नेताओं की गोद में बैठने वाले ये संत हैं या शैतान..?

जिस हिंदुस्तान के अतीत को गुरू विश्वामित्र, गुरू वशिष्ठ जैसे अनेक संत-महात्मा मिले हो, जिन्होंने ईश्वर की बातों को समाज के बीच जाकर समझाया हो, व्यक्ति का विकास कैसे हो, ज्ञान कैसे विकसित हो, शरीर, धन, ज्ञान को विकसित करने वाली संत-महात्माओं की परंपरा का निर्वहन किया हो वही संत-महात्मा कहलाने का अधिकारी है। हमारे धार्मिक ग्रंथ बताते हैं कि विश्वामित्र जैसे संत-महात्माओं ने ही दशरथ के बेटे राम को गढक़र उनके चरित्र के गुणों को प्रस्फुटित कर श्रीराम बना दिया था।

हमारा पुरातन अतीत यह बताता है और हमारा वर्तमान, कलयुग हमें आकाश (हेलीकॉप्टर) में उडऩे वाले, एसी में रहने वाले सुविधा भोगी आसाराम, राम-रहीम (हरियाणा), कम्प्युटर बाबा, नित्यानंद रामपाल (हरियाणा), वीरेन्द्र देव दीक्षित (दिल्ली), भीमानंद परमानंद (तमिलनाडु), नारायण सांई जैसे बाबाओं को दिखा रहा है जो हत्या, यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों के आरोपी हैं और इनमें से अधिकतर भारत में विभिन्न जेलों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

हमारे गं्रथों में जिन संत-महात्माओं का उल्लेख मिलता है उन्होंने कभी-भी सत्ता सुख की इच्छा नहीं रखी वह जंगल में कुटिया बनाकर साधारण जीवन जीते थे। जब उन्हें लगता कि उस राज्य का राजा संकट में है तब-तब वह राजमहलों में जाकर उसे धर्म और ज्ञान की शिक्षा देते थे। उसे राजतंत्र की मर्यादाओं का पालन करते हुए बड़ी से बड़ी समस्या का हल बताकर धर्मनीति की राह दिखाते थे। इसी कारण उस समय के बड़े से बड़े राजा-महाराजा, चक्रवती सम्राट भी साधु-संतों की अगवानी के लिये सिंहासन छोडक़र नगर की सीमा पर जाकर उनकी चरण-रज को माथे पर लगाकर अगवानी करते थे।

हमने पढ़ा है ऋषि दुर्वासा के व्यक्तित्व को जिनके क्रोध से अच्छे-अच्छे सूरमा शासक घबराते थे यह है हमारे ऋषि मुनियों, संत, महात्माओं का गौरवशाली इतिहास। एक आज का परिदृश्य है जहां कई साधु के वेश में शैतान हैं। देश की धर्मभीरू जनता भी इनके गुनाहों के लिये कम गुनाहगार नहीं है। कथावाचक बनकर लोगों की भावनाओं से खेलकर यह बाबा श्रद्धालुओं को गुमराह कर धीरे-धीरे उनके भगवान बन जाने में सफल हो जाते हैं।

हजारों-लाखों भक्तों के विश्वास को जीत जाने के बाद यह बाबा अपना असली रूप दिखाकर अकूत धन संपदा अर्जित करके अपना साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं। हमने आसाराम को देखा है जिसने अपने मायाजाल से पूरे देश में अरबों-खरबों की जमीनें और संपत्तियां बना ली है। दक्षिण भारत के नित्यानंद ने तो धर्म की अफीम अपने अनुयायियों को सूंघाकर इतनी संपत्ति कमाई की उसने अपना एक नया देश ही बना डाला। मथुरा के रामपाल जिसने मथुरा में सैकड़ों बीघा शासकीय भूमि पर कब्जा कर आश्रम बना डाला था।

राम-रहीम का सिरसा में अरबों का आश्रम है। हाँ! पर इन सब तथाकथित बाबाओं में एक बात कॉमन है वह यह कि इन सब पर किसी न किसी राजनैतिक दल का वरदहस्त जरूर रहता है जिसके नीचे रहकर यह बाबा रूपी विषैली बेलें फलती और पनपती है।

ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश के कथित कम्प्युटर बाबा का है जिसे बिना जाँचे परखे प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिये उसे प्रश्रय दिया और खुश करने के लिये राज्यमंत्री का दर्जा तक दे दिया। राजनैतिक महत्वाकांक्षी कम्प्युटर बाबा को जगह-जगह प्रोटोकाल मिलने लगा, लाल बत्ती लगा शासकीय वाहन, पायलट सुरक्षाकर्मी, सुख-सुविधा सब कुछ उसे भाजपा ने उपलब्ध कराकर उसे गुंडई और अपराध करने की खुली छूट का लायसेंस दे दिया जिसका उसने जमकर दुरुपयोग किया।

कम्प्युटर बाबा का हित पूरा नहीं होने पर वह शिवराज सिंह से नाराज होकर दिग्विजयसिंह के खेमे में आ गया, भाजपा-काँग्रेस एक ही चरित्र की होने से काँग्रेस ने उसको अपने दामन में ले लिया और काँग्रेस शासनकाल में भी वह राज्यमंत्री का दर्जा पाने में सफल हो गया। नैतिकता का पतन तो इन बाबाओं का तभी समझ में आ जाता है जब यह अपने निजी स्वार्थों के लिये राजनैतिक दलों का सार्वजनिक रूप से प्रचार-प्रसार करते हैं।

प्रदेश में पुन: सत्ता वापसी होते ही भारतीय जनता पार्टी को बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर ज्ञान हो गया और कम्प्युटर बाबा में अपराधी नजर आ गया। बाबा के सारे दुष्कर्मों का पता चल गया और प्रशासन ने चला दिया बुलडोजर। बाबा अब जेल में हवा खा रहे हैं। धन्य हैं राजनैतिक दल और ऐसे बाबा।

ऐसा नहीं है कि सभी बाबा, संत-महात्मा बुरे हैं। इसी देश ने सादगी की प्रतिमूर्ति डोंगरे महाराज, मुरारी बापू, सत्य मित्रानंद जी जैसे अनेक संत-महात्माओं को भी देखा है। इसी कड़ी में वाल्मीकि धाम के उमेशनाथ जी महाराज को भी गिना जा सकता है।

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