होशियार! प्रदेशवासियों बढ़ रहा है तुम पर कर्ज का बोझ

सावधान मध्यप्रदेशवासियों सरकार चाहे काँग्रेस की हो या भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश के हर बच्चे, महिला, पुरुष पर कर्जा बढ़ता ही जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-2018 के दौरान मध्यप्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति पर जहाँ 21 हजार का कर्जा था वह बढक़र 2018-2019 के वित्तीय वर्ष में बढक़र 25 हजार और 2019-2020 में बढ़ता-बढ़ता 29 हजार तक पहुँच गया है।

8 करोड़ 50 लाख के लगभग की आबादी वाले हमारे प्रदेश के बहुत कम नागरिकों को जानकारी होगी कि वह बाजार का कर्जदार है। संभावना है कि 31 मार्च 2021 आते-आते प्रदेश के प्रति निवासी पर कर्ज बढक़र 33 हजार रुपये हो जायेगा। काँग्रेस की सरकार बनी तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने भी अपने चुनावी वादे पूरे करने के लिये जैसे किसानों की कर्जा माफी, बिजली बिल माफी आदि के लिये बाजार से खूब कर्जा लिया वैसे ही प्रदेश के वर्तमान मुखिया शिवराज सिंह भी उसी नक्शे कदम पर चल रहे हैं अपने नौ माह के कार्यकाल में शिवराज जी ने 17 बार कर्जा किया है।

कोरोना महामारी ने सरकार की आर्थिक स्थिति को भी पलीता लगा दिया है। वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने सरकारी खजाने की स्थिति सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है। हाल ही में शिवराज सरकार ने 6.76 प्रतिशत सालाना ब्याज दर पर 20 साल की अवधि के लिये 2000 करोड़ रुपये का कर्ज बाजार से लिया है।

शिवराज सिंह जी ने 23 मार्च को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी बीते 10 माह में 17 बार मध्यप्रदेश सरकार ने बाजार से कर्ज लिया है। शिवराज सरकार 10 माह में 16500 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। केन्द्र सरकार द्वारा 2020-2021 के लिये राज्य सरकार को 34,003 करोड़ का कर्जा लेने की अनुमति थी जिसे से शिवराज सरकार अभी तक 31,630 करोड़ रुपये कर्जा ले चुकी है। अब 31 मार्च तक शिवराज सरकार 2373 करोड़ का कर्जा और बाजार से ले सकती है।

शिवराज सरकार ने 9 माह दौरान 01 अप्रैल 2020 को 500 करोड़, 30 मई को 500 करोड़, 06 जून को 500 करोड़, 03 जुलाई को 1000 करोड़, 08 जुलाई को 1000 करोड़, 13 जुलाई को 1000 करोड़, 07 अगस्त को 1000 करोड़, 05 सितम्बर को 1000 करोड़, 15 सितम्बर को 1000 करोड़, 03 अक्टूबर को 1000 करोड़, 08 अक्टूबर को 1000 करोड़, 15 अक्टूबर को 1000 करोड़, 29 अक्टूबर को 1000 करोड़, 05 नवंबर को 1000 करोड़, 12 नवंबर को 1000 करोड़, 18 नवंबर को 1000 करोड़ और 18 दिसंबर को 2000 करोड़ का कर्जा लिया है।

केन्द्र सरकार ने सीमा से अधिक कर्ज लेने की मंजूरी शिवराज सरकार को वन नेशन वन राशन कार्ड, बिजली सप्लायी में सुधार और प्रॉपर्टी टैक्स की नई गाईड लाईन जारी करने की शर्त पर दी है। वर्ष 2017-2018 में मध्यप्रदेश सरकार पर कुल 1,52,000 करोड़ का कर्ज था जिसकी किश्त में 5000 करोड़ मूल भुगतान में और ब्याज पर 11,045 हजार करोड़ जाते थे।

वर्ष 2018-2019 दौरान यह कर्जा बढक़र 1,90,988 करोड़ हो गया जिसका प्रतिवर्ष 7000 करोड़ मूलधन में और 12,042 करोड़ ब्याज का चुकाना होता था। वर्ष 2019-2020 के दौरान कर्जा बढक़र 2 लाख 10 हजार 510 करोड़ हो गया और प्रतिवर्ष राज्य सरकार को 14,403 करोड़ मूलधन में और 14 हजार 803 करोड़ ब्याज में चुकाना पड़ रहे हैं।

कोई भी राज्य उसके सकल घरेलू उत्पाद का 3.49 प्रतिशत कर्जा ले सकता है जिसमें प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है इन अनुपात से मध्यप्रदेश सरकार 26888 करोड़ का कर्जा ले सकती थी जो गत वर्ष जो इस वर्ष 1 प्रतिशत (लगभग 9 हजार करोड़) बढक़र लगभग 36 हजार करोड़ कर्ज सीमा हो जायेगी।

कोरोना संक्रमण की वजह से देश और प्रदेश में आर्थिक आंदोलनों पर असर पड़ रहा है और केन्द्र सरकार से प्रर्याप्त आर्थिक सहायता नहीं मिली एवं लॉकडाउन के दौरान राज्य सरकार के टैक्स कलेक्शन में भी भारी कमी रही।

गैसोलीन-डीजल का बिल नहीं, शराब की दुकानें बंद रही, इसके अलावा जी.एस.टी. कलेक्शन भी काफी बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ, स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य सरकार के खर्चे बढ़े और आमदनी बढ़ गई। कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार ने अन्य राज्यों की तुलना में पेट्रोल-डीजल पर कर ज्यादा लगा रखा है जिसका सीधा असर मध्यप्रदेश के आम नागरिक की जेब पर पड़ रहा है।

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