हम चुप रहेंगे ( 14 फरवरी 2022)

दु:ख …

प्रभु जाको दारूण दु:ख देहि/ ताकि मति पहले हर लेहि। बाबा तुलसीदास ने यह कटू सत्य हजारों साल पहले लिखा था। जिसका सीधा अर्थ है। प्रभु अगर दु:ख देता है तो बुद्धि पहले बिगाड़ देता है। कुछ ऐसा ही अपने फूलपेंटधारी के साथ हो सकता था। बाबा के दरबार में तो यही चर्चा है। वजह … अपने फूलपेंटवाले साहब, रात के अंधेरे में मंदिर हटाने को तैयार थे। वह तो कोठी वाले एक अधिकारी को भनक लग गई। जिन्होंने फूलपेंट वालो की मति भ्रष्ट होने से पहले अक्ल दे डाली। जो करना- दिन के उजाले में करना। फूलपेंट साहब को भी समझ में आ गया। वरना, बाबा तुलसीदास की चौपाई सही साबित हो जाती। ऐसी बाबा के दरबार में चर्चा है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

पटकनी …

दंगल के मैदान में एक दाव होता है। जिसे धोबी- पछाड़ दाव बोला जाता है। इसका यह नाम क्यों पड़ा। इसका इतिहास हमको नहीं पता। मगर यह जानते है। सामने वाला विरोधी इस धोबी पछाड़ के बाद उठ नहीं पाता है। कोठी के गलियारों में इस दाव की चर्चा जोरो पर है। जिसमें इशारा अपने उम्मीद जी की तरफ है। जिन्होंने सप्त सागरों में से एक सागर पर यह दाव आजमाया। इस दाव के चलते भू-माफिया की सारी हेकड़ी निकल गई। सागर भी मुक्त हो गया। नतीजा … खुलकर कोठी के गलियारों में धोबी पछाड़ की चर्चा है। मगर हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

चुनाव …

शहर के पंजाप्रेमी मुखिया को हटाने की तमाम कवायद बेअसर साबित हुई है। राजधानी में सैकड़ो शिकायत पहुंच चुकी है। हर दफा ऊपर से झुनझुना थमा दिया जाता है। जल्दी ही कार्रवाई होगी? मगर कोई भी अपने कामरेड को नहीं हटवा पाया। इसके पीछे आखिर कारण क्या है? असली कारण अपने बिरयानी नेताजी है। जो कि पर्दे के पीछे असली मुखिया है। जब तक उनकी मर्जी नहीं होगी। कामरेड का बाल- बांका नहीं हो सकता है। फिलहाल बिरयानी नेताजी की मर्जी यही है। अपने कामरेड बने रहे। तभी तो वह हटाने की बात पर बोल रहे है। जल्दी क्या है? चुनाव बाद हटा देंगे? मगर कौन से चुनाव? इसको लेकर वह चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मैं दूंगा …

अपने उम्मीद जी ने अभी-अभी एक सहभोज का आयोजन किया था। बंगले पर- शुक्रवार के दिन। सभी अनुभाग के राजस्व अधिकारी मौजूद थे। वहां पर एक ऐसी घटना हुई। जिसके चलते उम्मीद जी सहित सभी ने ठहाका लगाया। सहभोज में उम्मीद जी ने घोषणा कर दी। अगली राजस्व बैठक में जो अनुभाग फिसड्डी रहेगा। उसको भोजन करवाना होगा। इतना सुनते ही एक अनुभाग के मुखिया आगे आ गये। घोषणा कर दी। अगला भोजन मैं दूंगा। यह सुनकर उम्मीद जी ने तंज कसा। अभी-अभी 7 दिन का वेतन कटा है। और फिर ठान लिया। अगली बार भी फिसड्डी ही रहना है।

तब भी अनुभाग अधिकारी को बात समझ में नहीं आई। वह मैं दूंगा- मैं दूंगा का राग अलापते रहे। जबकि बाकी सभी अधिकारी के चेहरों पर मुस्कान थी। अब मुर्ख अधिकारी की समझ पर हम क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

