हम चुप रहेंगे (31 मई 2021)

गलती…

शायर वसीम बरेलवी का कहना है। वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से/मैं एतबार ना करता तो और क्या करता। अपने कमलप्रेमी इन दिनों यह अशआर कुछ ज्यादा ही सुना रहे हंै। इशारा अपने विकास पुरुष की तरफ है। जिन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट अपलोड की थी। जिसमें पीटीएस में ऑक्सीजन प्लांट विधायक निधि से बनवाने का जिक्र था। जबकि यह जनसहयोग से भी बना है। अपनी इस गलती को विकास पुरुष ने सुधार भी लिया। शुभारंभ के बाद अपलोड पोस्ट में जनसहयोग का जिक्र भी कर दिया। लेकिन कमलप्रेमी केवल वसीम बरेलवी को ही गुनगुना रहे हंै। जिसमें हम क्या कर सकते हंै। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।

आईना…

आईने की फितरत होती है। जो सामने होता है-उसे वैसा ही दिखाता है। किसी शायर ने खूब कहा है। मैं आईना हूं जो देखूंगा वही दिखाउंगा/फरेब देने का मुझको हुनर नहीं आता। मगर अपने विकास पुरुष ने आईने पर ही सवाल उठा दिया है। अपने दिये गये बयान को लेकर। उन्होंने बयान में कांट-छांट करके अपने हिसाब से दुष्प्रचारित करने की बात कह डाली। अब सवाल कमलप्रेमी उठा रहे है। किसकी इतनी हिम्मत होगी…जो अपने विकास पुरुष के बयान में कांट-छांट करे। आईने ने तो वही दिखाया-जो उन्होंने बोला था। इसके बाद भी अगर विकास पुरुष का दावा है, तो हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रहेंंगे।

नाराज…

अपने वजनदार जी, क्या कभी अपने मामाजी से नाराज हो सकते हंै? यह सवाल किसी भी कमलप्रेमी से पूछ लीजिए। जवाब मिलेगा- नहीं। मगर वरिष्ठ कमलप्रेमियों की बैठक में वजनदार जी कुछ ऐसा बोल गये। जिसके बाद यही लग रहा है कि…वजनदार जी नाराज हैं। अपने मामाजी की एक घोषणा से। जिसमें कोरोना से मरने वाले माता-पिता के बदले 5 हजार देने का जिक्र था। इस घोषणा में अपने मामाजी के इशारे पर संशोधन हुआ है। अंदरखाने की खबर है कि योजना का लाभ उनको ही मिलेगा, जिसके माता-पिता दोनों ही कोरोना से मरे हों। यह बात अपने वजनदार जी को चुभ गई है। तभी तो गुस्से में बोल गये। अफसरों के कहने पर औंधी-सौंधी घोषणा कर देते हैं। जैसे ही यह सबने सुना, आश्चर्य में पड़ गये। नतीजा अपने वजनदार जी की नाराजगी की चर्चा कमलप्रेमी कर रहे हैं। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।

डर मत…

अपने पहलवान की एक आदत है। खुलकर और साफ बोलते हैं। जैसे उन्होंने रविवार को हुई वरिष्ठ कमलप्रेमियों की बैठक में बोला। अपने ढीला-मानुष को लेकर। जिन्होंने यह बैठक बुलाई थी। सभी हाजिर हो गये थे। समय पर। बस विकास पुरुष और वजनदार जी का इंतजार हो रहा था। इंतजार करते-करते 20 मिनट से ऊपर हो गये। सभी ने कहा कि बैठक चालू करो। मगर अपने ढीला-मानुष की हिम्मत नहीं हो रही थी। यह देखकर अपने पहलवान बोल उठे। डरता क्यों है-कुर्सी पर बैठ-और बैठक चालू कर। पहलवान की खरी बात सुनकर अपने ढीला-मानुष खिसियाकर रह गये। मगर बैठक चालू करने की हिम्मत नहीं हुई। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रहेंगे।

चतुराई…

पिछले सप्ताह पंजाप्रेमियों ने धरना दिया था। टॉवर चौक पर। सभी को उम्मीद थी कि…वर्दी ज्यादा देर तक धरने पर बैठने नहीं देगी। नतीजा…विवाद होगा और अगले दिन अखबारों में खूब छपेंगे। मगर वर्दी, पंजाप्रेमियों से चतुर निकली। उनको पहले ही आदेश थे। 2 घंटे तक कुछ भी नहीं करना है। ऊपर तपती धूप और पसीने में नहा रहे पंजाप्रेमियों में इतना सब्र कहा है। खूब नारेबाजी हो गई। ज्ञापन देने से भी इंकार कर दिया। आखिरकार धूप के प्रकोप से पंजाप्रेमी परेशान हो गये। 45 मिनट में ही सबके अरमान ठंडे हो गये। बुलाकर ज्ञापन दिया और तत्काल रवाना हो गये। ऐसा खुद पंजाप्रेमी बोल रहे हैं और वर्दी की चतुराई की तारीफ कर रहे हैं। जिससे हमको क्या लेना-देना। हमारा तो काम है बस, आदत के अनुसार चुप रहना।

