हम चुप रहेंगे ( 1 नवंबर 2021)

जिज्ञासा …

किसी भी विषय को लेकर जिज्ञासा होना अच्छी बात है। लेकिन जिज्ञासा का समाधान, सही जगह सवाल पूछकर करना, उससे भी अच्छी बात मानी जाती है। पेंटिग्स बेचने वाला दुकानदार रंगों की समझ नहीं रखता है। उसे तो केवल बेचने से मतलब होता है। उससे सवाल करना तो आपकी बुद्धि पर ही सवाल उठा लेगा। यह चर्चा इन दिनों दमदमा के ग्रामीण भवन में सुनाई दे रही है। इशारा अपनी घमंडी मैडम की तरफ है। जो कि पेंटिग्स खरीदने पहुंची थी। वहां उन्होंने अपनी जिज्ञासा के चलते सवालों की बौछार कर दी। बेचारा दुकानदार … पहले ही डरा हुआ था। परिचय मिलने पर। सवाल सुनकर और घबरा गया। उसका सीधा जवाब था। हम केवल बेचते है, और चुप हो गया। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

वादा …

वादे अकसर तोडऩे के लिए होते है। यह अपुन ने कहीं पढ़ा या सुना था। याद नहीं, क्योंकि उम्र का असर है अपुन पर। मगर अभी-अभी ताजा-ताजा अपने बाबू ने वादा किया है। अब बाबू कौन है? तो हम बता देते है। खबरचियों की संस्था के मुखिया है। जो मीडिया में फैल चुकी गंदी मछलियों से दु:खी है। इसलिए बैठक रख ली। सर्वसम्मति से फैसला करवा लिया। 21 में से 19 वोट मिल गये। किसलिए … गंदी मछलियों को तालाब से निकालने के लिए। जिनके कारण समाज में बदबू फैल रही है। अपने बाबू ने वादा भी कर लिया है। दीवाली बाद सभी 400 का मूल्यांकन होगा। समिति छटनी करेंगी। अब देखना यह है कि अपने बाबू वादा निभाते है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

पहल …

वर्दी के साथ हमदर्दी भी। वैसे यह स्लोगन केवल पढऩे और सुनने में ही अच्छा लगता है। क्योंकि वर्दी से जिनका पाला पड़ता है। वह कभी नहीं कहते है कि हमदर्दी मिली या दिखाई। लेकिन अपने कप्तान ने इसको यथार्थ रूप दिया है। पाउडर के नशे से मुक्ति दिलाने में। उन नशेबाजों को सुधारने का बीड़ा उठाया है। जो कि स्मैक- पाउडर की लत के शिकार है। उनके परिजनों को बुलाकर बातचीत शुरू कर दी है। अपने बाहुबलि जी भी इसमें रूचि ले रहे है। वर्दी की यह हमदर्दी भरी पहल तारीफ के काबिल है। देखना यह है कि यह पहल मूर्तरूप ले पाती है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खुशी …

आम धारणा तो यही है। अगर सामने वाला खुशी दिखे तो जलन होना चाहिये। दु:खी के साथ तो हमदर्दी होना चाहिये। लेकिन यहां मामला कुछ उल्टा है। पूजा करवाने के नाम पर शातिर ठग ने युवा पुजारी से ही ठगी कर डाली। भात-पूजा वाले मंदिर की घटना है। अब ठगी के शिकार के साथ हमदर्दी होनी चाहिये। लेकिन मंदिर के बाहर खुशी की लहर है। हर कोई खुशी मना रहा है। यहां तक बोला जा रहा है कि … हम गरीबों से वसूली करोंगे तो …. भातपूजा वाले बाबा भी छोडऩे वाले नहीं है। दंड तो पक्का मिलेंगा। इस उल्टी खुशी को लेकर हम भी आश्चर्य में है। मगर वसूली के सताये लोगों की खुशी को लेकर क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

