बेरहम बुलडोजर ही देगा शिक्षकों के अपराधियों को सही नसीहत

अर्जुन सिंह चंदेल

बीते दिनों इंदौर में प्रोफेसर विमुक्ता शर्मा की जघन्य हत्या और गुरू सांदीपनि की नगरी में विधि महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक ईश्वर शर्मा के साथ परिसर में ही मारपीट की घटना छात्र जगत में तेजी से पनप रही मानसिक विकृति का संकेत है। समय रहते यदि इसे नहीं रोका गया तो यह समाज के लिये विशेषकर शिक्षा जगत के क्षेत्र में नासूर की तरह फैलेगा। प्रशासनिक अमले और समाज का यह दायित्व है कि इस विष बेल को सख्ती से कुचला जाए ताकि फिर कोई शिक्षक जैसे पवित्र कार्य में रत किसी व्यक्ति को आँख उठाकर देखने तक की भी हिमाकत ना कर सके।

यहाँ पर उज्जैन एवं इंदौर का पुलिस बल बधाई का पात्र है जिसने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को जेल की सींखचों के पीछे भेज दिया है। उज्जैन का जिला प्रशासन भी साधुवाद का हकदार इस लिये है कि उसने तीनों ही आरोपियों के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) में निरुद्ध कर दिया है। घटना का मुख्य सरगना जिसके कहने पर फायनेन्स कंपनी में कार्यरत दो आरोपियों ने घटना को अंजाम दिया था वह अभी पुलिस गिरफ्त से दूर हैं।

उम्मीद की जाती है कि वह भी शीघ्र ही कृष्ण जन्मस्थली (जेल) में होगा। लगातार हुयी इन दो घटनाओं में जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन के भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर एक यक्ष प्रश्न समाज के समक्ष आ खड़ा हुआ है। चाइना डोर विक्रय एवं अन्य अपराधों में लिप्त आरोपियों के मकानों पर ‘शिवराज जी का बुलडोजर’ बेरहमी के साथ चला था उस बुलडोजर ने भारतीय दंड विधान में सट्टे जैसी सामाजिक बुराई जिस अपराध के लिये थाने में ही जमानत का प्रावधान है में लिप्त आरोपियों की भी नहीं छोड़ा था और उनके मकानों को नेस्तनानाबूद कर दिया था, वह बुलडोजर शिक्षकों की हत्या और हमले जैसे गंभीर और जघन्य अपराध करने वाले आरोपियों के विरुद्ध नरम क्यों है।

इंदौर और उज्जैन की दोनों ही घटनाओं के आरोपी शिक्षित है जो और भी ज्यादा चिंता का विषय है। हमने देखा है कि जिले की तराना तहसील में एक पत्रकार के साथ हुयी मारपीट की घटना को अंजाम देने वाले ग्रामीण क्षेत्र के आरोपियों के अवैध निर्माणों को तराना की दबंग अनुविभागीय अधिकारी एकता जायसवाल ने बुलडोजर चलवाकर ढहा दिया था। फिर शिक्षक की हत्या और मारपीट करने वाले आरोपियों के घरों पर बुलडोजर क्यों नहीं चलाया जाना चाहिये?

कानून को अपने पैरों तले समझने वाले दु:स्साहसी आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्यवाही को हमेशा समाज ने सराहा है। समाज जानता है कि कानून के मकडज़ाल से अधिकांश आरोपी दांवपेंच लगातर निकल भागने में सफल हो जाते हैं इसलिये आरोपियों का आर्थिक नुकसान ही उन्हें नसीहत दे सकता है और जिसे देखकर जनमानस में से भी कोई दुष्कृत्य, अपराध करने के पहले दस बार सोचे? उज्जैन जिला प्रशासन को भी चाहिये कि इस तरह के गंभीर अपराध करने वाले आरोपियों के विरुद्ध सख्त रवैया अपनाये।

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