हम चुप रहेंगे (18 अक्टूबर 2021)

साधुवाद…

हमारे अपने कप्तान को साधुवाद। जिन्होंने मीडिया में फैली गंदगी को जड़ से मिटाने की तैयारी कर ली है। अभी तो केवल तालाब की 2 मछली ही निशाने पर हंै। लेकिन जल्दी ही इस गैंग के मगरमच्छों पर भी शिकंजा कसने वाला है। अपने कप्तान कोई रियायत देने के मूड़ में नहीं है। इसीलिए हम भी उनको भविष्य में होने वाली कड़ी कार्रवाई के लिए अग्रिम साधुवाद दे रहे हंै। यह पक्का है कि मीडिया के नाम पर ब्लैकमेलिंग करने वालों को, अब किसी सूरत में बख्शा नहीं जायेगा। आम जनता से भी अनुरोध है। वह ऐसे लोगों के खिलाफ खुलकर शिकायत करें। ताकि मीडिया में फैली गंदगी को हटाने में, उसकी भी सहभागिता हो। वर्दी का भी सहयोग रहेगा…यह वर्दी का वादा है। बाकी तो हमें अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

काम…

नौकरी में काम तो करना ही पड़ता है। चाहे सरकारी हो या निजी। मगर शिवाजी भवन में एक नये काम की चर्चा जोरों पर है। यह काम है। सुबह-दोपहर-शाम-रात। हर वक्त वाटसअप देखना। आखिर नये मुखिया की पूरी कार्यप्रणाली इसी से जुड़ी है। इसीलिए तो हर विभाग का एक अलग ग्रुप बनाया गया है। लगभग 40 से 45 ग्रुप हैं। जिन पर कभी भी-किसी भी वक्त संदेश आ जाता है। फिर भले आप बाथरूम में हो या पूजा कर रहे हों। इसके पहले कभी ऐसा प्रयोग शिवाजी भवन में नहीं हुआ। खुद अपने उम्मीद जी ने इतने विभागों के बाद भी, इतने ग्रुप नहीं बनाये हैं। मगर नये मुखिया ने यह कर दिखाया है। तभी तो शिवाजी भवन के गलियारों में सुनाई दे रहा है। सुबह हो या शाम-मैसेज देखना-हमारा काम। अब शिवाजी भवन वालों की इस पीड़ा पर हम क्या कर सकते हैं। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।

नाम…

अपने चाचा शेक्सपियर भले ही यह बोल गये हैं। नाम में क्या रखा है। गुलाब तो गुलाह है। किसी भी नाम से पुकारों। लेकिन चुप रहेंगे का काम तो नामकरण से ही चलता है। बगैर नाम के पहचान कैसी। ग्रामीण सेवा से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी भी इन दिनों एक नाम खूब बोल रहे हैं। तुनकमिजाज मैडम। इशारा…दमदमा की नई मुखिया की तरफ है। जिनकी तुनकमिजाजी के किस्से खूब सुनाई दे रहे हंै। एक से बढक़र एक। अपनी मैडम तुनकमिजाज का पारा कब चढ़ जाये-कब उतर जाये। किसी को नहीं पता। पिछले सप्ताह शिक्षा के मुखिया शिकार हो गये। 2 इंक्रीमेंट रोकने की चेतावनी दे डाली। बेचारे…घबरा-घबरा गये। मगर थोड़ी देर में पारा उतर गया और अपनी मैडम तुनकमिजाज ने कुछ नहीं किया। लेकिन मैडम के व्यवहार और भाषाशैली को लेकर सवाल उठ रहे हंै। जिसमें हम क्या कर सकते हंै। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।

गटक गया…

कल्पना कीजिए। किसी मामले को लेकर आपने आवेदन दिया है। 8-10 दिन बाद आप उसी अधिकारी से मिले। सवाल करंे। मेरे आवेदन पर क्या कार्रवाई हुई। जिसके बदले जवाब मिले। वो कागज तो मैं गटक गया। यह सुनकर सामने वाला क्या करेगा। नि:संदेह गुस्सा ही होगा। ऐसा ही वाक्या शिवाजी भवन में घटित हुआ है। नये मुखिया को एक आवेदन दिया था। एक पूर्व नगर सेवक ने। जब वह प्रगति रिपोर्ट लेने पहुंचे। तो उनको मुखिया ने वही जवाब दिया। जो कि शीर्षक में लिखा है। बस…जवाब सुनते ही, पूर्व नगर सेवक का पारा चढ़ गया। उन्होंने भी उसी टोन में जवाब दिया। मामला बिगड़ता…इसके पहले ही मुखिया को गलती का अहसास हो गया। उन्होंने तत्काल पाला और मूड़ बदला। अपने शब्दों के लिए खेद भी व्यक्त कर दिया। जिसके बाद नगर सेवक और मुखिया दोनों ही इस मामले में चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

