अग्निपथ पर 31 वर्ष

shivpratap shingh (dainik agnipath)

अग्निपथ अपनी यात्रा के आज 31वें पड़ाव पर है। अग्निपथ की इस 31 वर्षों की अविराम यात्रा के अवसर पर आप सभी संवाददाताओं, पाठकों, विज्ञापनदाताओं, वितरकों एवं अग्निपथ परिवार के सभी साथियों को बधाई देता हूँ। साथ ही उन सभी शुभचिंतकों का भी शुक्रगुजार हूँ जो ‘अग्नि’ ‘पथ’ में हमसफर बने।

मैं इस बात पर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि अग्निपथ ने किसी लक्ष्मीपुत्र या औद्योगिक घराने की तिजोरी की कोख से जन्म नहीं लिया बल्कि एक ठाकुर शिवप्रताप सिंह (स्वर्गीय) की आग उगलती लेखनी की कोख से जन्म लिया है। जीवन भर धन्ना सेठों के समाचार पत्रों में संपादक पद के दायित्व का निर्वहन करते-करते उम्र के अंतिम पड़ाव पर जाकर मूर्धन्य पत्रकार ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी ने 1 दिसंबर 1989 को दैनिक अग्निपथ का प्रकाशन प्रारंभ किया।

ठाकुर साहब की ‘लक्ष्मी’ जी से कभी नहीं पटी परंतु ‘माँ सरस्वती’ के साधक होने के नाते उनका वरदहस्त सदैव उन पर रहा। एक छोटी सी 50 हजार मूल्य की सिलेण्डर मशीन से सफर प्रारंभ हुआ वह भी घी मंडी स्थित किराये के मकान से। अभावों के बीच शुरू हुए ‘अग्निपथ’ को लेकर तमाम तरह की कुशंकाओं ने भी जन्म लिया। दुश्मन कहने लगे अग्निपथ ज्यादा दिन नहीं टिक पायेगा परंतु शायद पिताजी ने इसका नाम सोच समझकर ही तय किया था।

मालवा के लोगों द्वारा दिये गये अग्निपथ को असीम प्यार की बदौलत इसे वह संजीवनी मिली जो किसी पौधे को खाद, बीज, पानी के रूप में मिलती है। पौधे रूपी अग्निपथ को पाठकों की ओर से खाद, बीज, पानी मिलता गया और वह अग्निपथ शनै:-शनै: विकसित होता गया। सिलेण्डर से शीट फेड, शीट फेड से वेब ऑफसेट और फिर रंगीन हो चला आपका अग्निपथ।

इस बीच किरायेदारी से अग्निपथ स्वयं भवन का मालिक बना, सुंदर कार्यालय जिसे देखकर ईष्या होना स्वाभाविक है। अग्निपथ के शैशवकाल में जिस तरह एक बच्चे को जन्म देने के बाद माँ को उसकी देखभाल करनी होती है ऐसी ही चंदेल परिवार द्वारा की गई। 16-16 घंटे बिना रूके, बिना थके परिश्रम करना पड़ा। दूसरे शब्दों में जीवन का वह बहुमूल्य समय जिसमें अधिकांश मनुष्य घूमने-फिरने, ऐशो-आराम में व्यतीत करता है वह सारा समय हम भाइयों का अग्निपथ को बड़ा करने में ही लग गया।

मेहनत रंग लाई चंदेल परिवार की और आज आपका अग्निपथ बुलंदियों पर है। समय के साथ चलते हुए अग्निपथ ने आधुनिक से आधुनिक तकनीक अपनाई। अब अग्निपथ की भी पेस्टिंग नहीं होती सीधे कम्प्युटर से ही प्लेट मैकिंग मशीन पर जाता है। बीते वर्षों में हमने उच्च क्वालिटी की मुद्रण व्यवस्था अपने पाठकों को देने का प्रयास किया।

ऐसा नहीं है कि हमने इन 31 वर्षों की यात्रा में सब पाया ही पाया, हमने बहुत कुछ खोया भी है जिसकी क्षतिपूर्ति असंभव है। काल के क्रूर हाथों ने हमारे संस्थापक पूज्य पिताजी ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी, चंदेल परिवार की मातोश्री हमारी माताजी श्रीमती स्नेहप्रभा देवी, अग्रज प्रभात कुमार चंदेल, हमारे साथी जगदीश सांकलिया को हमसे छीना है।

अग्निपथ के इस जन्मदिन पर मैं उन साथियों का भी स्मरण करना चाहूँगा जिन्होंने कँधे से कँधा मिलाकर ‘अग्निपथ’ की विकास यात्रा में अपना योगदान दिया परंतु दुर्भाग्य से वर्तमान में वह हमारे बीच इस संसार में नहीं है जिनमें प्रमुख रूप से हमारे शाजापुर संवाददाता मरहूम न्याजुद्दीन कुरैशी, सोयतकलाँ के संवाददाता मरहूम मुन्ना बेग, बडऩगर के संवाददाता स्वर्गीय रतनलाल जी ओसतवाल, मक्सी के संवाददाता स्वर्गीय रामचंद्र लोधी जी जिनका बहुत बड़ा योगदान रहा है इनका अग्निपथ सदैव ऋणी रहेगा।

आज अग्निपथ मालवा ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश राज्य की लगने वाली सीमाओं सुदूर गुजरात के नजदीक झाबुआ-आलीराजपुर, राजस्थान की नजदीकी सीमा सोयतकलाँ-डोंगरगाँव तक पहुँच चुका है।
मैं बड़े गर्व के साथ कह सकता हूँ अग्निपथ के पास आज जो अनुभवी पत्रकारों की टीम है ऐसी किसी अन्य समाचार पत्र के पास उज्जैन में तो नहीं है। सतीश गौड़ जी, प्रशांत अंजाना, ललित जैन, प्रबोध पांडेय, जितेश सिंह के साथ ही कम्प्युटर कक्ष में संपादकीय टीम में दक्ष हरिओम राय, जयप्रकाश शर्मा, राजेन्द्र रघुवंशी, मनोज भटनागर, आकाश तंवर तथा मुद्रण-प्रबंधन-लेखा विभाग में भी अनुभवी लोगों की टीम है जिस पर गर्व होना स्वाभाविक ही है।

मैं इस अवसर पर अग्निपथ परिवार के सभी सदस्यों को पुन: बधाई देता हूँ। और कर्मयोगी पूज्य पिताजी और अग्निपथ के संस्थापक ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी को भी नमन करता हूँ जिनके स्वेद कणों की बदौलत 31 वर्ष पूर्व रोपा गया यह पौधा वटवृक्ष बन गया है।

चंदेल परिवार की दूसरी पीढ़ी भी अब कर्म के अंतिम सौपान पर है और तीसरी पीढ़ी का आगाज हो चुका है। किसी समाचार पत्र के लिये 31 वर्ष का समय ज्यादा मायने नहीं रखता अभी तो अग्निपथ ने जवानी की दहलीज पर ही कदम रखा है। वर्तमान पीढ़ी को भी अभी ‘अग्निपथ’ पर ही चलना है। हो सकता है चौथी पीढ़ी को अग्निपथ के और विराट स्वरूप के दर्शन हो।

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