प्रभु श्रीराम का भाजपा से कम होता मोह

भारतीय जनता पार्टी द्वारा क्या देश की अस्मिता के प्रतीक प्रभु श्रीराम की भक्ति में कहीं कोई चूक हो गयी है? क्या मोदीजी की लोकप्रियता का जादू जो कुछ समय पहले तक भारतीयों के सिर चढक़र बोल रहा था वह उतर गया है? क्या मोदीजी की लोकप्रियता का चरम गुजर चुका है? क्या कोरोना काल में सरकार के पूरी तरह से असफल हो जाने से पूरा देश नाराज है? शायद इन प्रश्नों के जवाब हर भारतीय के मन में उठ रहे होंगे और इनके समाधान की जिज्ञासा भी हर देशवासी के मन मस्तिष्क में होगी।

राजनीतिक परिदृश्य पर दृष्टि डालें तो ऐसा ही आभास हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों का तेजी से मोह भंग होता जा रहा है। यदि हम बात करें बीत दिनों आये 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों पर तो भाजपा को वह सफलता नहीं मिल पायी जिसकी उसे उम्मीद थी। बंगाल में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने जितना पसीना बहाया शायद कहीं नहीं बहाया होगा।

भाजपा उसे 77 होने के लिये 5 वर्षों से मेहनत नहीं कर रही थी वह तो 3 से 203 होने के लिये कर रही थी। 37 से अधिक विधायक, सांसद, मंत्री सभी तृणमूल कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा के शिविर में आ गये थे। भाजपा की सोच थी ममता की पार्टी 60-70 पर निपट जायेगी पर हुआ इसका उल्टा। सब कुछ करने के बाद भी सत्ता से कोसों दूर रह गयी।

केरल में खाता नहीं खुल पाया जो एक थी वह भी चली गयी। तमिलनाडु में भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पांडुचेरी में कांग्रेस से अलग हुए धड़े की मदद से कांग्रेस को सत्ता से दूर रख पाने में सफल हुई और आसाम में जैसे-तैसे सत्ता बचा पायी। यह तो हुई विधानसभा चुनाव परिणामों की बातें जिनसे भाजपा का चिंतित होना स्वाभाविक है।

उत्तरप्रदेश में हुए त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों के नतीजों ने भी भारतीय जनता पार्टी की नींद उड़ा दी है। आने वाले वर्ष 2022 में 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें गोवा में 40 सीटों पर (कार्यकाल 14 मार्च 2022 तक, गुजरात में 182 सीटों पर (कार्यकाल दिसंबर 2022 तक), हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों के लिए (कार्यकाल दिसंबर 2022 तक), मणिपुर की 60 सीटों के लिये (कार्यकाल मार्च 2022), पंजाब की 117 सीटों के लिये (कार्यकाल मार्च 2022 तक), उत्तरप्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए (कार्यकाल मार्च 2022 तक) और उत्तराखंड की 70 सीटों के लिए (कार्यकाल मार्च 2022 तक) चुनाव होना है। इनके अलावा जम्मू एवं कश्मीर में भी चुनाव अपेक्षित है।

उत्तरप्रदेश में त्रिस्तरीय प्रतिष्ठापूर्ण पंचायत चुनावों में प्रदेश के जिला पंचायत सदस्य के 3051 पदों के लिये 44 हजार 307 उम्मीदवार मैदान में थे, क्षेत्र पंचायत सदस्य 75 हजार 808 पदों के लिये 3 लाख 42 हजार 439 प्रत्याशी, ग्राम पंचायत प्रधान के 58 हजार 194 पदों के लिये 4 लाख 64 हजार 117 उम्मीदवार तथा ग्राम पंचायत सदस्य के 7 लाख 31 हजार 813 पदों के लिये 4 लाख 38 हजार 277 उम्मीदवार मैदान में थे।

इन उम्मीदवारों में से जिला पंचायत के 7, जिला पंचायत सदस्य के 2005, ग्राम प्रधान के 178 और ग्राम पंचायत सदस्य के 3 लाख 17 हजार 127 उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध घोषित कर दिये गये थे। आये चुनाव परिणामों में जिला पंचायत की 3051 सीटों में से समाजवादी पार्टी 702 सीटों पर, भारतीय जनता पार्टी 679 सीटों पर, निर्दलीय और कांगे्रस को 1309 सीटों पर, बहुजन समाज पार्टी को 320 सीटों पर तथा राष्ट्रीय लोकदल को 60 सीटों पर सफलता मिली है।

पंचायतों के चुनाव परिणामों में चौंकाने वाली बात यह रही कि अयोध्या, बनारस, प्रयागराज, मथुरा से भी भारतीय जनता पार्टी इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी है। आने वाले 2022 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 10 माह पहले हुए इन पंचायत चुनाव को सेमीफानयल के रूप में देखा जा रहा था। पर उनके परिणामों ने सत्तारूढ़ भाजपा के लिये खतरे की घंटी बजा दी है।

प्रभु श्रीराम से श्रापित कांग्रेस पार्टी तो पहले ही अपना अस्तित्व बचाने के लिये प्रयास कर रही है। राजनीतिक भंवर में उसकी नैया हिचकोले खा रही है ऐसे में प्रभु श्रीराम का भी भाजपा से कम होता मोह चिंता का विषय है।

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रदर्शन मजबूत करके यह बता दिया है कि कांग्रेस और भाजपा ही राजनैतिक क्षत्रप नहीं है। वहीं उ.प्र. के पंचायती चुनाव परिणामों में समाजवादी पार्टी ने दमदारी दिखा दी है। क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभुत्व देश के लिये भी फायदेमंद ना होकर नुकसानदायक ही है।

– अर्जुन सिंह चंदेल

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