हम चुप रहेंगे (4 अक्टूबर 2021)

नीचे बैठो…

कमलप्रेमियों के दोनों मुखिया की, इस कदर बेईज्जती होते, हमने नहीं देखी। हमने तो क्या, खुद कमलप्रेमियों ने भी नहीं देखी। तभी तो कमलप्रेमी नीचे-बैठो का राग अलाप रहे हंै। विज्ञान केन्द्र के भूमिपूजन में यह नजारा सभी कमलप्रेमियों ने देखा। अपने ढीला-मानुष और लेटरबाज को मंच पर जगह नहीं मिली। दोनों बड़ी उम्मीद से मंच की तरफ गये थे। जहां जाकर पता चला कि दोनों का नाम सूची में नहीं था। नतीजा सामने दर्शक दीर्घा में बैठना पड़ा। लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि पदेन पदाधिकारी को छोडक़र, पूर्व जनप्रतिनिधि को मंच पर जगह मिल गई। आखिर पुत्र-मोह से कौन बच सका है। ऐसा हम नहीं, बल्कि नजारा देखने वाले कमलप्रेमी बोल रहे हैं। जो सच ही बोल रहे हंै। तो इस सच को सुनकर, हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

आंखों देखी…

एक बार फिर बात उसी विज्ञान केन्द्र की है। बस कार्यक्रम खत्म हो चुका था। अपुन भी दूर खड़े देख रहे थे। तभी अपने विकास पुरुष से कोई मिलने आया। पड़ोसी संभागीय मुख्यालय से। विकास पुरुष से मुलाकात हुई। बताया कि…वह काम नहीं हुआ है। जिसके लिए विकास पुरुष ने फोन किया था। वह भी 3 बार। बस…फिर क्या था। सातवें आसमान पर विकास पुरुष पर गुस्सा था। उन्होंने अपने छर्रे से फोन लगवाया। सीधे अपनी भाषाशैली में समझाया। तुमको वहां इसलिए बैठाया है। हमारे काम नहीं रुकने चाहिये। अब वापस फोन नहीं करुंगा। काम हो जाना चाहिये। विकास पुरुष का यह रौद्र रूप कभी-कभार देखने को मिलता है। उनके चेलों ने यह रूप देखकर, बातचीत खत्म होते ही, ठहाका लगाया। जिसमें अपने विकास पुरुष ने भी साथ दिया और अपुन यह देख और सुनकर, अपनी आदत के अनुसार चुप रह गये।

प्रसाद…

वैसे तो मंदिर में दर्शन करने के बाद ही प्रसाद मिलता है। मगर कुछ खुशकिस्मत ऐसे होते हंै। जिनको मंदिर जाने से पहले ही प्रसाद मिल जाता है। जैसे अपने वजनदार जी। अभी-अभी भक्ति में लीन होकर, नये गेटअप मे वापस आये हैं। उनकी यह भक्ति देखकर कमलप्रेमी खोजबीन में जुट गये। आखिर माजरा क्या है। इसका रिजल्ट सुखद ही आया। अपने वजनदार जी के साथ शहर के नामी-गिरामी बिल्डर भी गये थे। जिन्होंने देवास रोड पर नई कालोनी काटी है। अपने वजनदार जी के सहयोग से। जिसका प्रसाद पहले ही दिया गया। उसके बाद ही यह यात्रा हुई। अब कमलप्रेमी भले ही प्रसाद-प्रसाद चिल्ला रहे हैं। लेकिन हम तो अपने वजनदार जी की खुशकिस्मती को देखकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

