एक अकेला थक जायेगा, मिलकर हाथ बंटाना, साथी हाथ बढ़ाना साथी रे

कोविड की दूसरी लहर अपने चरम पर है। पूरे देश में पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक कोरोना को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। राजनीतिक गिद्ध इस महामारी को अपनी राजनीतिक गिद्ध दृष्टि से देखते हुए सोशल मीडिया से लेकर समाचार माध्यमों में आरोप-प्रत्यारोप के जहरीले बाण छोड़ रही है।

महामारी के इस दौर में प्रशासनिक, सामाजिक और आपसी सहयोग सदभाव की आवश्यकता। मिशनरी राजनीति के आगे मत्था टेकने वाली हो चलने के कारण अपनी कुशलता, दक्षता ईमानदारी से दिखा पाने में असक्षम है। ऐसा भी नहीं है कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था और तंत्र नाकाम हो गया है। राजनीतिक दबाव के बाद भी कुछ हद तक कार्य को ईमानदारी से अमलीजामा पहनाने में लगे हंै। बाद उसके कोरोना महामारी के इस दौर से निपटने के लिए हमारी चूक कहां हो रही। क्यों कालाबाजारी के सवाल उठने लगे, क्यों अस्पतालों में संसाधनों की कमी आयी, इन तमाम बातों की ओर ध्यान कर हर शख्स को अपने स्तर से समस्या का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए।

ऐसा भी नहीं है कि इस धारा पर महामारी और प्रकोप पहले भी कई मर्तबा आ चुके हैं। आधुनिक संसाधनों का जो दौर शुरू नहीं हुआ था और संचार माध्यम भी सिर्फ और सिर्फ ग्राम की चौपाल (यानी राजशाही जमाने में) हुआ करती थी, तब प्रलय, प्रकोप, महामारियों ने धरावसियों को चपेट में लिया। उस समय इन महामारियों से निपटने हेतु सामूहिक संकल्प, बैर, वैमनस्यता भूल सिर्फ और सिर्फ मानव कल्याण को शिरोधार्य कर नर सेवा नारायण सेवा किया करते थे। जिसके चलते बड़ी से बड़ी महामारियों से छुटकारा पाया।

गत वर्ष से देश कोविड-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है। सरकारें और शासन अपने स्तर से प्रयासों में जुटे हंै। संसाधनों की आवश्यकता पहले से कैसे पता चलेगी की इतनी आवश्यकता है। इस महामारी में संसाधनों की व्यवस्था भी अर्थशास्त्र के मांग और पूर्ति के नियम पर निर्भर करती है। महामारी से दो-दो हाथ करना सिर्फ सरकार और शासन के ही भरोसे रहना मतलब अपने पाव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

मैंने अभी तीन दिन पहले ही गुजरात के गोधरा शहर में देखा तो आंखे फफक पड़ी। यहां जो अस्पताल था वो राजनीतिक निगाहों से अल्पसंख्यक इलाके में अल्पसंख्यक लोगों का ही था पर सेवा इस कदर की जा रही थी कि 40 डिग्री तापमान की गर्मी रमजान का भूखापन भी भुला बैठे। ओरों के दर्द में वहीं संघ के सदस्य जिनमें सेवा विभाग के पारस भाई कोठारी, विहिप सेवा प्रमुख शैलेश भाई भाटिया, धर्मजागरण विभाग के अरविंद भाई सिसौदिया और उनके साथी अस्पतालों से काल आते ही शव वाहन लेकर दौड़ पड़ते हैं और कोविड सहित लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाजों से करते हंै।

गोधरा के मुक्तिधाम का दृश्य देख आंखे नम हो गयी। सेवा आज भी जिंदा बस सिर्फ मानव सेवा, माधव सेवा का संकल्प लेते हुए कहें कि साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, एक अकेला थक जाएगा मिल कर हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना साथी रे। न कि अपनी रोटी उजली रख महामारी की आग में दूसरों की रोटियां जलाने का ध्येय रखना।

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