आखिर पहुँच ही गये छत्तीसगढ़ के शिमला ‘मैनपाट’

• अर्जुन सिंह चंदेल

मैनपाट नजदीक आ रहा था, इंतजार खत्म होने को था हमारी बस पे ‘मैनपाट’ में प्रवेश कर ही लिया चारों ओर हरियाली के बीच में से होती हुयी छत्तीसगढ़ पर्यटन विकास निगम के शैला रिसोर्टस पहुँच ही गयी। इस शानदार आयोजन के आयोजक ‘घुमक्कड़ी दिल से’ (जी.डी.एस.) दल के कर्ताधर्ताओं और छत्तीसगढ़ पर्यटन निगम के अधिकारियों ने हम सभी साथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।

और हाँ हमारे स्वागत के लिये विशेष रूप से आदिवासी महिला एवं पुरुषों द्वारा उनके पारंपरिक नृत्य ‘कर्मा’ की प्रस्तुति की जा रही थी। इंद्रदेव भी आदिवासियों द्वारा किये जा रहे नृत्य पर रीझ गये पुन: बारिश चालू हो गयी।

बारिश भी आदिवासी दल के उत्साह को रोक नहीं पायी। ढोलक और मांद की थाप पर पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी महिलाओं का प्रकृति प्रदत्त सौन्दर्य वातावारण को मादकता दे रहा था। हमारा भी 62 वर्षीय दिल और मन साथियों सहित नृत्य करने के लिये मचलने लगा। दिल बाग-बाग हो गया पूरे भारत के विभिन्न प्रांतों से आये साथी भी दल के साथ नाचने लगे।

अपने राम डांस कला में कमजोर निकले, एकाध फोटो खिचवाकर बाहर निकल आये। शैला रिसोर्ट के द्वार पर प्यार से भीगे हुए गुलाब के फूलों और मालाओं से अंबिकापुर और मैनपाट के साथयों ने आत्मीय स्वागत किया।

छत्तीसगढ़ पर्यटन विकास निगम द्वारा निर्मित यह रिसोर्टस बहुत ही सुंदर और एकांत में बना हुआ है। अंदर बहुत बड़े हाल में सभी 60 प्रतिभागी एकत्र थे। हाल के दोनों और फ्लेक्स में इस मीट में भाग लेने वाले हर साथी की सुंदर फोटो लगी हुयी थी सभी साथी अपनी-अपनी फोटो तलाश करने लगे और कैमरे से फोटो खींचने में लग गये।

थोड़ी देर बार परिचय का अनौपचारिक दौर चालू हो गया। जो सिर्फ चलित दूरभाष पर मिले थे वह भौतिक सशरीर मौजूद थे। हम भी उन्हें ढंूढ रहे थे जिनकी अभी तक आवाज ही सुनी थी उनमें से एक थे भिलाई के वास्तविक पंडित मिश्रा जी और मैनपाट के ही कमलेश भाई जो पेशे से शिक्षक हैं को निगाहें ढूंढ रही थी मिलने पर ऐसा लगा मानों वर्षों पहले बिछड़े भाई मिले हो (जैसे भारतीय हिंदी फिल्मों में मेले में बिछड़े भाई मिलते हो) आपस में बतियाने का दौर शुरू हो गया।

इसी बीच सभी को सूचना दी गयी कि नाश्ता तैयार हो गया है आप सभी लोग नाश्ता कीजिये। सच मानिये इतनी चाक चौबंद व्यवस्था तो सिर्फ कारपोरेट जगत में ही होती होगी। नाश्ते में नेहरू उस्ताद (हलवाई) के गरमा गरम चाय-पकौड़ों ने अम्बिकापुर से मैनपाट तक की 47 किलोमीटर लंबी यात्रा की थकान उतार दी।

नाश्ता करने के बाद सभी लोगों को जी.डी.एस. की किट दी गयी जिसमें एक टी शर्ट, केप फोटो युक्त परिचय पत्र और आवंटित रूम की चाभी थी। सभी अपने अपने रूम की ओर चल दिये, सभी रूम किसी बंगले से कम नहीं था लगभग 1000-1000 स्क्ेवयर फीट के रूम सुंदर बाग-बगीचे, हरियाली जंगल में मंगल का एहसास करा रही थी। परंतु उचित संधारण के अभाव में सभी कमरों की स्थिति खराब हो रही थी।

खैर सरकारी संपत्तियों की कमोबेश यही स्थिति हर जगह रहती है। थोड़ी देर बाद ही दोपहर के भोजन का फरमान आ गया। 22 जुलायी की सुबह से एक ही काम था पेटपूजा का। दाल-चावल, कढ़ी स्थानीय कट्टू की सब्जी खाने के बाद आधे घंटे का समय दिया गया कि सभी तैयार होकर वापस आ जाये।
शेष कल…

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