पंचायत चुनाव टालना प्रदेश सरकार का समझदारी भरा कदम

ओबीसी सीटों को छोड़कर पंचायत चुनाव कराये जाते तो मतदाताओं का एक बहुत बड़े धड़े के नाराज होने का खतरा बढ़ जाता। ऐसे में सरकार ने कदम पीछे लेते हुए देर रात को चुनाव स्थगित करने का समझदारी भरा कदम उठाया है ।

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार प्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही है। न्यायालय द्वारा ओबीसी सीटों पर चुनावों पर लगायी गयी रोक ने सरकार का सारा गणित बिगाड़कर रख दिया है। यदि ओबीसी सीटों को छोड़कर पंचायत चुनाव कराये जाते तो मतदाताओं का एक बहुत बड़े धड़े के नाराज होने का खतरा बढ़ जाता। ऐसे में सरकार ने कदम पीछे लेते हुए देर रात को चुनाव स्थगित करने का समझदारी भरा कदम उठाया है ।

हमारे देश में वैदिक काल से ही पंचायतों का अस्तित्व रहा है वेदों से जानकारी मिलती है कि तब ग्राम प्रमुख को ग्रामणी कहा जाता था। उत्तर वैदिक काल में राजा ग्राम के शासक हुआ करता था । बौद्धकालीन ग्राम परिषद में ग्राम के वृद्ध शामिल किये जाते थे | ग्राम परिषद का प्रमुख ग्राम भोजक कहलाता था। यह ग्राम परिषदें ग्राम की भूमि व्यवस्था, ग्राम में शांति और सुरक्षा बनाये रखने के साथ जनहित के अनेक कार्य करती थी। ग्राम परिषद के सदस्य इन सब कार्यों में ग्राम भोजक की सहायता करते थे।

भारतीय स्मृति ग्रंथों में भी पंचायत प्रणाली का उल्लेख है। कौटिल्य ने ग्राम को राजनैतिक इकाई माना है और ग्राम प्रमुख था को उस दौरान ग्रामिक कहा जाता जो ग्राम की सार्वजनिक आवश्यकताओं का प्रबंधन करता था और पंचायत द्वारा किये गये जुर्माने, दंड आदि से धन की व्यवस्था की जाती थी । 9वीं – 10वीं शताब्दी में चोल वंश में भी पंचायत व्यवस्था लागू थी। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान यह व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी थी।

देश की आजादी पश्चात सन् 1947 में फिर से पंचायती राज अधिनियम लागू किया गया। यह ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन की प्रणाली है जो तीन स्तरों पर काम करती है ( 1 ) ग्राम पंचायत (2) जनपद या ब्लाक पंचायत (3) जिला पंचायत । इन संस्थाओं का काम अपने अधिकार क्षेत्र में सामाजिक न्याय मजबूत करना, केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं को लागू करना था।

भारत में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर 1959 को पहली बार राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था लागू की थी। 22 अप्रैल 1993 में 73वें 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया ।

इन संशोधनों में पंचायती राज अंतर्गत ग्राम, जनपद, जिला के तीन स्तर निर्धारित किये जाने के साथ ही ग्राम स्तर पर ग्राम सभा का प्रावधान, प्रत्येक 5 वर्षों में नियमित चुनाव, अजा/जजा वर्गों के लिये जनसंख्या के अनुपात में सीटों को आरक्षण, महिलाओं के लिये 1/3 सीटें आरक्षित, राज्य वित्त आयोग का गठन एवं राज्य चुनाव आयोग को निर्वाचन कराये जाने हेतु अधिकृत किया।

73वें संविधान संशोधन अधिनियम में पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिये राज्य सरकारों को अधिकृत किया गया। इसमें कर, टोल शुल्क, रायल्टी आदि लगाने और वसूलने का अधिकार पंचायतों को दिया गया साथ ही राज्यों द्वारा एकत्र किये जाने वाले कर, ड्यूटी शुल्क आदि का हस्तांतरण पंचायतों को किये जाने का प्रावधान रखा गया।

138 करोड़ आबादी वाले हमारे देश में 6 लाख, 28 हजार, 221 ग्राम हैं जिनमें 660 जिला पंचायते, 6834 जनपद (ब्लाक) पंचायतें और 2 लाख 55 हजार 780 ग्राम पंचायतें हैं। यदि 7 करोड़ 25 लाख आबादी वाले हमारे मध्यप्रदेश की बात करें तो यहाँ 51 जिला पंचायतें, 313 जनपद और 22 हजार 785 ग्राम पंचायतें हैं। मध्यप्रदेश में चूँकि राज्य निर्वाचन आयोग मतदान से लेकर मतगणना तक की दिनांक निर्धारित कर चुका था। इस कारण सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर चुनाव रोके जाने आग्रह किया । के बिनेट के इस प्रस्ताव पर देर रात महामहिम राज्यपाल ने भी मुहर लगा दी और चुनाव आगामी आदेश तक के लिए स्थगित हो गये। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच सरकार का कदम समझदारी भरा कहा जा सकता है | इस बीच आरक्षण प्रक्रिया भी पूरी करने में आसानी होगी।

• अर्जुनसिंह चंदेल

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