चुप …

कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारी के सामने चुप रहना बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। खासकर तब, जब सामने सवाल करने वाले अपने उम्मीद जी हो। ऐसे में मातहत की चुप्पी 1 महीने का वेतन कटवा सकती है। राजस्व बैठक में यही हुआ। सीएम हेल्पलाइन का मामला था। उम्मीद जी के सवाल पर सच नहीं बोल पाये तहसीलदार। सच यह था कि दोनों आंखों का आपरेशन हुआ था।

15 दिन अवकाश पर थे। अगर यह बता देते तो शायद अपने उम्मीद जी दरियादिली दिखा देते। मगर मातहत चुप रहे। नतीजा 1 महीने का वेतन काटने का आदेश हो गया। अब देखना यह है कि अपने उम्मीद जी के समक्ष, अपनी पीड़ा तहसीलदार कब सुनाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बाबू…

शीर्षक पढक़र अंदाजा नहीं लगाये। हम खबरचियों की संस्था वाले बाबू की बात कर रहे है। हम तो हर सरकारी कार्यालय में पदस्थ बाबू की बात कर रहे है। जिनके बगैर अधिकारियों का कोई काम नहीं होता है। बगैर बाबू के अधिकारी, ऐसा होता है, जैसे रामदुलारी मायके गई हो। तभी तो ग्रामीण अनुभाग के एसडीएम ने बोल दिया।

साहब … बाबू नहीं था। उम्मीद जी को यह जवाब पसंद नहीं आया। उन्होंने पलटकर कह दिया। फिर ऐसा करते है। बाबू को ही एसडीएम बना देते है। जिसके बाद 7 दिन का वेतन काटने के आदेश दे दिये। बेचारे … एसडीएम ने उसके बाद चुप रहना ही ठीक समझा। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैे।

फायदा…

किसी भी जमीन की कीमत तब ज्यादा होती है। जब वहां से सरकारी सडक़ का निर्माण हो जाये। फिर तो जमीन की कीमत चार गुनी हो जाती है। कालोनी काटने वालो की भी पौ-बारह हो जाती है। अपने कमलप्रेमी एक भूमि पूजन के बाद ऐसा बोल रहे है। जिसमें इशारा शनिवार को हुए भूमि पूजन की तरफ है। इंदौर रोड पर अपने विकास पुरूष ने, ना केवल भूमिपूजन किया है, बल्कि अपनी निधि से राशि भी दी है। जिसका फायदा सीधे-सीधे उन बिल्डरों को होगा। जो वर्षो से इंतजार कर रहे थे।

कब सरकारी सडक़ बने और कब कालोनी काटे। अपने विकास पुरूष ने कुछ शर्तो के साथ भूमिपूजन कर दिया। शर्ते क्या होंगी? इसको लिखने की जरूरत नहीं है? क्योंकि हमारे पाठक हमसे ज्यादा, अपने विकास पुरूष को समझते और जानते है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

तंज …

अपने पहलवान हाजिर- जवाब है। बस मौका मिलना चाहिये। जैसे रविवार को मिल गया। सह-आवासीय काम्प्लेक्स भूमिपूजन में। अपने विकास पुरूष ने उन पर तंज मारा। पहलवान… 22 महीने बाद इसका लोकापर्ण भी हमको साथ-साथ करना है। विकास पुरूष के तंज को अपने पहलवान तत्काल समझ गये। उन्होंने पलटकर कहा। हम रहे या ना रहे… आप तो रहोगे ही। पहलवान के इस पलटवार पर एक ठहाका तो लगा। मगर, उनके जवाब के बाद अपने विकास पुरूष चुप रह गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मेरी पसंद …

मुझको डर है कोई सपने ना चुरा ले तेरे।
सैकड़ों और भी है चाहने वाले तेरे।।
मुस्कुराती हुई आंखों से वो रोना तेरा।
सारी दुनिया से है दु:ख- दर्द निराले तेरे।।
आ लगा दूं तेरे होंठो पे प्यार की मोहर।
ताकि आंसू ना कोई राज उछाले तेरे।।
तुझको हाथों पे उठाकर मुझे करना है सफर।
देख सकता नहीं मैं पांव के छाले तेरे।।
इश्क करो… खूब करो… जब तक जिंदा हो… तब तक करो।

– प्रशांत अंजाना

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