हम चुप रहेंगे (20 सितंबर 2021)

अंधेरा…

चिराग तले हमेशा अंधेरा होता है। तभी तो अपने उम्मीद जी को कुछ पता नहीं चल रहा है। उनके ऑफिस के नीचे स्थित गलियारों में क्या हो रहा है। खासकर मुआवजा वितरण को लेकर। जैसा मुआवजा-वैसा कमीशन। बेचारे जमीन देने वाले अपने मुआवजे के लिए मजबूर होते हैं। इसलिए मजबूरी में जैसा सौदा पट जाये, उस पर राजी होकर चुप हो जाते हैं। ऐसी चर्चा कोठी के गलियारों में सुनाई दे रही है। देने और लेने वाले दोनों ही चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

दुकान…

एक बार फिर कुपोषण मिटाने की दुकान शुरू हो गई है। जब अपने फक्कड़ बाबा यहां मौजूद थे। तब यह दुकान तेल के नाम से चर्चित थी। अब इस नई दुकान का प्रॉडक्ट पाउडर है। सुरजने की फली वाला। दुकान में नया माल आ गया है। मगर पर्दे के पीछे दुकान चलाने वाले अपने तेल मालिश वाले नेताजी ही हैं। जिन्होंने पहले तेल से कमाई की और अब पाउडर से करेंगे। ऐसा कमलप्रेमी इस नई दुकान को लेकर बोल रहे है। मगर हम इसमें क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।

मुखबिर….

वर्दी वाले हमेशा अपने मुखबिर की कदर करते हैं। उसका ना केवल नाम छुपा रहता है, बल्कि वर्दी अपनी तरफ से खर्चा-पानी भी देती रहती है। लेकिन आज तक ऐसा सुना और देखा नहीं कि वर्दी खुद ही मुखबिर की भूमिका अदा करने लग जाये। मामला ताजा ही है। फर्जी मानवाधिकार आयोग से जुड़ा। जिसकी आरोपी ने वर्दी वालों को ही अपना मुखबिर बना लिया था। शिकायत होते ही, आरोपी को खबर मिल जाती थी। अब मामला अपने कप्तान के संज्ञान में आ गया है। देखना यह है कि वर्दी पहनकर, अपनी जेब गर्म करने वाले मुखबिरों को कप्तान पकड़ पाते हंै या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

अकल्पनीय…

कल्पना कीजिए…अपने विकास पुरुष किसी भी कार्यक्रम में पहुंचे और वहां पर कोई भी अधिकारी-मीडिया-जनता मौजूद ना हो। फिर भी वह नाराज होने के बजाए, चुपचाप पौधारोपण करे और निकल जायें। क्या ऐसा संभव है? मगर पिछले शुक्रवार को ऐसा ही हुआ। चकोर पार्क में 71 पौधारोपण का कार्यक्रम था। समय 11 बजे का निर्धारित था। मगर सुबह 8 बजे अपने विकास पुरुष चकोर पार्क पहुंच गये। तब वहां पर सन्नाटा छाया था। केवल लेबर मौजूद थी। विकास पुरुष ने कोई नाराजगी नहीं दिखाई। बस…पौधारोपण किया और चुपचाप निकल गये। नतीजा…कमलप्रेमी इस अकल्पनीय व्यवहार पर आश्चर्यचकित हैं। मगर चुप हंै। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

लकीर…

सांप निकलने के बाद लकीर पीटने वाली कहावत तो सुनी होगी। अपना सरकारी तंत्र कुछ ऐसा ही करता है। अगर हमारी बात पर भरोसा नहीं है। तो स्वास्थ्य विभाग का प्रचार रथ देखिए। जो कि डेंगू से बचाव के तरीके बताने निकला है। आश्चर्य की बात यह है कि जब शहर में डेंगू फैल गया। तब बचाव के तरीके का प्रचार रथ रवाना हुआ है। वह भी हमारे माननीयों की हरी झंडी दिखाने के बाद। अब यह तो सांप निकलने के बाद वाली कहावत को सही साबित करता है। इस लचर व्यवस्था को सुधारने में हम तो कुछ कर नहीं सकते हैं और जो माननीय व्यवस्था सुधार सकते हैं। वह हरी झंडी दिखाकर खुश हैं। तो हम भी लचर व्यवस्था को लेकर अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

नौटंकी…

अपने कमलप्रेमी नौटंकी दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। तभी तो साफ-स्वच्छ मंदिर प्रांगण में झाडू पकडक़र सफाई करने की नौटंकी करते हैं। नमो के जन्मदिन पर यह नौटंकी देखने को मिली। तब मिली जब अपने ढीला-मानुष मंदिर पहुंचे। नदी किनारे स्थित मंदिर पर उन्होंने अपनी टीम के साथ सफाई करने का दिखावा किया। फोटो-वोटो खिंच गई और नौटंकी खत्म हो गई। ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे हैं। अपने कमलप्रेमियों की इस बात में दम है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।

