मृत्युलोक के राजाधिराज अब मान भी जाइये, खत्म करिये यह मौत का तांडव

सृष्टि के सृजक श्री ‘हरि विष्णु’ ने सृष्टि का सृजन कर इसके संचालन का दायित्व श्री ‘ब्रह्मा’ जी को सौंपा और संहार का कार्य ‘शिव’ को। यदि सृजन होगा तो संहार भी जरूरी है तभी पृथ्वी पर संतुलन कायम रहेगा। यदि सिर्फ सृजन ही होता रहा तो पृथ्वी पर भार बढ़ जायेगा और असंतुलन के कारण सृष्टि का ही अंत हो जायेगा। मनुष्य का जीवन चक्र इन्हीं सृजन, संचालन और संहार के बीच है।

लगभग हर 100 वर्षों के दौरान दुनिया में कोरोना जैसी महामारियां आती रही है कभी काला बुखार, हैजा, तपेदिक (टी.बी.), एडस के रूपों में आकर धरती पर मानव की मौत का कारण बनी है। इस बार लगता है संहार का कार्य संभाल रहे मृत्युलोक के राजाधिराज शिव कुछ ज्यादा ही गुस्से में है।

दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हैं, लगभग 32 लाख लोग काल के ग्रास बन गये हैं। अकेले भारत में लगभग 2 करोड़ से ज्यादा संक्रमित हैं और दो लाख से अधिक भारतीय कोरोना के कारण काल-कवलित हो चुके हैं। इन आँकड़ों से लगभग 4 गुना लोगों की मृत्यु हुयी है।

भारत जैसे विशाल 138 करोड़ की जनसंख्या में से 92 करोड़ लोग ही साक्षर हैं, शेष 46 करोड़ भारतीय निरक्षर हैं। देश की 138 करोड़ जनसंख्या का 70 प्रतिशत यानि लगभग 90 करोड़ भारतीय गाँवों में बसते हैं। मात्र 48 करोड़ भारतीय ही शहरों में निवास कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का आंकलन आप स्वयं कर सकते हैं। कोरोना की यह दूसरी लहर ने इस बार ग्रामीण क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में ले रखा है। शहरों में रहने वाले शिक्षित नागरिक जब सरकारी या निजी अस्पतालों में एक-एक पलंग, ऑक्सीजन, दवाइयों, इंजेक्शनों के लिये संघर्ष कर रहे हैं तो ग्रामीणों का तो ऊपर वाला ही रखवाला है।

देश में गाँव के गाँव बीमार पड़े हैं। साक्षरता की कमी होने के कारण वह ना तो कोरोना की टेस्टिंग करवा रहे हैं और ना ही टीकाकरण में उनका विश्वास है। सोश्यल मीडिया में वैक्सीन से नुकसान की अफवाहों पर वह ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। घरों पर ही रहकर देशी इलाज या आर.एम.पी. डॉक्टरों के भरोसे ही वह अपना कोरोना का उपचार करवा रहे हैं जिसे दवाई लग गयी है वह बच गया अन्यथा मौत का शिकार हो रहे हैं।

जागरूकता की कमी के कारण ग्रामीण ना तो मास्क का उपयोग कर रहे हैं, ना ही भौतिक दूरी का और ना ही बार-बार हाथ धोने की प्रक्रिया का उपयोग कर रहे हैं। इन सबको देखते हुए मौतों का और संक्रमण का यह सरकारी आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता है। परंतु इस बार इस कोरोना ने बहुत मूल्यवान भारतीयों को हमसे छीन लिया।

इस वैश्विक महामारी से अग्रिम पंक्ति में रहकर मोर्चा ले रहे हमारे 747 डॉक्टरों की मौत इसके कारण हो गयी। मैदान में रहकर अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करने वाले नारदवंशी 101 पत्रकारों को भी इसने लील लिया है है पत्रकारों ने ही अपनी जान जोखिम में डालकर देशवासियों तक सूचनाएँ पहुँचाने और जागरूक करने का काम किया है। अपने घर-परिवार और जान की परवाह किये बिना मैदान में डटे रहे बीते 28 दिनों में ही देश के लब्ध प्रतिष्ठित 19 पत्रकारों की मौतें हुयी है। दिन-रात मेहनत करके कानून-व्यवस्था की इन विषम परिस्थितियों में स्थिति संभाल रहे 900 पुलिसकर्मी भी इसका शिकार हो गये हैं।

अप्रैल माह में ही महाराष्ट्र के 68 पुलिसकर्मियों की मौत कोरोना से हो गयी है। और देश के 86483 पुलिसकर्मी कोविड-19 से संक्रमित है। कोरोना ने देश के 3 सांसदों और विभिन्न राज्यों के 6 विधायकों को हमसे सदा-सदा के लिये छीन लिया है। इसके अलावा साहित्य के क्षेत्र से फिल्मी दुनिया से सामाजिक क्षेत्र, अनेक न्यायाधीश, अभिभाषक साथी, सामाजिक क्षेत्र की भी कई महान हस्तियों को कोरोना निगल गया है।

अत: पृथ्वी के संहार की जिम्मेदारी निभाने वाले भोलेनाथ अब बस करिये, शांत हो जाइये, इस मानव जाति को राहत दीजिये ताकि इंसान फिर से खुले में साँस ले सके।

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