‘गण’ और ‘तंत्र’ का सफर, अब चुनौती भरा

मेरे भारत के 72वें गणतंत्र दिवस पर देश की 135 करोड़ की जनमैदनी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। 21वीं सदी का यह गणतंत्र दिवस बहुत सारे मायनों में अन्य गुजरे गणतंत्र दिवसों की तुलना में कुछ अलग हटकर है। बीता साल 2020 पूरे धरती के साथ भारतवासियों के लिये भी बहुत कष्टों भरा और पीड़ादायक रहा है। कोरोना की वैश्विक महामारी ने हम भारतीयों की कमर ही तोड़ दी। धंधे, रोजगार, व्यवसाय सब कुछ लाकडाउन के कारण चौपट हो गया।

भारतीय ‘गण’ जहां एक ओर कोरोना के कारण संकटों से घिर गया है वहीं सुरसा की तरह बढ़ रही महंगाई, मध्यमवर्गीय और निम्रवर्गीय परिवारों के लिये यमराज साबित हो रही है। देश में पेट्रोल, गैस और डीजल की कीमतें आसमान छूने को बेकरार हो रही है। पेट्रोल में प्रीमियम पेट्रोल की कीमतें लगभग 100 रुपये मूल्य को छू चुकी है। वहीं डीजल भी 84-85 रुपये प्रति लीटर हो गया है। खाने-पीने की चीजों की कीमतों में भी आग लगी हुई है। खाने का तेल 100 को पार करके 120 तक पहुंच गया है दालें जो 60-65 बिकती थी वह 90-95 पर है दोहरी मार ने आदमी का जीवन और दुष्कर बना दिया है। ‘गण’ की इस हालात पर देश का ‘तंत्र’ मौन है। बेलगाम होती कीमतों पर अंकुश लगाने वाला कोई दूर-दूर तक नजर नहीं आता है लगता है सारा ‘तंत्र’ देश के कुछ औद्योगिक घरानों की गिरफ्त में चला गया है। ऊंगलियों पर गिने जाने वाले देश के कुछ कुबेर जब उनकी इच्छा होती है मूल्यों को बढ़ा देते हैं, जब मन होता है ज्यादा बढ़ाकर थोड़ा कम कर देते हैं।

भारत की सरकार इस समय अनेक मोर्चाे पर गहरे संकट में है। पड़ोसी देश चीन के साथ संबंध खराब होने के कारण और सीमा पर स्थिति ज्यादा सुविधाजनक ना होने के कारण आये दिन सेना प्रमुखों के बयान यह आभास दिलाते हैं कि सब कुछ सामान्य नहीं है। विश्व स्तर पर भी भारत की साख जिस स्थिति में होना चाहिये वह नहीं है। छोटे-छोटे नेताल जैसे देश भारत पर आंखे तरेर रहे हैं जो हमारी देश की कूटनीति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं।

देश के आर्थिक हालात तो और अधिक चिंताजनक है भारतीय रुपये का मूल्य डालर के मुकाबले लगातार गिरता जा रहा है जिससे हमें आयात मंहगा पड़ेगा और मंहगाई और बढ़ेगी। देश की आजादी के बाद 1950 तक 1 डालर का मूल्य 4 भारतीय रुपये होता था जो आज बढ़ते-बढ़ते 1 डालर का मूल्य 73 रुपये हो गया है जो हम प्रत्येक भारतवासी के लिये चिंता का विषय होना चाहिए। देश की अर्थ व्यवस्था के हालात यह है कि हमारी सरकार को देश चलाने के लिये कर्ज पर कर्ज लेना पड़ रहा है।

मार्च 2020 तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत पर 558.5 अरब डालर का कर्ज हो चुका है यदि इसे हम भारतीय रुपयों में लिखेंगे तो यह होगा 4,07,70,16,49,00,000/- 407 खरब, 70 अरब, 16 करोड़ 49 लाख का कर्जा मतलब देश की कुल आबादी 135 करोड़ (विश्व बैंक द्वारा 2018 में जारी आंकड़े अनुसार) में प्रत्येक भारतीय पर 30200/- (तीस हजार दो सौ रुपये) का कर्जा है। अंगे्रज जब सन 1947 में भारत छोडक़र गये थे और जो बैलेंस शीट देकर गये थे उस समय भारतीय लोगों पर 1 रुपये का भी कर्जा नहीं था।

आजादी के बीते 74 सालों में हमारी सरकरों ने हमें कर्जे से लादकर उपकृत किया। कर्जे की शुरुआत 1951 में शुरू की गयी पंचवर्षीय योजनाओं के लिये, लिये गये ऋण से हुई सन 1960 तक स्थितियां सामान्य थी पर 1962 के भारत चीन युद्ध, 65 का भारत-पाक युद्ध के बाद देश के हालात बिगड़ते-बिगड़ते यहां तक पहुंच गये। हालांकि दुनिया के कर्जदार देशों की सूची में हमारे भारत का नंबर 36वां है। सबसे ज्यादा कर्ज लेने वालों में जापान जो अपनी जीडीपी से 269 प्रतिशत अधिक 8.8 लाख करोड़ डालर का ऋणी है, दूसरे नंबर पर ग्रीस जो जीडीपी से 173 प्रतिशत अधिक 3327 करोड़ डालर का ऋणी है, तीसरे नंबर पर इटली जो जीडीपी से 134 प्रतिशत अधिक 2.41 करोड़ डालर का ऋण, फिर जमैका और लेबनान है। भारत ने अपनी जीडीपी से मात्र 69 प्रतिशत अधिक ऋण ही लिया है।

देश में इस समय कृषि कानूनों के विरुद्ध दिल्ली की सीमाओं और महाराष्ट्र में चल रहा किसानों का आंदोलन भी गणतंत्र दिवस की चमक को फीका कर रहा है। हर भारतीय 26 जनवरी को शांति को लेकर आशंकित है 11 दौर की बातचीत का बेनतीजा रहना भी दुर्भाग्यपूर्ण है।

परन्तु विपरीत परिस्थितियों से जूझना भी हर भारतीय को आता है। कोरोना का कम होता प्रभाव और वैक्सीन का सफल प्रयोग राहत देने वाली खबर है और भारत में निर्मित वैक्सीन पर हर भारतीय गर्व कर सकता है। बुरा समय भी ज्यादा दिन तक रहने वाला नहीं है। हम आशा करते हैं इस गणतंत्र दिवस से हमारे अच्छे दिनों की शुरुआत होगी और लडख़ड़ाया भारत दोगुनी ताकत से दुनिया के साथ दौड़ेगा और हम जरूर कामयाब होंगे।
जय हिन्द।

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