पहली बार देखा उज्जैन को इतना लाचार और बेबस

28 मई की शाम 6 बजे के लगभग 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे से चली तेज हवाओं ने शहर की विद्युत प्रदाय प्रणाली को तहस-नहस कर दिया। पूरा शहर लगभग 5 से 6 घंटों तक स्याह अंधेरे में डूबा रहा, देर रात 11 बजे शहर के कुछ हिस्सों को राहत मिली, अनेक क्षेत्रों में तो 24 घंटे बाद भी लाइट नहीं आयी। खैर, यह प्राकृतिक आपदा थी इसे रोका नहीं जा सकता था, परंतु इस आँधी तूफान ने हमारी व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी जैसे कोरोना ने देश की स्वास्थ्य सुविधाओं की कलई खोल दी थी।

28 मई को शहर के अंधेरे में डूबने के बाद कुछ घंटों तक तो लगा ही नहीं कि शहर में विद्युत मंडल नाम का कोई विभाग भी है। किसी सभ्य नागरिक द्वारा किसी कारणवश बिजली का बिल ना भर पाने के कारण उसकी सार्वजनिक बेइज्जती करकर खंभे से तुरंत कनेक्शन विच्छेद करने वाले, चुस्त मुस्तैद विद्युत विभाग के लाखों रुपये तनख्वाह लेने वाले जूनियर इंजीनियर, सहायक अभियंता, कार्यपालन यंत्री, अधीक्षण यंत्री सब के सब गायब थे।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इतने बड़े संकट से तत्काल राहत मिल जाये पर इतना तो कत्र्तव्य और मानवीयता का तकाजा है कि जो बिजली उपभोक्ता तुम्हें हर माह बिजली बिल की मोटी रकम अदा करता है और जिसके दम पर तुम्हारी तनख्वाह निकलती है और तुम्हारे परिवार पलते हैं उसे सही स्थिति तो बता दो। जिन घरों में 5-6 घंटों में विद्युत प्रदाय चालू हो गया, उनकी सहानुभूति विद्युत मंडल के साथ होना लाजिमी बात है परंतु कल्पना कीजिये जिन क्षेत्रों में 24 घंटे बाद भी लाइट नहीं आयी, उनकी क्या स्थिति हुई होगी? उमस और मच्छरों के कारण पूरी रात परिवारों ने बैठकर काटी होगी, जिनकी टंकियों में मोटर न चल पाने के कारण पानी नहीं भर पाया होगा वह परिवार बिना पानी के कैसे रह पाया होगा?

कल्पना कीजिये किसी परिवार में मरीज को ऑक्सीजन कॉन्सन्टे्रटर लगा हुआ हो और वह बिजली के अभाव में नहीं चल पाया हो उस परिस्थिति में उस मरीज की बिना ऑक्सीजन सप्लाय के स्थिति की कल्पना कीजिये आपकी रूह काँप जायेगी। 28 मई रात की यही स्थिति थी कि ‘रोम जल रहा था नीरो बाँसुरी बजा रहा था’

सुधि पाठकों को बताना चाहूँगा कि 64 ईसवी में रोम में भयंकर आग लगी थी जो लगभग छह दिन तक जलती रही और इस आग में रोम के चौदह में से दस शहर बर्बाद हो गये थे। इतिहासकार बताते हैं कि जब रोम जल रहा था तक सम्राट नीरो सब कुछ जानते हुए भी अपने में मगन होकर बाँसुरी बजा रहा था। भोग विलास में डूबे रोम के सम्राट ही उसके पतन का कारण बने।

ऋषिनगर में एक प्रतिष्ठित नागरिक के यहाँ की सर्विस लाईन पेड़ गिरने के कारण टूट गयी पेड़ तो नगर निगम ने काट कर हटा दिया परंतु सर्विस लाइन जुड़वाने के लिये उसे पसीना आ गया। सीएम हेल्प लाइन से लेकर म.प्र. विद्युत मंडल के लाइन मैन, अधीक्षण यंत्री तक उसे कहीं से भी राहत नहीं मिली। बीस घंटे बाद निजी तौर पर मिस्त्री को लाकर सर्विस लाइन जुड़वायी तब जाकर उस घर को पानी और लाइट मिली।

सिंधी कॉलोनी क्षेत्र में भी 24 घंटों बाद विद्युत प्रदाय चालू हो सका है। ऐसी शहर की अनेक बस्तियां 24 घंटों से ज्यादा पीड़ा झेलती रही। यह तो गनीमत रही कि हवाओं की रफ्तार पश्चिम बंगाल, उड़ीसा की तरह 150-160 किलोमीटर प्रतिघंटा नहीं थी अन्यथा मेरा शहर 8-10 दिन बिना बिजली के रहता। संसाधनों और अमले की कमी विद्युत मंडल की समस्याएं हो सकती है परंतु रेत के तूफान के समय जिस तरह शुतुरमुर्ग अपनी गर्दन रेत के अंदर छिपा लेता है, उसी तरह विद्युत मंडल के अधिकारियों का फोन नहीं उठाना, बात नहीं करना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। मेरे 59 साल के जीवन में मैंने पहली बार मेरे शहर को बिजली के मामले में इतना बेबस देखा।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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