हम चुप रहेंगेः 18 जनवरी 2021

-प्रशांत अंजाना

नसीहत…

जो उच्च पदों पर विराजमान है, उनको समय का ध्यान रखना चाहिये। किसी भी कार्यक्रम में समय पर आना चाहिये। यह नसीहत देने वाले अपने पहलवान जी है। जो उन्होंने मंच से खुलेआम दी। मौका था नक्षत्र वाटिका के शुभारंभ का। अब सवाल यह है कि आखिर उन्होंने यह नसीहत किसको दी। हमारे पाठक सोच रहे होंगे कि नसीहत अपने विकास पुरुष को दी होगी। मगर उनका अंदाजा गलत है। दरअसल यह नसीहत तो उनको दी गई। जिनके कार्यक्रम में अपने पहलवान सीढिय़ां उतरते वक्त गुलाटी खा गये थे। अब तो पाठकों को समझ में आ गया होगा। नसीहत अपने वजनदार जी के लिए थी। जो कि कार्यक्रम में 1 घंटा देरी से पहुंचे थे। पहलवान की इस नसीहत की कमलप्रेमी चटकारे लेकर चर्चा कर रहे हंै। लेकिन हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

बुरे दिन…

बाबा महाकाल का न्याय भी अजीब है। जब आप ऊंचाइयों पर होते हैं, तो वह आपकी करनी देखकर मुस्कुराता रहता है। फिर एक झटके में ऊपर से नीचे ला देता है। तब जाकर सामने वाले के बुरे दिन शुरू होते हैं। जैसे इन दिनों अपने दिल्ली वाले नेताजी के चल रहे थे। अपने कार्यकाल में दिल्ली वाले नेताजी का ईगो सातवें आसमान पर था। जिधर जाते-दरवाजे खुल जाते-सेल्यूट मिलता था। मगर दिव्यांग कार्यक्रम में उनके वर्तमान बुरे दिन नजर आ गये। वीआईपी गेट पर इंट्री नहीं मिली। इंट्री नहीं मिली तो मंच का सवाल ही नहीं उठता है। तब वह जहां दिव्यांग बैठे थे, वहां पहुंचे। नजारा देखकर अचरज में थे। उनके साथ कुछ समर्थक भी थे। कही जगह नहीं मिली तो यह बोलते नजर आये…चलो उधर छांव में खड़े होंगे। यह देखने वाले कमलप्रेमी भी थे। जिन्होंने इसे दिल्ली वाले नेताजी के बुरे दिन बताये। उनके इस बुरे दिनों में ही प्रदेश स्तर पर नियुक्ति मिल गई। मतलब…प्रथम नागरिक का ख्वाब भी टूट गया। जिसको लेकर हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रहेंगे।

डंडा…

कमलप्रेमियों को केवल एक ही जगह से डंडा होता है। उस डंडे की फटकार से ही सब ठीक हो जाते है। डंडा…सीधे आराधना से आता है। जैसा कि शनिवार को आया। एक दिन पहले फ्रीगंज मुख्यालय पर कार्यक्रम रख लिया। स्वागत-वंदन-अभिनंदन का। अपने लेटरबाज जी ने। मगर आराधना को यह पसंद नहीं आया। कारण…राम मंदिर अनुदान के लिए सभी काम पर लगे हुए हैं। ऐसे में सभी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई है। लेकिन लेटरबाज जी ने बगैर सोचे-समझे कार्यक्रम रख दिया। नतीजा…आराधना से फटकार वाला डंडा पड़ा और कार्यक्रम रद्द हो गया। ऐसी चर्चा कमलप्रेमियों में सुनाई दे रही है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।

सैक्सी…

अपने विकास पुरुष को तो सभी ने देखा है। स्मार्ट है। बातचीत में कलाकंद जैसी मिठास होती है। मिलते वक्त उनके चेहरे की मुस्कान भी शानदार होती है। इतनी योग्यता के बाद भी कभी किसी को उनमें सैक्सी अपील नजर नहीं आई। लेकिन एक हास्य अभिनेता को उनमें सैक्सी छबि नजर आई है। मुक्ताकाशी के मंच पर। हमारी जेल में सुरंग और अंग्रेजो के जमाने के जेलर है-डायलॉग बोलने वाले अभिनेता ने तीन बार मंच से बोला। अपने विकास पुरुष सैक्सी लगते हैं। अब कमलप्रेमी सोच और बोल रहे हैं कि…आखिर अपने विकास पुरुष वाकई सैक्सी लगते हैं…या अभिनेता की नजरे कमजोर थीं। खैर जो भी हो, विकास पुरुष को सैक्सी उपाधि मिलने से उनके समर्थक खुश हैं। तो हम भी खुशी में शामिल होते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

रवानगी…

अपने 7 जिलो के खुशमिजाज जी की अचानक हुई रवानगी पर सवाल उठ रहे हैं? आखिर क्या कारण रहा? जो इस तरीके से रवानगी हुई। सबकुछ अच्छा चल रहा था। वैसे भी अपने खुशमिजाज जी की दिली इच्छा थी। बाबा की नगरी से ही सेवा मुक्ति मिले। ज्यादा समय भी नहीं बचा है। फिर भी रवानगी हो गई। जिसको लेकर 2 कयास कोठी के गलियारों में सुनाई दे रहे हैं। पहला यह कि कमलप्रेमियों ने उच्च स्तर पर शिकायत दर्ज कराई थी। दूसरा यह है कि खुशमिजाज जी, सेवामुक्ति के बाद भी सेवाएं देने के मूड में है। जिसके लिए मामाजी के घर में नियुक्ति करवा ली। जहां पर सेवामुक्ति के बाद संविदा नियुक्ति आसानी से हो जायेगी। सच क्या है। यह तो अपने खुशमिजाज जी ही बता सकते हैं। मगर वह चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

