त्रेता के बाद कलियुग में भी दहक उठी श्रीलंका

त्रेता युग में प्रभु राम द्वारा रावण का अंत इसलिये किया था कि उसने अहंकार के वश में होकर राजधर्म, सदाचरण, नीति, सत्य धर्म का साथ छोडक़र अधर्म का मार्ग अपनाया था। रावण की लंका को श्रीराम के सेवक हनुमान ने रावण के पाप, सीता के संताप, विभीषण के जाप और हनुमानजी के पिता ‘पवन’ की मदद से जलाकर राख कर दिया था।

त्रेता के बाद द्वापर युग आया और अब वर्तमान कलियुग जिसमें लंका अब ‘श्रीलंका’ हो गयी है। भारत के दक्षिण भाग से मात्र 31 किलोमीटर दूर 65 हजार 610 वर्ग किलोमीटर में फैली श्रीलंका की वर्तमान आबादी लगभग 2 करोड़ 13 लाख 57 हजार 143 है। यूँ तो श्रीलंका का इतिहास 5000 वर्ष पुराना ही माना जाता है परंतु खुदाई में 1 लाख 25 हजार वर्ष पुरानी बस्तियां मिलने की भी बात कही जाती है।

प्राचीनकाल में लंका पर शाही सिंहल वंश का ही शासन था। कई बार लंका में सत्ता बदली है। सन 1818 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंका पर अपना कब्जा जमा लिया था। 130 वर्षों की गुलामी के बाद 4 फरवरी 1948 को लंका संयुक्त राज्य अमेरिका की गुलामी से मुक्त होकर श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य बना। वर्ष भर में 100 से 200 इंच तक की वर्षा वाला लंका तीन पर्वत श्रृंखलाओं से मिलकर बना है। जिसमें ‘सुबेल पर्वत’ एक ओर है जहाँ राम-रावण युद्ध हुआ था, दूसरी ओर नील पर्वत श्रृंखला है जहाँ रावण का महल था, तीसरी ओर सुंदर पर्वत है जहां अशोक वाटिका हुआ करती थी।

मान्यता है कि आज भी लंका के जंगलों में रावण का शव सुरक्षित है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिये सोने की लंका का निर्माण करवाया था जिसे रावण ने छलपूर्वक भोलेनाथ से मांग लिया था। रावण द्वारा किये गये छल से नाराज होकर पार्वती जी ने रावण को कुल सहित नाश होने का श्राप दिया था। श्रीलंका की वर्तमान आबादी में 74 प्रतिशत सिंहली 18 प्रतिशत तमिल और 7 प्रतिशत ईसाई निवास करते हैं।

दक्षिण एशियाई देशों में सर्वाधिक 92 प्रतिशत साक्षरता दर रखने वाला श्रीलंका 27 वर्षों तक गृहयुद्ध का दंश भी झेल चुका है जुलाई 1983 से प्रारंभ हुआ यह युद्ध तमिलों और शासन के बीच हुआ था जो मई 2009 में तमिल लिट्टे आतंकवादी संगठन की समाप्ति के बाद खत्म हुआ था जिसमें 80000 लोग मारे गये थे।

श्रीलंका की कुल आबादी के 70.2 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है (लगभग 1 करोड़ 42 लाख है) छोटे से देश श्रीलंका जो भारत की आबादी की तुलना में मात्र 2 प्रतिशत है वहाँ पर 6000 बौद्ध मठ (विहार) और लगभग 15000 बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियां है। त्रेता युग के बाद कलियुग में एक बार फिर श्रीलंका दहक रही है। देश में अराजकता का माहौल है अब प्रभु राम का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ के नागरिक सडक़ों पर है और राजधर्म से विमुख होने वाले निरंकुश सत्ताधारियों के महलों पर कब्जे कर रहे हैंं और प्रजातंत्र के रावण रूपी नेता अपनी जान बचाते फिर रहे हैं। स्वस्थ प्रजातंत्र के लिये मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है, यदि सत्ता अहंकार के मद में निरंकुश होती है तो वह अविवेकपूर्ण निर्णय लेने लगता है जिसका खामियाजा पूरा राष्ट्र भुगतता है।

श्रीलंका में भी कुछ ऐसा ही हुआ अति महत्वकांक्षा के चलते चीन से कर्जा लेकर हाइवे और पुलों का निर्माण और फिर गत वर्ष अप्रैल 2021 में राष्ट्रपति राजपक्षे ने जैविक खेती की घोषणा कर दी जिसमें रासायनिक खाद पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जिसके फलस्वरूप किसानों ने खेती बंद कर दी उत्पादन घटकर 50 प्रतिशत रह गया है।

चीनी, चाय, चावल के भाव बढ़ गये हैं। अनाज खत्म हो गया। आलू 200 रुपये प्रति किलो, चावल 500 रुपये, मिर्च पावडर 1900 रुपये किलो, 400 ग्राम वाले दूध की कीमत 790 रुपये, 250 रुपये किलो चीनी, 100 रुपये की एक प्याली चाय एक अदूरदर्शी निर्णय ने एक पूरे देश को बर्बाद कर दिया। श्रीलंका की बर्बादी से हमारे भारत के नेताओं को भी सबक लेना चाहिये। मध्यमवर्ग पर भारी टैक्स लगाकर वोट की खातिर मुफ्त बांटने की मानसिकता बदलनी होगी, नहीं तो श्रीलंका की तरह हमें भी बर्बाद होने में समय नहीं लगेगा।

मैं बौद्ध के अनुयायियों, श्रीलंका के नागरिकों के राष्ट्रभक्ति पूर्ण और अनुशासित इस रक्तहीन क्रांति को दण्डवत प्रणाम करता हूँ। जिन्होंने श्रीलंका की धरती पर रक्त की बूँद बहाये बिना सत्ता पलट दी। राष्ट्रपति भवन में मिले करोड़ों रुपये सेना के हवाले कर दिये, भवन को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, बल्कि उसके परिसर को साफ किया, इतने बड़े प्रदर्शन दौरान कोई लूटपाट, अराजकता नहीं। शायद श्रीलंका में बुद्ध और बुद्धत्व अभी जिंदा है।

– अर्जुन सिंह चंदेल

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