तबादलों की गर्जना, गरजने वाले बरसे नहीं

झाबुआ। सावन का महिना परवान पर है। बादलों की गर्जना व बरसना भी जारी है। एक ओर गरज़ते बादल कही गरज रहे कहीं बरस रहे। तों कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ सा दृश्य लिए हैं। चहुंओर हरियाली है तो राजनीतिक मरूस्थल में अभी भी जिला सूखा हुआ है। सात तारीख निकल गई पर जोर जोर से गरजने वाले बादल बरसने के बजाय गडग़ड़ाहट कर कहीं ओझल हो गये।

तबादलों व बादलों का चोली दामन का साथ है। यह बेमौसम भी बरस जाते। फऱवरी मार्च में के पहले तबादला का मावठा हुआ था जिसमें जनजातीय विभाग के लेखापाल प्रिंसीपल पर ज़रूर गाज गिरी पर। इनमें से कुछ अंगद के पांव को कुछ असर नहीं। नतीजन एक लेखापाल ने इसके बावजूद जमकर मलाई रिश्वत की सूती जिससे उसकी मिठास तक खटास में बदल गयी।

एक जिला मुख्यालय के खबरनवीस से तो उक्त महाशय ने खटास को जगजाहिर न होने हेतु जमकर सेटिंग की पर फिर भी ख़ैर खून खांसी खुशी की तर्ज पर जंगल की आग की तरह खबर जग जाहिर। फिलहाल महाशय आराम फरमा रहे व बहुत जल्द तिकड़म से फिर अंगद की तरह अडिग हो सकते। एक प्रिंसीपल साहब अति आनंद में आ बैल मुझे मार स्थिति में जिला बदर पर छ: माह बाद भी सत्ता सुंदरी के चलते किसकी मजाल उन्हें रूखसती करे? अब वे ब्लाक महकमे की कुर्सी की फिऱाक में।

पहले ही अपने मातहत से पौ बारह हुए उक्त साहब के तलवे चाटने व हर दल की परिक्रमा के किस्से जंग जाहिर है। इस तरह तबादलों का मावठा पहले भी पड़ चुका। अब तबादलों के बादल गरज गरज धरती सेवकों की हरियाली महोत्सव हेतु सक्रिय हैं। सावन के अंधे को सब दूर हरा हरा दिखता। यह कहावत भी हर नेता जो सत्ता पक्ष से जुड़ा है अधिकारियों व कर्मचारियों को देख चरितार्थ कर रहा है?। चौराहे चौपाल व भोपाल तक बदली का बादर राग चरम पर है। बस इंतजार बैक डेट में लिस्ट का।

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