खेल…

हम शहरवासी स्मार्ट होते जा रहे हंै। आखिर योजना है। स्मार्ट सिटी के नाम पर। जल्दी ही इसी योजना के तहत शहर के विद्युत पोलो पर एलईडी नजर आयेगी। करीब 25 हजारी एलईडी लगनी है। 1 की कीमत 6 हजारी है। अब एक सच यह भी जानिये। ऐसी ही एलईडी विद्युत विभाग भी ले रहा है। निविदा निकाली है। कीमत मात्र 1700 की आ रही है। इधर स्मार्ट बना रहे जिम्मेदारों ने बगैर निविदा निकाले एक कंपनी से सौदा कर लिया है। 1700 की एलईडी 6 हजारी कीमत की हो गई है। ऐसी चर्चा स्मार्ट भवन से लेकर शिवाजी भवन तक चल रही है। इसे बोलते हैं, ईमानदारी वाला खेल। जिसमें हम तो कुछ कर नहीं सकते हैं। तो फिर आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

बनाकर दे क्या…

अवैध शराब को लेकर अपने मामाजी सख्त है। जिस जिले में मिली-उस जिले के मुखिया और कप्तान पर गाज गिरना पक्का है। मामा जी के इस कदम से नौकरशाही भयाक्रांत है। यही वजह है कि कल तक अवैध शराब पकडऩे का काम वर्दी करती थी। मगर अब इस काम के लिए राजस्व विभाग को भी जिम्मेदारी दी गई है। अब अवैध शराब पकडऩे का काम ग्राम देवता भी करेंगे। कारण…अपने उम्मीद जी ने सभी अनुभाग के मुखियाओं को शनिवार के दिन बुलाया था। निर्देश दिये कि अवैध शराब पकड़ो। अनुभाग के मुखियाओं ने अपने-अपने ग्राम देवताओं को काम पर लगा दिया। कल तक कटाई-बुआई-सीमांकन-पावती का काम करने वाले ग्राम देवता अचरज में आ गये। अब शराब पकडऩा है। ऐसे में ग्राम देवता बोल रहे है कि…क्या अब शराब बनाकर दे? देखना यह है कि ग्राम देवतागण अब वर्दी को मात देकर, अवैध शराब कितनी पकड़वाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मत छापना…

बात अपने पहलवान की है। पंजाप्रेमी पहलवान की। जो कि दाल-बिस्किट वाली तहसील के पहलवान है। उन्होंने अभी कुछ दिन पहले धरना दिया था। जहां पर कृषि बिल और एक तस्वीर को जलाया। देश के मुखिया की तस्वीर थी। जिसके बाद प्रेसनोट भी जारी कर दिया। बस फिर क्या था। हडक़ंप मचना ही था। मीडिया के पास वर्दी के फोन गये। पूछताछ हुई। नतीजा सीधे पहलवान को चेतावनी दी गई। प्रकरण कायम होगा…अगर खबर प्रकाशित हुई। बस…चेतावनी काम कर गई। पहलवान की तरफ से ही मीडिया को फोन गये। यह लाइन मत छापना। ऐसी चर्चा दाल-बिस्किट वाली तहसील में खूब सुनाई दे रही है। मगर हमको इससे क्या लेना-देना। हमारा तो काम है। बस आदत के अनुसार चुप रहना।

जांच…

एक बार फिर बात दाल-बिस्किट वाली तहसील की है। जहां के पीली बत्ती शौकीन अधिकारी एक जांच करने गये थे। खनिज से जुड़ी जांच थी। मगर जिसकी जांच करने गये, वह कमलप्रेमी है और एक कमंडल के मुखिया है। पीली बत्ती के शौकीन करीब 60 मिनट तक जांच करते रहे। जिसके बाद सभी उम्मीद थी कि…जांच के परिणाम चौंकाने वाले होंगे। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। 7 दिन हो चुके हैं। पीली बत्ती के शौकीन इसको लेकर चुप हैं। ऐसी चर्चा दाल-बिस्किट की तहसील में खूब सुनाई दे रही है। अब जांच हुई और क्या परिणाम निकला। इसका फैसला हमारे समझदार पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप रहना है।

कमीशन…

सरकारी कार्यालय के गलियारों में इस शब्द से हर कोई वाकिफ है। कमीशन का खेल हमेशा चलता है। ताजा मामला एक निजी बैंक में खाता खुलवाने से जुड़ा है। बैंक वाले राशि जमा करवाने के लिए सरकारी कार्यालयों में अकसर चक्कर काटते नजर आते है। इसके लिए ऑफर भी दिये जाते हैं। जो ज्यादा कमीशन का हो, वह सेट हो जाता है। कोठी के गलियारों में यही चर्चा है कि 100 खोखे जमा कराने के बदले 2 प्रतिशत का कमीशन मिला है। यह राशि कितनी होगी? हमारे पाठक गणित में हमसे ज्यादा समझदार है। तो पाठक गुणा-भाग करके समझ गये होंगे। आखिर कितना कमीशन मिला होगा। अब जब पाठक समझ चुके है तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

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