दस्तखत…

काकटेल और माकटेल क्या होता है। इसके बारे में अपुन को कुछ पता नहीं है। लेकिन लोस उपचुनाव में माकटेल सेवन, पंजाप्रेमियों को भारी पड़ गया है। शहर के ही पंजाप्रेमी थे। करीब आधा दर्जन। जो कि इंदौरी भय्या के समर्थक हैं। पंधाना गये थे। होटल में रुके। स्वीमिंग पुल का आनंद लिया। रात के डिनर में माकटेल लिया। बिल बन गया। करीब 4 हजारी। अब उस पर दस्तखत कौन करे। कारण…इंदौरी भय्या का डर था। 6 लोगों ने 4 हजारी खाना खा लिया। इसलिए एक-दूसरे को बोलते रहे। तुम कर दो-तुम कर दो। आखिरकार मजबूरी में बिलबुक पर दस्तखत करने पड़े। जिसके बाद इंदौरी भय्या की फटकार पड़ी या नहीं। इसको लेकर पंजाप्रेमी चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

नदारद…

कमलप्रेमियों जैसे चतुर कार्यकर्ता अपुन ने कभी नहीं देखे। मुंह देखकर तिलक लगाने में माहिर हैं। तभी तो दशहरा मिलन में यह नजारा देखा। शुरुआत होते ही अपने वजनदार जी पहुंच गये। कमलप्रेमी आते गये-उनके साथ सेल्फी लेने की होड़ दिखी। मगर जैसे ही अपने विकास पुरुष 30 मिनट बाद आये। एकदम से कमलप्रेमियों ने वजनदार जी को अकेला छोड़ दिया। सब विकास पुरुष के साथ सेल्फी लेने लग गये। अपने वजनदार जी ने करीब 15 मिनट वेट किया। फिर चुपचाप…धीरे-धीरे बाहर निकल गये। बाहर निकलकर 30 मिनट तक खड़े रहे। बातचीत करते रहे। अचानक ही नदारद हो गये। इधर अंदर अपने विकास पुरुष का जलवा बरकरार रहा। उनकी रवानगी तक। अब कमलप्रेमियों की इस चतुराई पर हम क्या कहें। इससे बेहतर है कि हम अपनी आदत के अनुसार चुप रहें।

समझौता…

यह एक कटु सत्य है। वर्दी आरोपी और फरियादी दोनों को नहीं छोड़ती है। बस मौका मिलना चाहिये। जैसा कि इन दिनों बस स्टैंड…इंदौर रोड वाली वर्दी को मिल गया है। एक टू-स्टार है। जिन्होंने एक जांच की थी। जिसमें फरियादी से 4 हजारी और 1 बोतल वसूली की। करीब ऐसे 43 फरियादी थे। जिनसे यह वसूली हुई है। मामला…1 पेटी पर 20 हजारी प्रति सप्ताह के ब्याज देने से जुड़ा है। आरोपी ने 5 खोखे का चूना लगा दिया। अपने स्वजातीय बंधुओं को। अब इस मामले में समझौते की पहल हुई है। कारण…आरोपी श्रीकृष्ण की जन्मस्थली में हैं और 5 खोखे की जमीन कुर्क होना है। इसी चक्कर में फरियादी ने अपने उम्मीद जी से मुलाकात की। जमीन कुर्क नहीं हो। उम्मीद जी ने भी सहमति दे दी। जो वर्दी को अखर गई। नतीजा अब आवेदन देने वालों को फोन किये जा रहे हैं। समझौता मत करना। फोन करने वाले वही टू-स्टार है, जिन्होंने सोमरस की बोतल और जेब गर्म की थी। अब वह धमकी के लहजे में नसीहत दे रहे हंै। ऐसी चर्चा लुटाये गये फरियादियों के बीच सुनाई दे रही है। अब सच-झूठ का फैसला तो अपने कप्तान को करना है। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

भड़ास…

इस शब्द का अर्थ, हमारे पाठक, हमसे बेहतर समझते हंै। इसलिए सीधे मुद्दे की बात लिखते हैं। भड़ास अपने पहलवान ने निकाली है। वह भी संगठन में हो रही नियुक्तियों को लेकर। मुख्यालय पर कोई बैठक थी। जहां नियुक्ति को लेकर सवाल उठ गया। अपने पहलवान वैसे तो तोल-मोल कर बोलते है। मगर शायद उस दिन भड़ास निकालनी थी। तभी तो बोल गये। नियुक्ति का क्या है? जेब में हरे-हरे गांधी जी रखकर ले जाओ। 3 दिन राजधानी में रहो। वापसी में नियुक्ति पत्र हाथ मेें होगा। अपने पहलवान ने जब यह भड़ास निकाली। तब कई कमलप्रेमी और अपने ढीला-मानुष सहित आराधना प्रेमी भी मौजूद थे। घटना करीब 8-10 दिन पुरानी है। अपने पहलवान की भड़ास सुनकर, जब ढीला-मानुष और आराधना प्रेमी चुप हंै। तो हम कौन होते हैं बोलने वाले। हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

मेरी पसंद…

जमाने का चलन तौलते बहुत हो/ चुप रहकर तुम बोलते बहुत हो। यह अशआर उज्जैन के शायर आरिफ अफजल ने हमको भेजा। जो हमको तो पसंद आया। शायद हमारे पाठकों को भी पसंद आये। बाकी तो हमें अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

-प्रशांत अंजाना

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