बचत…

घटना एक बार फिर नमो के जन्मदिन की है। स्थान भी शिप्रा नदी है। बस समय और पात्र बदल गये है। इस घटना के पात्र अपने पहलवान और उनके समर्थक है। समय…सांध्यकालीन शिप्रा आरती का है। जहां अपने पहलवान, आधा दर्जन समर्थकों के साथ पहुंचे थे। आरती के पहले घोषणा कर दी। सांध्यकालीन आरती में 200 दीपक जलायेंगे। तेल लेकर भी पहुंचे समर्थक। मुश्किल से 1 दर्जन दीयों में तेल डाला। तब तक पहलवान आ गये। आरती शुरू हो गई। आरती खत्म होते ही पहलवान के साथ-साथ तेल लेकर आये समर्थक भी गायब हो गये। अब 2 लीटर तेल की बचत करके समर्थक खुश हैं और कमलप्रेमी इसकी चर्चा कर रहे हैं। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहना हैं।

जाल…

कोठी के गलियारों में एक जाल बुनने की चर्चा सुनाई दे रही है। जो कि एक राजस्व अधिकारी के लिए बुना जा रहा है। नायब स्तर के यह अधिकारी है। जाल इसलिए बुना जा रहा है, क्योंकि राजस्व अधिकारी को हर मामले में अपनी जेब गर्म करने की आदत पड़ चुकी है। कोठी के भू-तल स्तर पर इनकी मांगने की आदत से हर कोई वाकिफ है। हर अधिकारी को पता है। बगैर चढ़ावे के इनसे कोई काम नहीं करवा सकता है। कुछ दलाल भी पाल रखे हैं। इसीलिए किसानों से जुड़ा संगठन, रंगे हाथों पकड़वाने की तैयारी में है। देखना यह है कि जाल सफल होता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

जांच…

कुकरमुत्ते की तरह पैदा हो रहे फर्जी खबरचियों की अब शामत आने वाली है। करीब 2 दर्जन शिकायते विभिन्न थानों में धूल खा रही है। अब इन शिकायतों पर जल्दी ही जांच शुरू होने वाली है। ऐसी चर्चा वर्दी वालों के बीच सुनाई दे रही है। यह सभी शिकायते डराने-धमकाने और राशि वसूल करने से जुड़ी है। इसी तरह न्यूसेंस फैलाने वाली खबरों पर भी वर्दी नोटिस देने का मन बना रही है। अब देखना यह है कि वर्दी यह सख्त कदम कब उठाती है। हम तो बस अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

मोहर…

अपने उम्मीद जी को साधुवाद। जिन्होंने सबके सामने चुप रहेंगे द्वारा दिये गये नाम पर अपनी मोहर लगाई। मौका था निजी होटल में फेयरवेल का। शिवाजी भवन के मंद-मुस्कान जी का अभी-अभी तबादला हुआ है। उन्हीं के सम्मान में विदाई समारोह था। अपने उम्मीद जी ने उद्बोधन का श्रीगणेश ही चुप द्वारा दिये गये नाम से किया। उन्होंने कहा कि… जिसने भी मंद- मुस्कान नाम रखा है, वह बिलकुल परफेक्ट रखा है।

उद्बोधन में मंद-मुस्कान की कई खूबियां गिनाई। मगर उनका एक अवगुण भी बताने में नहीं चूके। इस अवगुण का नाम सज्जनता बताया। जो कि अपने मंद-मुस्कान जी में हद से ज्यादा था। जबकि प्रशासनिक मशीनरी में ज्यादा सज्जनता घातक मानी जाती है। अब देखना यह है कि उम्मीद जी के बताये अवगुण को नई जगह पर, अपने मंद-मुस्कान जी दूर करते हंै या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

पिछला दरवाजा…

देश की राजधानी पहुंचने के लिए नेताओं के पास 2 रास्ते होते हैं। पहला रास्ता चुनाव लडक़र शान से जाओ। दूसरा रास्ता पिछला दरवाजा। जिसे बैक-डोर इंट्री भी कहा जाता है। अपने प्रदेश से एक बैक-डोर इंट्री होनी थी। जिसके लिए अपने दिल्ली वाले नेताजी प्रयासरत थे। पिछले 5 दिनों से राजधानी में डेरा डाले थे। अपने मोटा भाई से भी मुलाकात की। बाकी जगह से भी जुगाड़ लगाया। किसी तरह बैक-डोर इंट्री मिल जाये। मगर दाल नहीं गल पाई। ऐसा हम नहीं, अपने कमलप्रेमी बोल रहे है। सच-झूठ का फैसला हमारे पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप रहना है।

चलते-चलते…

शहर के खबरचियों से जुड़े संगठनों में सुगबुगाहट है कि…जल्दी ही असली खबरची, नकलियों की भरमार से दु:खी होकर, संगठन छोडऩे वाले हैं। देखना यह है कि…असली खबरची वर्ग यह कदम कब उठाता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

-प्रशांत अंजाना

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