बेचारी वर्दी…

कभी वर्दी को लाचार-बेबस-बेचारी के रूप में देखा है। हमारी इस बात पर कोई भरोसा नहीं करेगा? मगर वर्दी भी कभी-कभी शातिर मुलजिम के आगे बेचारी हो जाती है। खासकर तब, जब मुलजिम महिला हो। 4 पेटी चोरी का मामला है। व्यापारियों ने ही दोनों मुलजिमों को पकड़ा। अब इन दोनों ने वर्दी को पूछताछ करने से पहले ही बेचारी कर दिया। 1 ने कपड़ों में गंदगी कर दी। जिसके लिए रात को कपड़ों की जुगाड करनी पड़ी। दूसरी को सेनेटरी पेड लाकर देना पड़ा। नतीजा वर्दी पूछताछ नहीं कर पा रही है। उधर 2 दिन की मोहलत है। 4 पेटी बरामद करने की। वरना फिर मंडी में कामकाज ठप्प पड़ जायेगा। अब ऐसे में वर्दी क्या करे? हम तो बस वर्दी वालों के लिए हमदर्दी दिखाते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

गुहार…

अपने मामाजी अकसर यह हुंकार भरते हैं। सार्वजनिक मंच से। भू-माफिया और उनको संरक्षण देने वालो को जमीन में गाड़ दूंगा। जिसे सुनकर और पढक़र आम आदमी सोचता है। क्या वाकई में यह संभव है? अगर कोई पॉवरफूल कमलप्रेमी नेता जमीन हड़प ले। तो क्या उस पर कार्रवाई होगी? बस यहीं पर कथनी और करनी में अंतर नजर आता है। तभी तो पड़ोसी संभागीय मुख्यालय के एक फरियादी दर-बदर भटक रहे हैं। उनकी बेशकीमती जमीन पर कब्जा हो गया है। कब्जे के बाद, फरियादी को वर्दी का सहारा लेकर धमकाया भी गया। इस जमीन पर निर्माण भी शुरू हो गया है। फरियादी ने अपने मामाजी से लेकर उम्मीद जी तक गुहार लगा ली है। मालिकाना हक के कागजात भी है। फरियादी समझौते के लिए भी तैयार है। हेल्पलाइन पर भी शिकायत दर्ज है। लेकिन पॉवरफूल कमलप्रेमी नेता के आगे कोठी और वर्दी दोनो दंडवत हैं। अब देखना यह है कि फरियादी की गुहार पर, उसको न्याय मिलता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

संयोग…

कहते हंै कि योग करने वाला हर इंसान तन से स्वस्थ और मन से प्रसन्न रहता है। वह मानसिक रूप से बहुत शक्तिशाली होता है। फिर पिछले 2 महीनों में ऐसा क्या हो गया? जिसके चलते 2 योग शिक्षकाएं एकदम से फंदे पर झूल गई। पहली अगस्त में तो दूसरी पिछले सितम्बर माह में। दोनों ही योग से जुड़ी थी। आर्थिक पक्ष भी कमजोर नहीं था। फिर भी दोनों ही बगैर कुछ लिखे, महाप्रयाण पर निकल गई। जबकि योग इंसान को मजबूत बनाता है। घटना के बाद दोनों के फोन वर्दी के पास जब्त है। जिसमें राज छुपे हैं। मगर फोन में क्या मिला। यह आज भी रहस्य बना हुआ है। इधर दोनों के परमेश्वरों की चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हंै। अब देखना यह है कि अपने कप्तान जी, इस विचित्र किन्तु सत्य संयोग को लेकर क्या कठोर कदम उठाते हैं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

नौटंकी…

अपने कमलप्रेमी भी गजब करते हैं। साल में 1 दिन ऐसा दिखाते हैं। जैसे इनको वाकई बापू से प्यार है। इसीलिए इनका खादी-प्रेम उमड़ता है। दुकान पर जाते हैं। इक_े होकर। 2 दर्जन कमलप्रेमी। फोटो खिंचवाते हंै। मगर जब बात बापू को खर्च करने की आती है। तो अपनी जेब में हाथ डालना भूल जाते हैं। मुश्किल से आधा दर्जन अपनी जेब से वह कागज निकालते हैं। जिस पर बापू की तस्वीर होती है। कुछ तो केवल अगरबत्ती खरीदकर, अपना बापू प्रेम दर्शाकर, फोटो खिंचवाकर प्रसन्न हो जाते हंै। इस बार भी यही हुआ। पुरानी नौटंकी दोहराई गई। तभी तो खुद कमलप्रेमी ही, इस नौटंकी की चर्चा कर रहे हैं। कमलप्रेमियों का शब्द चयन, नौटंकी भी सही है और बात में भी दम है। इसलिए हम तो इस नौटंकी पर अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

