फरमान जारी करने के पहले हकीकत भी जानो साहब बहादुरों

प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित वल्लभ भवन के वातानुकूलित कमरों में बैठकर तुगलकी फरमान जारी करने वाले नीति नियंताओं के कारण पिछले तीन दिनों से प्रदेशवासी हैरान परेशान है। जिन घरों में शादी ब्याह के मंगल गीत गाये जाने वाले थे उन घरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। हिंदुओं में देवउठनी ग्यारस पर बिना मुहुर्त के भी शादी-ब्याह करने की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है।

इसी कारण देवउठनी ग्यारस के दिन शहर की कोई धर्मशाला, होटल, मैरिज गार्डन खाली नहीं मिलते थे। हर बार की तरह इस बार भी 2५ नवंबर को काफी शादियों का आयोजन होना है, परंतु शासन के निर्देशों ने शादियों की तैयारियों पर पानी फेर दिया। जिन घरों में शादियां है और इस समय मेहमानों की अगवानी होनी है उन घरों के मुखिया मेहमाननवाजी छोडक़र विवाह की अनुमति के लिए कोठी महल और थानों के चक्कर काट रहे हैं।

जिस तरह से अचानक हुई नोटबंदी के कारण मध्यमवर्गीय परिवारों ने मानसिक यंत्रणा झेली थी ठीक वैसी ही मानसिक त्रासदी से इस समय भी शादी-ब्याह वाले परिवारों के लोग गुजर रहे हैं। एक अजीब सी स्थिति पैदा हो गई है। नाते-रिश्तेदारों के यहां आमंत्रण-पत्र भेजे जा चुके हैं, हलवाई, डीजे, लाइट डेकोरेशन, घोड़ी, बैण्ड, गार्डन, ढोली और होटलों को अग्रिम जमा कराया जा चुका है।

वर पक्ष को यदि बारात लेकर जाना है तो बस वालों ने एडवांस जमा करा लिया है। अब शासन के आदेश के बाद शादी-ब्याह वाला परिवार बुरी तरह परेशानी में फँस गया है। आमंत्रण-पत्र वितरित होने के बाद वह किसे और कैसे मना करे विवाह समारोह में आने के लिये। दूसरी ओर गार्डन या होटल संचालकों पर प्रकरण दर्ज होने की खबर से वह सब भी डर गये हैं। वह निर्धारित संख्या से ज्यादा लोगों के कार्यक्रम करने से हाथ ऊँचे कर रहे हैं।

भोपाल में बंद कमरों में बैठकर आदेश पारित करने से बेहतर होता कि धरातल पर इस आदेश से क्या परिस्थितियां उत्पन्न होगी उस पर विचार किया जाता। जब देश में प्रतिदिन 95-96 हजार कोरोना संक्रमित निकल रहे थे तब भी इस तरह के आदेश लागू नहीं थे और जब आज प्रतिदिन 45-46 हजार कोरोना संक्रमित (आधे से भी कम) निकल रहे हैं तो इस तरह के तुगलकी फरमान की आवश्यकता क्यों? देशवासियों ने मात्र 15-20 दिनों पूर्व ही बिहार चुनावों के साथ मध्यप्रदेश के उपचुनाव भी देखे हैं जिसमें नेता हजारों की भीड़ के बीच भाषण पिला रहे थे। तब ना कोई सोश्यल डिस्टेंसिंग, ना ही मास्क, ना ही शासन के दिशा-निर्देशों का पालन क्योंकि ‘सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का’।

अरे भोपाल में बैठे साहब बहादुरों इस आदेश को निकालने के पहले उन गरीब टेंट हाऊस, लाइट डेकोरेशन वालों, बैंड वालों, घोड़ी-बग्घी वालों, जनरेटर वालों, हलवाई, कैटर्स और विवाह समारोह से जुड़े प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों परिवारों के बारे में भी सोचा होता जिनके परिवार पिछले 9 माहों से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

शायद उन सैकड़ों घरों में इस बार दीपावली भी नहीं मनी होगी, देव उठनी ग्यारस की बाट जोह रहे इन परिवारों ने विवाह समारोह की आस में कर्ज लेकर तैयारियां कर रखी थी, टेंट वालों ने नया माल बनवाया होगा, केटरिंग का काम करने वालों ने नये बर्तन सारा सामान नया करवाया होगा। उन सभी के बारे में भी विचार किया जाता तो बेहतर होता। बारात पूरी तरह प्रतिबंधित करने की बजाय समारोह स्थल से १००-५० मीटर के दायरे में निकले और अतिथियों की संख्या भी एक समय में कार्यक्रम स्थल की क्षमता के मुताबिक तय हो जाए तो भी आम जनता और व्यवसायियों को सुविधा होगी। समय की दरकार है कि जनप्रतिनिधि एक मत से इन नियमों में शिथिलता की मांग मुख्यमंत्री से करे।

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