कृषि कानूनों के विरोध सहारे काँग्रेस ने तलाश की अपनी खोयी जमीन

28 विधानसभा सीटों के लिये हुए उपचुनावों के परिणामों के बाद शिवराज सिंह की सत्ता में वापसी और काँग्रेस को वनवास के बाद मध्यप्रदेश की पूरी काँग्रेस पार्टी केन्द्रीय नेतृत्व की तरह अवसाद में आ गई थी। हताशा में डूबी 136 वर्ष पुरानी काँग्रेस सुध बुध ही गवां चुकी थी उसे यह भी एहसास नहीं रहा कि उसे मध्यप्रदेश की राजनीति में अब विपक्ष की भूमिका निभानी है।

एक अच्छे प्रजातंत्र के लिये सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है, विपक्ष कमजोर होने पर सत्ताएँ निरंकुश हो जाती है जो प्रजा और प्रजातंत्र दोनों की सेहत के लिये नुकसानदेह है। भला हो पंजाब के उन किसानों का जो केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 55 दिनों से प्रतिकूल मौसम में बारिश सर्दी की परवाह किये बिना डटे हुए हैं। किसानों की इस जीवटता ने केन्द्र की भाजपा सरकार की पेशानी पर पसीना साफ दिखाई दे रहा है नौवें दौर की चर्चा बेनतीजा रहने के बाद भी किसानों के उत्साह में कमी की जगह उत्साह का संचार हो रहा है भले ही देश का अधिकांश मीडिया इस आंदोलन को तवज्जो ना दे रहा हो परंतु हिंदुस्तान का हर आदमी किसानों के दर्द को महसूस जरूर कर रहा है।

देशवासियों की सहानुभूति की ऊर्जा ही आंदोलनरत किसानों का हौंसला बढ़ा रही है। आगामी गणतंत्र दिवस 26 जनवरी पर किसानों द्वारा टै्रक्टर मार्च की घोषणा से सरकार के होश फाख्ता है। किसानों के इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मीडिया बढ़-चढ़ कर दिखा रहा है जिससे विश्व में भारत की छवि खराब हो रही है। किसानों के प्रति बढ़ती सहानुभूति और शनै:-शनै: अन्य राज्यों से भी आंदोलन को मिल रहा समर्थन केन्द्र की सरकार के लिये चिंता का कारण बनता जा रहा है पश्चिम बंगाल की फायर ब्रांड मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सार्वजनिक रूप से कृषि कानून बिलों का विरोध करते हुए बंगाल के किसानों को भी उत्साहित कर दिया है।

आने वाले दिनों में बंगाल में भी कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का मजबूत आंदोलन देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। पंजाब और हरियाणा के जीवट किसानों के इस ऐतिहासिक आंदोलन ने मृत प्राय: काँग्रेस पार्टी में भी प्राण फूँकने का कार्य किया है। किसानों की एकता और सशक्त आंदोलन को देखकर काँग्रेस के राहुल और प्रियंका गाँधी वाड्रा ने काँग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली में किसानों के समर्थन और कृषि कानूनों के विरोध में प्रभावशाली प्रदर्शन कर पार्टी में उत्साह का संचार कर दिया है।

उसी के परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कृषि कानूनों के विरोध में काँग्रेस ने जबर्दस्त टै्रक्टर मार्च निकालकर दिखा दिया है कि यदि काँग्रेसी आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ मैदान में आ जाये तो किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। लगभग 600-700 टै्रक्टरों के साथ आज के प्रदर्शन की चर्चा हर नागरिक की जुबान पर है।

आज के प्रभावी प्रदर्शन के पीछे का एक कारण आने वाले माहों में नगर पालिकाओं, ग्राम पंचायतों, नगर निगमों के चुनाव भी हैं अपने वरिष्ठ नेताओं के सामने अच्छा प्रदर्शन करने के लिये हर दावेदार कार्यकर्ता ने ईमानदारी से मेहनत करके आंदोलन को सफल बनाया।

आज के टै्रक्टर मार्च के माध्यम से तराना के तेज-तर्रार विधायक महेश परमार ने उज्जैन नगर निगम चुनाव में महापौर पद के प्रत्याशी के लिये चुनावी दंगल में अपनी ताल ठोक दी है और सही भी है काँग्रेस के दावेदारों की भीड़ में महेश परमार ही एक सशक्त चेहरा है जिसके पास विधायक होने के नाते कार्यकर्ताओं की टीम भी है जो नागरिकों के कार्य भी दूसरे दावेदारों की तुलना में ज्यादा आरामदायक तरीके से करवा सकता है और सबसे बड़ी बात खोने के लिये कुछ भी नहीं है जीत गये तो महापौर और विधायक दोनों पदों का दायित्व निभाना है और दुर्भाग्यवश हार गये तो विधायकी तो सुरक्षित है ही।

हमारी अग्रिम शुभकामनाएँ महेश जी को काँग्रेस के संभावित प्रत्याशी बनने की। उज्जैन की काँग्रेस ने भी कृषि कानून के विरोध के सहारे अपनी खोयी जमीन तलाशने की शुरुआत की है।

जय-किसान

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