जनप्रतिनिधियों का अमर्यादित आचरण दुर्भाग्यपूर्ण

हमारे देश के संविधान में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका यह तीनों अंग सामंजस्य के साथ काम करेंगे तभी हमारे देश का प्रजातंत्र स्वस्थ्य और हृष्ट-पुष्ट रहेगा और शासन प्रणाली सही ढंग से कार्य कर पाएगी। कल उज्जैन और आगर जिले की दो घटनाएं समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी।

पहली बड़ी घटना समीपस्थ जिले आगर में हुई, जहां आगर विधानसभा सीट से कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायक भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े ने बड़ौद थाने में अपने साथियों के साथ जमकर हंगामा मचाया और बड़ौद थाना प्रभारी जे.एस. मंडलोई के साथ तीखी बहस की, जिसमें अमर्यादित भाषा का जमकर प्रयोग हुआ।

विधायक वानखेड़े का आरोप है कि एक भाजपा नेता के इशारे पर थाना प्रभारी ने बिजली कंपनी के कर्मचारी की शिकायत पर कांग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष प्रेमसिंह तंवर के विरुद्ध गाली- गलौज, शासकीय कार्य में बाधा का प्रकरण दर्ज कर लिया है। जबकि थाना प्रभारी का कहना है कि वह अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। जहां विधायक विधायिका का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर थाना प्रभारी कार्यपालिका का। नि:संदेह दोनों में टकराव दुर्भाग्यपूर्ण है।

मध्यप्रदेश में खाकी पर लगे दाग पिछले कई दिनों से लगातार सार्वजनिक हो रहे हैं। देशभक्ति-जनसेवा के लक्ष्य वाली हमारी अधिकांश पुलिस की कार्यप्रणाली नेता भक्ति और निज आर्थिक हितों की भेंट चढ़ चुकी है। सत्ताधारी नेताओं और पुलिस का चोली-दामन का साथ अब पर्दे की चीज नहीं रह गया है। थोड़ा-सा भी सामाजिक ज्ञान रखने वाला नागरिक जानता है कि मध्यप्रदेश ही नहीं शायद पूरे देश के जिलों में पदस्थी का रेट तय है। जो अधिकारी ‘हस्तिनापुर’ की सेवा शर्तों के साथ पालन करते हैं वह मनचाहे जिलों में पदस्थी पा जाते हैं और जो ईमानदार पुलिस अधिकारी हैं वह बेचारे लूपलाइन में ही पड़े रहते हैं।

भेंट-पूजा कर जिले की कुर्सी संभालने के बाद अधिकार का यह भी कत्र्तव्य साथ में जुड़ जाता है कि वह जिले के सत्ताधारी नेताओं की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य ना करे चाहे थाना प्रभारियों की थानों में पदस्थी हो या थाने का प्रभार देने का मामला। राजनेताओं के इशारों पर नाचने वाली पुलिस उनके उदरपोषण में मदद के साथ ही नेताओं के संरक्षण में चल रहे अवैध कार्यों को भी संरक्षण देती है। अपना जमीर बेच चुकी पुलिस में इसी कारण वह पहले जैसा रसूख नहीं रहा और नेता यह सब जानते हैं। इसी कारण आगर के नवयुवक विधायक ने इतनी बड़ी हिमाकत कर डाली। वह तो विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस को अपनी साख बचाने के लिए विधायक के साथ 9 नामजद और 50 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना पड़ी।

दूसरी घटना उज्जैन जिले के ग्राम टंकारिया की है जहां पर शासकीय कार्यों के लोकार्पण समारोह में नागरिकों को संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश शासन के उच्च शिक्षा मंत्री दक्षिण के विधायक श्री मोहन यादव जी ने शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को नसीहत देते जूते मारने तक की बात कह डाली। निश्चित तौर पर जिले के दबंग जिलाधीश आशीष सिंह जी की जी-तोड़ मेहनत के बाद भी नीचे के ढर्रे में कोई सुधार परिलक्षित नहीं हो रहा है। छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी आम नागरिक परेशान होता रहता है। हर काम के एवज में शासकीय कर्मी उससे भेंट-पूजा की उम्मीद रखते हैं और ऐसा ना करने पर उसे इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है।

शायद नागरिकों की पीड़ा को महसूस करके ही माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी का पारा सांतवें आसमान पर पहुंचा होगा जो अधिकारियों को जूते मारने जैसे शब्दों के रूप में गुस्सा बनकर बाहर निकला। खैर, जो भी हो, लेकिन जंग लगी शासकीय मशीनरी के विरुद्ध प्रदेश शासन के पीएचडी. एवं उच्च शिक्षित काबीना मंत्री की इस अमर्यादित भाषा-शैली का समर्थन नहीं किया जा सकता है।

जनप्रतिनिधि समाज के, देश के, प्रदेश के नागरिकों के नेतृत्व का कार्य करता है। समाज उसे अपना आदर्श मानता है, प्रेरणा लेता है, तभी तो उसका नेता के रूप में चयन करता है। इस कारण इस तरह की भाषा-शैली का ना तो प्रजातंत्र में कोई स्थान है और ना ही समाज में। प्रदेश के काबीना मंत्री होने के नाते आपके पास असीमित अधिकार हैं। नागरिकों को परेशान करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों से दूसरे ढंग से निपटा जा सकता है। सार्वजनिक रूप से जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई दोनों ही घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण है।

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