अर्जुन के बाण: भाजपा प्रत्याशी में पारस जी की छवि तलाश रहे हैं उत्तर के मतदाता

– अर्जुन सिंह चंदेल

उज्जैन-उत्तर विधानसभा के लिये प्रत्याशी का चयन भारतीय जनता पार्टी के चयनकर्ताओं के लिये मुसीबत का सबब बनता जा रहा है। राजनैतिक पंडितों का मानना है कि उज्जैन-उत्तर एवं महिदपुर विधानसभा के लिये प्रत्याशी चयन भाजपा के गले में खतरे की घंटी साबित हो रहा है।

यदि बात करें उत्तर विधानसभा की तो भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन विधायक पारस जी की वजनदार छवि के आगे बहुत बौने साबित हो रहे हैं। जनसंपर्क के दौरान हर मतदाता उनमें पारस जी के व्यक्तित्व की तस्वीर तलाशता नजर आता है और अपने आपको निराश और ठगा महसूस पाता है।

मतदाताओं का कहना है कि उज्जैन उत्तर से पारस जी को टिकट नहीं देकर भारतीय जनता पार्टी ने बहुत बड़ी भूल की है जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा। मुस्लिम और बोहरा समाज में तगड़ी पैठ जमा चुके पारस जी लगभग 7 से 8 हजार अल्पसंख्यकों के मत अपने व्यक्तिगत व्यवहार के कारण पाने में हर बार सफल होते थे परंतु इस बार भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाला वह अल्पसंख्यक मतदाता पारस जी को टिकट नहीं मिलने के कारण भाजपा से नाराज होकर काँग्रेस के पक्ष में मतदान करेगा जिसका सीधे-सीधे नुकसान भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन को उठाना पड़ेगा।

विष्णुदत्त शर्मा से नजदीकी के चलते और आरएसएस के एक पदाधिकारी की व्यक्तिगत पसंद होने के कारण अनिल जैन टिकट लाने में तो कामयाब हो गये परंतु उनकी राह काँटो भरी है।

उत्तर के भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन की व्यक्तिगत छवि भी दक्षिण के प्रत्याशी की तरह साफ सुथरी नहीं है। दबी जुबान मतदाता कहते हैं कि दक्षिण में तो जमीनों का खेल जितना होना था हो गया अब उत्तर क्षेत्र की जमीनों को भी खतरों में डालने की जोखिम नहीं ली जा सकती है।

यदि हम काँग्रेस प्रत्याशी की बात करें तो एक तो उनकी सौम्य और संस्कारित महिला होने की छवि मतदाताओं को आकर्षित कर रही है दूसरा प्लस पाइंट इस बार के चुनाव में काँग्रेस के पक्ष में यह है कि इस बार सेबोटेज की संभावना बहुत कम है, जो काँग्रेस के लिये लाभप्रद है। काँग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में पड़े मतों को 40000 बाद से गिनना होगा क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय का यदि मतदान प्रतिशत अच्छा रहा तो वह पूरी तरह काँग्रेस के पक्ष में होगा।

यदि अंदरखाने की बातों पर विश्वास किया जाए तो विप्र समाज (परशुरामवंशी) इस बार भारतीय जनता पार्टी से नाराज है। उसका मुख्य कारण पिछले आठ बार के विधानसभा चुनावों से भारतीय जनता पार्टी द्वारा जैन समाज से ही प्रत्याशी बनाया जा रहा है जिसे ब्राह्मण समाज अपनी उपेक्षा के तौर पर महसूस कर रहा है। यदि ब्राह्मण समाज ने इस बार मतदान में भाजपा से मुँह मोड़ लिया तो अनिल जैन कालूहेड़ा की फजीहत होना तय है।

अभी तक तो प्रत्यक्ष रूप से किसी भी दल की ओर हवा महसूस नहीं हो रही है ना ही कोई लहर है ऐसे में प्रत्याशियों का तुलनात्मक व्यक्तित्व ही निर्णय करेगा। फर्श से अर्श पर पहुँचे लक्ष्मीपुत्र भाजपा प्रत्याशी के जीवन की कहानी भी दक्षिण के प्रत्याशी से मिलती जुलती है। जमीनों के खेल में अरबपति बन चुके भाजपा प्रत्याशी ने जहाँ-जहाँ कॉलोनियां काटी है वहाँ के रहवासी भी त्रस्त हैं और उनकी दुआ-बद्दुआ भी चुनाव परिणामों पर असर डालेगी।

दूसरी ओर काँग्रेस प्रत्याशी के पतिदेव का समाजजनों से ही सामंजस्य ना बैठ पाना मैदानी तौर पर परेशानी का सबब बन रहा है। वैसे भी काँग्रेस का इतिहास है कि भाग्य ने कभी भी पार्टी के बागियों का साथ नहीं दिया है और यदि इतिहास नया लिखाता है तो इसे भगवान महाकाल का आशीर्वाद ही माना जायेगा।
खैर मुकाबला एकतरफा नहीं है टक्कर काँटे की है।

(दक्षिण क्षेत्र का विश्लेषण कल)

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