हज्जाम…

अपने वजनदार जी का आज शायद मूड़ खराब था। पहले 9 बजे वाली बैठक में नाराजगी दिखाई। जिसमें सभी वरिष्ठ कमलप्रेमी मौजूद थे। जहां पर घोषणा को लेकर नाराजगी दिखाई थी। जिसके बाद आपदा प्रबंधन की बैठक थी। जिसमें फिर वह खराब मूड में नजर आये। कारण…उनको गाइड लाइन की कापी नहीं मिली थी। जबकि बैठक में मौजूद विकास पुरुष, पहलवान आदि सभी के पास पहले से ही कापी मौजूद थी। यह देखकर उनको गुस्सा आ गया। उन्होंने समीप बैठे अपने ढीला-मानुष पर आक्रोश जाहिर कर दिया। उनका कहना था कि…मैं हज्जाम हूं या फिर..? उनकी बात सुनकर ढीला-मानुष ने तत्काल कापी उपलब्ध करवाई और उनके आक्रोश को शांत कर दिया। जिसके बाद दोनों ही चुप हंै। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

हमदर्दी…

वर्दी का एक बहुत प्यारा स्लोगन है। वर्दी के साथ-हमदर्दी भी। मगर यह बात बोलने और होर्डिंग्स पर पढऩे में ही अच्छी लगती है। असल जिंदगी में वर्दी की हमदर्दी बहुत कम ही देखने को मिलती है। तभी तो तूफान वाली रात को वर्दी ने असली हमदर्दी दिखा दी। जेसीबी लेकर आ रहे ड्रायवर पर। मिलकर कुटाई कर डाली। जबकि तूफानी रात में ड्रायवर अपने दायित्व पर ही जा रहा था। कुटाई के बाद आक्रोश उभरना स्वभाविक था। बात अगले दिन हड़ताल करने तक पहुंच गई थी। वो तो बात संभल गई, वरना तूफान की तबाही के बीच हड़ताल हो जाती तो लेने के देने पड़ जाते। ऐसे में वर्दी की हमदर्दी की भूमिका पर सवाल उठ रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

कहावत…

आ बैल मुझे मार…यह कहावत तो सभी ने सुन रखी है। इसके शिकार अपने पिपली राजकुमार हो गये। उन्होंने एक शिकायत सोशल मीडिया पर अपलोड की थी। जिसमें विष्णु सागर वाटिका में नशेडिय़ों के जमघट का जिक्र था। वर्दी से आग्रह किया था। कार्रवाई करें। इसके पहले नशेड़ी और पीपली राजकुमार की झड़प हो गई थी। नशेड़ी ने बोल दिया था। समझाओ मत…17 साल से चिलम पी रहा हूं। नतीजा…पीपली राजकुमार ने सोशल मीडिया पर शिकायत डाल दी। वर्दी ने कार्रवाई कर दी। मगर…आ बैल मुझे मार…की कहावत चरितार्थ होना बाकी थी। वर्दी की कैद में नशेड़ी के परिचितों ने खोजबीन की। अपने पीपली राजकुमार का नाम आया। तो उन्होंने राजकुमार से गुहार लगाई। माफी भी मांग ली। नतीजा पीपली राजकुमार को फोन करना पड़ा। देख-लेना। यही वजह है कि उनके समर्थक कहावत को याद कर रहे हैं। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रहेंगे।

राग…

नेता वही कहलाता है। जो केवल अपनी बात कहे-किसी दूसरे की नहीं सुने। आज यह नजारा आपदा प्रबंधन की बैठक में देखने को मिला। वर्चुअल के माध्यम से दाल-बिस्किट वाली तहसील के पहलवान और अपने बडबोले नेताजी जुड़े थे। दोनों ही अपनी ढपली-अपना राग की कहावत पर अमल कर रहे थे। दोनों इस कदर बोल रहे थे कि यहां बैठे विकास पुरुष-वजनदार-उम्मीद जी और मंदमुस्कान अचंभित थे। उस पर तुर्रा यह है कि…दोनों की बाते निराधार थी। यही वजह है कि सभी उनकी बाते सुनकर मुस्कुरा रहे थे, मगर चुप थे। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।

-प्रशांत अंजाना

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