफोर्म संस्था नहीं बेचेंगे।पर अधिकारी कुछ ग़ैर मजहबी संस्थाओ के आगे घुटने टेक देते।

मेघनगर में सेट अर्नोल्ड इंग्लिश मिडियम स्कूल ने नया फरमान जारी करते हुए सबसे पहले परीक्षा कि ऐलान कर दिया जिससे पालकों व उनके बच्चों के लिए मुसीबत आन खड़ी। स्कूल में पन्द्रह फरवरी से स्थानीय परीक्षाए शुरू होगी जबकि मेघनगर कोराना का हैड पॉइंट है फिर भी स्कूल प्रबंधन सर्वोदय इदौर के अनुसार अपने तुगलकी फरमान जारी कर रहे है। पालकों को बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता है तो सकूल वालों को फीस की।

शिक्षा विभाग के अधिकारी निजी मामला कह कर मौन है आखिर जिलाधीश महोदय सोमेश मिश्रा क्यूं नहीं जल्द परीक्षा के तुगलकी फरमान पर संज्ञान लेते। आखिर क्यूं जिला शिक्षा धिकारी अंग्रेजी मानसिकता व हिन्दी बोलने पर डांटने वाली इन संस्थाओं पर शिकंजा नहीं कसते। गत वर्ष की फीस के साथ ईस वर्ष की भी फीस पूरी वसूली की जा रही ।

शिक्षकों की ट्यूशन दुकानों व स्टेशनरी विक्रेता के चहेते स्कूल व प्रबंधन की मनमानी पर शिक्षा संहिता के तहत् कड़ी कानूनी कार्रवाई क्यूं नहीं होंप रही पालकों में यह प्रश्न कौंध रहा।बाहर का स्टाफ कहकर एडमिशन के सब्ज बाग दिखाने वाले इसकूल में स्थानीय व कुछ एक दो पीरियड पढ़ाने के मनमाने शिक्षकों रखने पर खुली छूट मिली हुई है । प्रतिस्पर्धा में जेब वसूली की प्रबन्धन द्वारा खुली लूट की जा रही ।

शिक्षको की भर्ती हेतु भी आवश्यक है कि योग्यता के साथ बीएड डीएड की के साथ लिखीत व मोखिक परीक्षा के बाद चयन किया जाए किन्तु वेध प्रक्रिया के बजाय अंधा बाटे रेवड़ी तर्ज पर अपने चिर परिचित की भर्ती कर ली जाती। समाजसेवी का ढिंढोरा पिटने वाले सरस्वती के शिक्षा स्थल पर बच्चों में धर्म विशेष के पर्व पर लंबा अवकाश रखते किंतु कोरोना जैसी महामारी के मध्य स्थानीय परीक्षाओं की इतनी जल्दी किसी के गले नही उतर रही।

आखिर मध्यप्रदेश में संस्कृति धर्म निभाने वाले भाजपा सरकार में एसी संस्थाओ में खुली लूट छूट पर मौन क्यो है। फिलहाल पहली से आठवीं तक की फरीक्षा की जल्दबाजी से चिंतित पालकों ने शिक्षा विभाग से स्कूल प्रबंधन पर नकेल कसने की मांग सहित परीक्षा पांच मार्च बाद आयोजित करने की मांग करने लगे हैं।

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