मिश्रा, आर्य बने कृपाचार्य लापरवाह द्रोणाचार्य पर कार्रवाई

सूरज से चमकने की चाह रखते हो तो।
सूरज की तरह तपना भी होगा।।
सोने सी कीमत चाहते हो तो।
सोने की भट्टी में जलना भी होगा।

झाबुआ, अग्निपथ। जिले का शैक्षणिक स्तर प्रदेश स्तर पर भी 20 वे से 25 वे पायदान पर है। कमजोर परिणाम विगत वर्षो देने वाले अलीराजपुर ने अचानक छलांग लगाते हुए प्रदेश में श्रेष्ठतम स्थान पाया तो उसका जनक झाबुआ जिले ने प्रदेश में ’नाक कटवा दी’। यह सब हुआ प्रशांत आर्य सहायक आयुक्त की लापरवाही से।

रतलाम में कभी बिजली पोल घोटाले में डीई निकलने से चर्चा के बाद जुगाड़,तिकड़म से समय पूर्व बगैर प्रमोशन के प्रभार लेने वाले आर्य ने ’येड़ा बन पेड़ा’ खाते इसे गच्च हुए की खुद का स्तर लक्ष्मी मैया से सुधार लिया । भले जिले का शिक्षा स्तर जाए भाड़ में। कलेक्टर सोमेश मिश्रा प्रदेश में डाउन हुए परीक्षा परिणामों पर एक्शन मुड़ में तो आए और 5 मई को समीक्षा बैठक ली। शिक्षको को फटकार भी लगी,स्कूलों को झोन में बाटा सिर्फ वेतन रोकने शोकाज नोटिस की कार्रवाही पर हरामखोरो, लापरवाह प्रिंसिपलों के स्कूल ना तो बदले गए न मेघनगर,झाबुआ बीईओ के प्रभार।

लगता है कलेक्टर की डॉट फटकार या तो डरावनी रही या फिर अपन प्रभावी दिखाने वाली। जब तक सहायक आयुक्त आर्य व अनामिका रामटेक जिले में है, आदिवासी बच्चों के शिक्षण का न तो स्तर सुधारना हेै न नियमित मॉनिटरिंग होना हैे। जिले के तीनो विधायको की मौेन चुप्पी की ऐसे अधिकारी को वरदहस्तता ही साबित कर रही। आखिर क्यों नही बदले गए प्रभारी प्राचार्य एम एस खुराना, क्यों नही एन एस नायक उत्कृष्ट विद्यालय के 14 प्रतिशत परिणाम देने वाले व 8 प्रतिशत परिणाम देने वाली वर्षा चौरे पर बड़ी कार्यवाही नही होना, तमाम शिकायतों के बावजूद रामा के जूनियर व्याख्याता,सीनियर प्राचार्य रावत के होते हुए भी बीईओ पद पर टिके हेै तो राणापुर के राकेश सोनी गणित के व्याख्याता होते हुए भी बीईओ के पद पर दूसरे विकासखंड में पदस्थ हैे। जबकि सोनी की पदस्थापना झाबुआ के ढेकल में है ।

सीनियर प्राचार्य के बावजूद थांदला के अहिरवार पर आर्य क्यूं कृपाचार्य बने हैे। मेघनगर में मुख्यालय पर न रहने वाले जीएस देवहरे के लिए भी आर्य का ही सपोर्ट हेै । फिर मेघनगर में तो आर्य ने नियमों को ताक में रख सिविल संहिता ,शिक्षा संहिता के प्रावधानों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। बीईओ कार्यालय के लेखापाल टीसी वर्मा जुलाई में निलंबित हुए जिन्हे जनवरी में बहाल कर पंचपिपलिया इसी ब्लाक में भेजा, किंतु कार्यालय में तीन तीन लेखापाल होने के बाद भी देवहरे आर्य की कृपा से वर्माजी पुन: उसी पद पर बैठ गए। नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रहीहै । पूर्व में भी वर्मा भारती ने नकली तबादला सूची बना सुर्खिया पाई थी। कुछ समय पानी पलटा पर तिकड़मी वर्मा का अंगदी पांव मेघनगर से हटने का नाम नहीं ले रहा।