उद्बोधन…

कभी ऐसा देखा या सुना नहीं। कार्यक्रम में जनप्रतिनिधि मौजूद ही नहीं हो और उसके उद्बोधन का प्रेसनोट जारी हो जाये। अपनी दाल-बिस्किट वाली तहसील में यही हुआ। बापू की जयंती पर। अपने पंजाप्रेमी पहलवान, दुर्घटना के चलते घर पर ही आराम कर रहे है। दुर्घटना के पीछे कारण…गाड़ी तेरा भाई…चलायेगा…बताया जा रहा है। इस कारण पहलवान, कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाये। मगर शाम को उनके भक्तों ने प्रेसनोट जारी किया। जिसमें यही दर्शाया कि…पहलवान मौजूद थे और उद्बोधन भी दिया। अब पंजाप्रेमी और कमलप्रेमी, दोनों ही इस अनोखे उद्बोधन से आश्चर्य में है। मगर चुप हैं। तो हम भी चुप हो जाते हैं।

तकनीक…

अपने शिवाजी भवन के मुखिया तकनीक के विशेषज्ञ हैं। इसीलिए इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं। दूर रहकर भी बैठकें करते हैं। निर्देश देते हंै। शिवाजी भवन में यह प्रयोग नया है। पहली दफा हो रहा है। मुखिया कही पर भी हो…बैठकें चलती रहती है। दूरसंचार क्रांति का फायदा है। मगर, कुछ मामलों में तो स्थल निरीक्षण ही काम आता है। जैसे परिवहन कार्यालय के सामने बन रही बिल्डिंग। जिसमें नियमों के विपरीत निर्माण हो रहा है। कोई देखने वाला नहीं है। तकनीकी ज्ञान, यहां पर कोई काम नहीं आने वाला है। ऐसा हम नहीं, शिवाजी भवन में बैठने वाले ही कह रहे हैं। अब देखना यह है कि…नये मुखिया फिल्ड में निकलते हैं या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

चुप रहो…

शीर्षक पढक़र पाठक यह नहीं सोचें। किसी ने हमको बोला कि..चुप रहो। यह तो एक वरिष्ठ पंजाप्रेमी नेत्री को, एक जूनियर युवा नेता ने बोल दिया। वह भी सार्वजनिक रूप से माइक पर यह वही जूनियर नेता जी हंै, जो अपने पहलवान के सामने विधान सभा चुनाव हार चुके हैं। वह उदबोधन दे रहे थे। सिंहस्थ क्षेत्र में हट रहे अतिक्रमण को लेकर। उन्होंने अपने विकास पुरुष, वजनदार जी, पहलवान और पीपली राजकुमार के खिलाफ आक्रोश दिखाया। पास में सीनियर पंजाप्रेमी नेत्री खड़ी थी। जो नगर सेविका रही हैं और अपने बिरयानी नेता जी का उन पर वरदहस्त है। नेत्री, जनता को कुछ समझा रही थी। जो जूनियर नेता जी को अखर गया। उन्होंने माइक पर ही बोल दिया। आप चुप रहो, वह भी माइक पर ही। वरिष्ठ नेत्री का चेहरा तमतमा गया। मगर वह चुप रही। तो हम भी केवल मशहूर शायर डा. बशीर बद्र के अशआर को याद करके और थोड़ा चेंज करते हुए…लोग टूट जाते हंै एक घर बनाने में/तुम तरस नहीं खाते बुलडोजर चलाने में…लिखकर, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

-प्रशांत अंजाना

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