राजनैतिक दल-दल में खिला कमल थे ‘दादा’

ex mayor ujjain
राधेश्यामजी उपाध्याय, पूर्व महापौर नगर पालिका निगम उज्जैन।

बुधवार (12 मई) को उज्जैन ने 89 वर्षीय पूर्व महापौर राधेश्याम जी उपाध्याय को खो दिया। पिता गणपतलाल जी उपाध्याय जो कि दीवानी मामलों के प्रसिद्ध वकील थे, के घर जन्में विलक्षण प्रतिभा के धनी राधेश्याम जी ने भी पिता के ही व्यवसाय को चुना और वकालत की पढ़ाई की। नेतृत्व करने की प्रतिभा के कारण उनका रूझान राजनीति की ओर भी था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में बाल्यकाल से ही जाने के कारण वह शुरू से ही अनुशासित थे। देशभति और नैतिकता का जो पाठ उन्हें शाखाओं में सिखाया गया था उन्होंने अपने जीवन में उसे आत्मसात करके दिखाया और मृत्यु-पर्यन्त उसका पालन किया।

दादा के नाम से पुकारे जाने वाले राधेश्याम जी की ईमानदारी के किस्से आज भी राजनैतिक क्षेत्र में सुनाये जाते हैं जो अब किवदंती बन गये हैं। ना भूतो ना भविष्यति शायद इतने नैतिक मूल्यों वाले लोगों ने अब इस धरती पर जन्म लेना ही बंद कर दिया है। सन् 1980 में सिंहस्थ दौरान राधेश्याम जी उपाध्याय को उज्जैन शहर के महापौर पद के दायित्व निर्वहन का अवसर मिला। श्यामलाल जी गौड़ के निधन के कारण पद रिक्त हुआ और पार्षदों ने ‘दादा’ को चुन लिया। शहर को याद होगा उस समय रिकान्डो नामक कंपनी ने शहर की सडक़ों का डामरीकरण किया था जो 40 वर्षों बाद भी जस की तस है।

जितने का ठेका था वह राशि पूरी खत्म हो चुकी थी, ढाबा रोड से छोटे पुल तक की सडक़ का कार्य शेष रह गया, ढाबा रोड क्षेत्र के नागरिकों ने डामरीकरण की माँग की तब राधेश्याम जी ने उन्हें आश्वासन दिया कुछ करता हूँ। दादा ने निगम अधिकारियों जिसमें टाईमकीपर, उपयंत्री, सहायक यंत्री, कार्यपालन यंत्री, सिटी इंजीनियर और आयुक्त के साथ ही रिकान्डो कंपनी का प्रबंधक भी मौजूद था के साथ बैठक की। महापौर राधेश्याम जी ने बैठक में सार्वजनिक रूप से रिकान्डो के प्रबंधक से पूछा कि यहाँ बैठे सभी अधिकारियों को तुमने उनका कमीशन दे दिया है?

प्रबंधक के हाँ कहने पर फिर उससे पूछा मेरा कितना बना? प्रबंधक ने संकोच करते हुए बताया कि लगभग 75-76 हजार तब उपाध्याय जी बोले मेरे इन रुपयों में थोड़े तुम और मिलाकर ढाबा रोड से छोटी रपट तक डामरीकरण कर दो। महापौर की इस ईमानदारी से प्रभावित होकर रिकान्डो ने ना सिर्फ ढाबा रोड बल्कि छोटी रपट के ऊपर तक भी डामरीकरण कार्य करवाया।

दूसरा एक और वाकया उनकी ईमानदारी से जुड़ा यह है कि एक बार राधेश्याम जी के महापौर कार्यकाल के दौरान एक बार उनको मिली गाड़ी का उपयोग परिवार के लोगों ने उपाध्याय जी को बिना बताये कर लिया, दादा को मालूम पडऩे पर उन्होंने ड्रायवर को बुलाकर खूब खरी-खोटी सुनायी और उससे लाग-बुक मंगवाकर गाड़ी जितने किलोमीटर परिजनों ने उपयोग की थी उसके ईंधन का खर्च निकालकर इतनी राशि निगम के खजाने में जमाकर विधिवत उसकी रसीद ली।

दादा को सन् 1962 में कुशाभाऊ ठाकरे जी ने फोन पर ही विधायक का टिकट दे दिया था और कहा था जाओ चुनाव लड़ो तब वह जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े थे परंतु काँग्रेस प्रत्याशी गयूर कुरैशी जी से परास्त हो गये थे, दूसरा विधानसभा चुनाव सन् 1980 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में लड़े परंतु काँग्रेस के राजेन्द्र जैन जी ने उन्हें हरा दिया।

उज्जैन ‘बार’ एसोसिएशन के अध्यक्ष व भाजपा के शहर अध्यक्ष रहे श्री उपाध्याय जी ने जन आंदोलनों को लेकर कई बार जेल यात्राएं भी की। आपातकाल के दौरान भी वह मीसाबंदी रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के काफी नजदीकी के कारण अटल जी के उज्जैन आगमन पर भांग और ठंडायी की व्यवस्था उपाध्याय जी के ही सुपुर्द रहती थी, अटल जी के लिये बनारसी ठंडाई रीगल टॉकीज के सामने से मंगायी जाती थी।

प्रदूषित राजनीति के इस युग में विश्वास नहीं होता है कि या ऐसे भी ईमानदार नेता हुआ करते थे? एक र्काव्यनिष्ठ, ईमानदार, कर्मठ जननेता के निधन से जो स्थान रित हुआ है शायद उसकी पूर्ति संभव नहीं है। दैनिक अग्निपथ परिवार उनके चरणों में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता है।

ओम शांति

– अर्जुनसिंह चंदेल

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