परमेश्वर …

हम मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच-परमेश्वर का जिक्र नहीं कर रहे है। हम तो पति- परमेश्वर की कहानी बता रहे है। जिसकी चर्चा दाल-बिस्किट वाली तहसील के राजस्व गलियारों में सुनाई दे रही है। चर्चा पर अगर यकीन करें तो इन दिनों एक पति परमेश्वर, राजस्व कामों में हस्तक्षेप कर रहे है। फाइलों का अध्ययन कर रहे है और उसके निराकरण में अपनी अद्र्धागिनी की मदद कर रहे है। मदद करना तो समझ में आता है। मगर चर्चा यह भी है कि केवल उन फाइलों का अध्ययन और निराकरण होता है। जिस फाइल पर वजन रख दिया जाता है। वजन का मतलब तो हमारे पाठक, हमसे बेहतर समझते है। इसलिए हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

वसूली …

वैसे तो वर्दी पर वसूली करने के आरोप लगना सामान्य घटना है। भुक्तभोगी यही बोलते है। चौराहों पर खडी वर्दी को भी वसूली करते देखा जाना रोजमर्रा की बात है। मगर हम इस वसूली की बात नहीं कर रहे है। हम तो गृह विभाग के आदेश पर वसूली करने की याद दिला रहे है। जो कि नियमानुसार है। वसूली भी उनसे करना है। जो कि शूटिंग करके हजारों गुना मुनाफा कमायेंगे। आगामी 7 नवम्बर को शूटिंग होना है। पुराने शहर के एक वर्दी वाले स्टेशन की। जिसके लिए प्रतिदिन के हिसाब से 25 हजारी वसूली करना जरूरी है। अब देखना यह है कि … आम आदमी से लेकर चौराहे तक वसूली करने में माहिर अपनी वर्दी यह 25 हजारी वसूली कर पाती है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

सवाल

इस तस्वीर को गौर से देखिए। कभी ऐसा अनाज (गेहूं) देखा है। क्या आम इंसान, इसे खरीदकर रोटी बनाकर, खाना पसंद करेंगा। यह सवाल हम अपने पाठकों से कर रहे है। जवाब हमको पता है। मजबूरी में छोडक़र, कोई इसे नहीं खरीदेगा। यह खराब गेहूं इन दिनों उचित मूल्य की दुकानों से गरीबों को दिया जा रहा है। मजबूरी में लेकर भी जा रहे है। कोई भी जिम्मेदार इस व्यवस्था को सुघारने के लिए तैयार नहीं है। अपने तेल-मालिश वाले नेताजी भी नहीं। जिनका दायित्व है कि वह ऐसे खराब माल का वितरण नहीं होने दे। अब, जब सभी जिम्मेदार इस व्यवस्था पर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

दु:ख …

प्रभु जाको दारूण दु:ख देई/ ताकि मति पहले हर लेई। यह चौपाई बाबा महाकाल के दरबार में सुनाई दे रही है। इशारा हत्या के आरोपी की तरफ है। जिन्होंने पिछले कई महीनों से अन्न क्षेत्र को अपनी ऐशगाह बना रखा था। जिसका पता जिम्मेदारों को था। लेकिन अपने उदासीन बाबा के मित्र होने का आरोपी फायदा उठा रहा था। उदासीन बाबा की कृपा से ही बाबा के दरबार में नौकरी लगी थी। जबकि आरोपी पुराना पंजाप्रेमी है। फिर अचानक फूलपेंटधारी हो गया था। प्राश्रय होने के कारण हर कोई, देखकर भी नजर अंदाज करता था। मगर पाप का घडा कभी तो फूटना था। जो हत्या के रूप में फूटा। ऐसी चर्चा बाबा के दरबार में सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

सुरसा …

हनुमान जी जब समुद्र लांघकर जा रहे थे। माता सीता से मिलने। तब रास्ते में उनको सुरसा मिली थी। जिसकी मुंह बढ़ता ही जाता था। यह कहानी हमारे सभी पाठकों को पता है। लेकिन यही कहानी अब नये रूप में अपने उम्मीद जी के सामने सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है। वैक्सीन के दूसरे डोज को लेकर। हर रोज आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। बिलकुल सुरसा के मुंह की तरह। साढ़े 3 लाख के करीब आंकड़ा है। जो हर रोज बढ़ ही रहा है। दूसरे डोज के लिए जनता घर से नहीं निकल रही है। अभियान भी कारगर नहीं हो रहा है। देखना यह है कि अपने उम्मीद जी इस आंकड़े वाली सुरसा से कैसे बचते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

– प्रशांत अंजाना

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