रुनिजा (बडऩगर), अग्निपथ। रुनिजा से 10 किलो मीटर रतलाम इंदौर रोड से अंदर बिरमावल मार्ग पर मां कंवलका का अति प्राचीन पांडव कालीन चमत्कारी शक्ति पीठ (मंदिर) 500 गज पहाड़ी पर स्थित है। उक्त मन्दिर के बारे में किवदंती है कि द्वापरयुग युग में अज्ञात वास के दौरान पाण्डव इस क्षेत्र में आये थे।
इनकी गाय घास चरती चरती गुम हो गई थी। तब भीम ने इस क्षेत्र में 6 छोटी छोटी पहाड़ी बनाई तब भी गाय नहीं दिखी तो उन्होंने एक अंजुली और एक मुठठी मिट्टी डालकर यह बड़ी पहाड़ी बनाई तब जाकर गाय धार में दिखी। तब भीम ने अपनी लकड़ी फेंक गायों को रोका। आज भी धार में भीम की लाठी देखी जा सकती है। बताया जाता है कि पांडव ने योगबल से माता की आराधना करने हेतु उक्त मन्दिर का निर्माण किया था। जो बिना नींव का कहा जाता है।
इसके बाद विक्रम संवत् 1171 में राजस्थान से आये नागा साधु महंत उत्तमगिरी एव कन्हैया गिरी जब यहां आए तो उन्हें यह भव्य मंदिर दिखा। उन्होंने मन्दिर के आस पास बने घने जंगल मे साफ सफाई कर मन्दिर के सामने स्थित वटवृक्ष पर उल्टा लटकर साधना की जो आज भी है। लगभग 200 वर्ष पूर्व मन्दिर में गुप्त धन की अफवाह सुनकर चोरों ने पुजारी पुत्र को फांसी पर लटकाकर मार दिया था। तब भुवानीगिरी का माँ कंवलका ने साक्षात दर्शन वरदान दिया कि तेरे पुत्र होंगे उसमे एक के गले में फांसी का निशान होगा।
जब भवानी गिरी के यहां पहला पुत्र हुआ उसके गले मे फाँसी का निशान पाया गया। भुवानीगिरी के प्रथम पुत्र प्रकाश गिरी ओर उनके दो छोटे भाई शंकर गिरी व शिवगिरि के वंशज माता की सेवा पूजा कर रहे हैं। माता के बारे कई चमत्कार सुनने को मिलते हैं। पर यहां माता को मदिरा का भोग लगाया जाता व माता के मुँह पर लगाते ही खाली हो जाता है। यहां दूर दूर से माता भक्त दर्शन को आते हैं। मन्नत पूरी होने पर मदिरा का भोग लगाकर चढ़ावा चढ़ाते हैं।
हरियाली अमावस्या पर यहां एक दिन का भव्य मेला लगता जहाँ हजारोम भक्त माता दर्शन के साथ प्राकृतिक हरियाली का आनन्द लेते। नवरात्रि में भी प्रतिदिन यहां दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। शासन द्वारा इसे पर्यटन रूप में विकसित करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है।