वर्मा तो ठीक वर्मा के पुत्र पंकज वर्मा भी खालखंडवी की जगह बीइओ में ही जमे हुए हे। यह सब कृपाए आर्य व जनजातीय विभाग के किसी अधिकारी के चलते ही संभव हो सकती है। आर्य साहब का कमाल ही है कि वर्ग दो या यूडीटी शिक्षको के बजाय वर्ग तीन व निम्न श्रेणी शिक्षको ही हॉस्टल के प्रभार दे दिए। ऐसा ही कार्य आर्य के सहयोगी नायक ने की किसी से अनुशंसा करवा कर अपने दो स्वजातीय बंधुओ को मेघनगर उत्कृष्ट विद्यालय का सीएसी(कार्यवाहक) बनाया।

नियम विरुद्ध अतिथि शिक्षको की अनुशंसा

जनजातीय विभाग के पूरे किए में भांग घुली हुई है, तभी आंख मिच कर आर्य ने मेघनगर उत्कृष्ट विद्यालय संकुल में कुछ अफलातून शिक्षको को नियम विरुद्ध गत सत्र में अनुशंसा कर दी। जिसका खामियाजा परीक्षा परिणाम 14 व 26 प्रतिशत के रूप में भुगतना पड़ा । फिर संकुल में अटेचमेंट का बड़ा खेल भी परिणामों के लिए जिम्मेदार है।

हाल ही में रंभापुर हॉस्टल अधीक्षक पद मेघनगर प्रायमरी के शिक्षक को प्रभार दे दिया गया, जबकि हॉस्टल अधीक्षक की नियुक्ति जिले से होना थी या फिर रंभापुर संकुल के किसी शिक्षक को प्रभार देना था। उत्कृष्ट विद्यालय में राजनीति,विज्ञान,इतिहास के अतिथि शिक्षक की नियुक्तियां नही हो सकी। सूत्रों की माने तो यहां राजनीति,इतिहास का पद खाली बताया ही नहीं गया, कारण यह कि मूल पदस्थ व्याख्याता भूगोल प्रकाश डामोर थांदला तलावली के प्रभारी प्राचार्य पद पर जो काबिज हैे।

पूरक परीक्षा की तैयारी कागजी

दसवी में अंग्रेजी,विज्ञान सामाजिक विज्ञान व बारहवी में अंग्रेजी,अर्थशास्त्र,वाणिज्य,रसायन, भौतिकी के अधिकांश विद्यार्थी पूरक में है। कलेक्टर के निर्देशन में इनके अध्ययन केंद्र भी बने। 8 वी से 12 वी शाला संचालन का दावा किया जा रहा, किंतु सभी दूर कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे। हकीकत में कुछ केंद्र पर शिक्षक नजर आते। बच्चे शादी ब्याह में , तो शिक्षक ग्रीष्मावकाश में। अतिथि शिक्षको को दो माह का वेतन नहीं दिया गया जिसका अर्थ उनकी नियुक्ति भी नही।

इधर व्याख्याता के पद खाली विज्ञान,अंग्रजी के शिक्षक है ही नहीं तो केैसा अध्ययन व कैेसा अध्यापन। पंचायत चुनाव सिर पर खड़े है जनप्रतिनिधियों को अपनी कुर्सी बचाने की चिंता है । काश वे बच्चो के भविष्य की चिंता करे व हरामखोर शिक्षको का स्कूल चुनाव पहले ही बदलाव करवाए तभी शिक्षा नीति सार्थक होना संभव हेै। हम तो यही कहेंगे कि-

जीवन में अभी असली उड़ान बाकी है,
हमारे इरादों का अभी इम्तिहान बाकी है,
अभी तो नापी है हमने थोड़ी मुठ्ठी भर जमीन,
अभी तो नापने के लिए पूरा आसमान बाकी है।

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